किशोरावस्था की अवधि जिसके दौरान बच्चों में शारिरिक बदलाव के साथ साथ कई तरह के मानसिक बदलाव भी आते हैं, न केवल बच्चे के लिए बल्कि उसके माँ बाप के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण होती हैl किशोर हो रहे बच्चों के माता पिता की भूमिका बेहद मुश्किल हो जाती है क्यूँकि इस समय बच्चे अक्सर मन मर्ज़ी करते हैं और वही काम करते हैं जिसके लिए उनके माता पिता उनको मना करते हैंl दरअसल किशोरावस्था बच्चे के जीवन का सबसे चंचल समय होता है जब वह किसी भी अच्छी या बुरी चीज़ों से बहुत जल्दी प्रभावित होता हैl उम्र के इस पड़ाव के दौरान बच्चों के बहुत से हार्मोन्स में परिवर्तन आता है, जिससे बच्चे मूडी हो जाते हैंl
किशोरावस्था के दौरान बच्चे के जीवन को सही आकार व उसे सही दिशा निर्देश देने में माँ बाप की भूमिका सबसे अहम् होती है और यह सब इस बात पे निर्भर करता है कि वे किस प्रकार अपने बच्चों की भावनाओं को समझते हैं और उनके साथ कैसा संवाद व व्यहार करते हैंl
आज इस लेख में उन सभी पेरेंट्स के लिए कुछ ख़ास सुझाव बतायेंगे जो उन्हें अपने किशोरों के साथ लगाव पैदा करने व उनको दिशाहीन होने से रोकने में मदद कर सकते हैंl
1. सबसे पहले अपने बच्चे का Best Friend बनें
अक्सर बच्चों में यह डर रहता है कि यदि वे अपनी किसी गलती को या किसी बात को अपने पेरेंट्स को बतायेंगे तो उन्हें डांट या मार पड़ेगीl इसी डर के चलते वे माता पिता से झूठ बोलना शुरू कर देते हैं और उनके विश्वास में नहीं रहतेl इस तर्क को ख़तम करने का सबसे आसान तरीका है कि माँ बाप को अपने बच्चों के बेस्ट फ्रेंड्स बन जाना चाहिएl बच्चे की हर बात को अच्छे से सुनना चाहिए व अपनी भी हर ख़ुशी गमी को उनके साथ बाँटना चाहिएl इससे आप अपने बच्चे का संपूर्ण विश्वास पा लोगे और उसकी हर गतिविधि के बारे में जान सकोगेl
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2. बच्चों की भावनाओं का आदर करें
किशोर दिल से बहुत संवेदनशील होते हैंl वे आपसे उनकी हर बात को गंभीरता से लिए जाने की अपेक्षा रखते हैंl वे अपनी भावनाएं आपके साथ तभी शेयर करेंगे यदि आप उनको गंभीरता से सुनें व उनका सम्मान करेंl उनकी हर छोटी से छोटी बात को भी ध्यान से सुनें ताकि वे आपको अपने अच्छे दोस्त के रूप में देख सके जो कि उसकी हर छोटी-बड़ी बात को सुनता है और उसपे react bhi करता हैl आप यह सुनिश्चित करें कि वे किसी भी विषय में आप से आसानी से बात कर सकें।
3. ज़रूरी निर्णय लेते समय बच्चों को अपना हमउमर समझें
बच्चों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने में यह एक और कदम होगा कि जब भी आप अपने घर या परिवार से जुड़ा कोई निर्णय लेते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि आप अपने किशोर से अपने हम उम्र की तरह ही बात करें और उनसे उनकी राय लें जैसे आप अपने दोस्तों या सहयोगियों से लेते हैं। उन्हें विश्वास दिलाएं कि उस ख़ास निर्णय में उनका सुझाव आपके लिए कितना ज़्यादा मायने रखता है। इससे आपका अपने बच्चे के साथ रिश्ता और भी ज़्यादा गहरा हो जायेगा।
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4. अपने बच्चे के साथ बिताएं Quality time
आज कल ज़्यादातर माता और पिता दोनों ही working होते हैं जिसकी वजह से वे बच्चे के साथ ज़्यादा समय नहीं गुज़ार पाते जिसकी वजह से बच्चे अपनी किसी भी तरह की परेशानी या भाव उनके साथ share नहीं कर पाते और अपने विचारों को अपने भीतर दबाते चले जाते हैं। यही कारन है कि आज depression से ग्रस्त किशोरों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए ज़रूरी है कि हर रोज़ की व्यस्तता में से ख़ास समय निकाल कर अपने बच्चे के साथ बिताएं और उसकी पूरे दिन की हर छोटी से छोटी activity के बारे में सुनें और उनमें अपना पूरा interest दिखाएँ। इससे आप उनकी हर प्रॉब्लम व चिंता के बारे में भी जान पाएंगे और उसको दूर करने में उनकी मदद कर पाएंगे।
5. अपने बच्चे की हर गतिविधि पर रखें नज़र
आजकल इन्टरनेट व social media का ज़माना है। आज हर बच्चा स्मार्ट फ़ोन या कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है जिसके कारन विभिन्न तरह की गेम्स खेलना, ऐप्स डाउनलोड करना और social media के ज़रिये नए नए दोस्त बनाना उनकी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गया है। टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल की वजह से कई बार बच्चों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जिनसे उबरना काफी मुश्किल हो जाता है। हाल ही में ‘Blue Whale’ नाम की गेम की वजह से कई बच्चों के द्वारा खुदखुशी किये जाने की ख़बर इस बात की सबसे बड़ी उदाहरण के रूप में सामने आई है। इसलिए पेरेंट्स के लिए ज़रूरी है कि वे अपने बच्चे के साथ उनके द्वारा कंप्यूटर, फ़ोन या social media के इस्तेमाल के बारे में बात करें और उनकी हर गतिविधि के बारे में अच्छे से जानें और उन्हें इन चीज़ों के उचित इस्तेमाल के बारे में भी सुझाव दें।
6. बच्चों में अच्छे आचरण भरने की अपनी कोशिश को हमेशा रखें जारी
हर माता पिता अपने बच्चे को एक आदर्श बेटे या बेटी के रूप में देखना चाहते हैं जिसके लिए वे बचपन से ही उनको अच्छे आचारण, गुणों व आदर का पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं। छोटे बच्चे बेशक आपकी बात को सुन लेते हैं लेकिन उसका असली मतलब वे किशोरावस्था में आने पर ही समझ पाते हैं क्यूँकि तब तक वे हर बात को समझने के लायक mature हो जाते हैं। इसलिए किशोरों को हमेशा अच्छे आचरण अपनाने का ज्ञान दें लेकिन एक बात याद रखें कि बच्चों पे अपना ज्ञान थोपें ना बल्कि आप स्वयं उनके लिए असल ज़िन्दगी में उदाहार्ण पेश करें जिससे आपके गुण व अच्छे आचरण सहज ही उनमें आ जायेंगे।
उम्र व सोच का अंतर पेरेंट्स और बच्चों के बीच में दूरियाँ पैदा करने के लिए काफी है। लेकिन आप चाहो तो आप अपनी कोशिशों से इस अंतर को मिटाकर अपने बच्चे का सबसे करीबी दोस्त बन सकते हो और उसकी ज़िन्दगी में होने वाली हर हलचल को महसूस कर सकते हो।
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