मज़बूत इरादे और आत्मविश्वास से किसी भी परिस्थिति का सामना किया जाए तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है। इस मिसाल का जीता जागता उदहारण हैं IAS राकेश शर्मा। बचपन में ही आँखों की रोशनी खो देने के बावजूद राकेश ने कभी हार नहीं मानी और जीवन में मेहनत कर हर सफलता हासिल की। जानें इन नेत्रहीन IAS अफसर के बारे में जिन्होंने IAS बनने का सपना UPSC सिविल सेवा 2018 की परीक्षा को पहले ही एटेम्पट में क्लियर कर पूरा किया।
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हरियाणा के एक छोटे गाँव के रहने वाले हैं राकेश

IAS राकेश शर्मा हरियाणा राज्य के भिवानी जिले के एक छोटे से गाँव सांवड़ के रहने वाले हैं। बचपन में ड्रग रिएक्शन के कारण उन्होंने अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी। राकेश को बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए उनके माता पिता 13 साल पहले भिवानी के सेक्टर 23 में शिफ्ट हुए। राकेश का कहना है की उनके माता पिता ने उनका हर कदम पर साथ दिया और यही उनके मजबूत आत्मविश्वास का कारण है।
लोगों ने माता पिता से कहा "इसे अनाथ आश्रम छोड़ आओ'
बचपन में ही आँखों की रोशनी चले जाने के बाद राकेश के माता पिता को पड़ोसी और रिश्तेदारों की कड़वी बातों का भी सामना करना पड़ा। कुछ लोगों ने उन्हें राकेश को अनाथ आश्रम छोड़ आने की सलाह दी। वहीं कुछ लोग राकेश को माँ बाप के लिए बोझ भी बताने लगे। परन्तु राकेश के माता पिता ने इन सभी बातों को अनसुना कर दिया। उन्हें राकेश की काबिलियत पर पूरा भरोसा था और इसीलिए उन्होंने राकेश को जीवन में आगे बढ़ाने के लिए हर सुख सुविधा उपलब्ध कराई।
सोशल वर्क में की पोस्ट ग्रेजुएशन

राकेश के माता पिता का कहना है कि राकेश बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज़ थे। वह स्पेशल स्कूल जाते थे और ब्रेल में पढ़ाई करते थे। उन्होंने दिल्ली विष्वविद्यालय से बी.ए. प्रोग्राम की डिग्री हासिल की और सोशल वर्क में मास्टर्स डिग्री पूरी की। अपनी सोशल वर्क की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें यह आभास हुआ कि वह IAS बनकर देश की सेवा कर सकते हैं और समाज में बदलाव ला सकते हैं। यहीं से उन्होंने IAS बनने का सपना देखा।
पहले ही एटेम्पट में बन गए IAS अफसर
अपने IAS बनने के सपने को सच करने के लिए राकेश ने खूब मेहनत की। उन्होंने 10 महीने की कोचिंग क्लास ज्वाइन की और स्ट्रैटेजी बनाकर सेल्फ स्टडी की। राकेश ने 2018 में पूरी तैयारी के साथ अपना पहला एटेम्पट दिया और इस पहले ही प्रयास में 608 रैंक हासिल कर वह IAS अधिकारी बन गए।
राकेश बताते हैं कि उन्होंने अपनी अपंगता को कभी दुर्बलता के तौर पर नहीं देखा। वह एक आम व्यक्ति की तरह सपने देखते रहे और उन्हें सच करने के लिए कड़ी मेहनत करते रहे। यह उनके लगन, हौसले और मेहनत का ही नतीजा है की आज वह भारत के सबसे प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हैं।
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