UP Board छात्रों को हम इस आर्टिकल में कक्षा 10 वी के विज्ञान के सातवे अध्याय विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव के टॉपिक्स का शोर्ट नोट्स प्रदान करेंगे| जैसा की हमें पता है कि विधुत तथा विधुत धरा के प्रभाव एक बहुत बड़ा और काफी महत्वपूर्ण यूनिट है इसलिए, छात्रों को इस अध्याय को अच्छी तरह समझ कर तैयार करना चाहिए। यहां दिए गए नोट्स उन छात्रों के लिए बहुत सहायक साबित होंगे जो UP Board कक्षा 10 विज्ञान 2018 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में हैं। आज इस नोट्स में हम जो टॉपिक्स के नोट्स प्रदान कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं :
1. विधुत उर्जा
2. विधुत उर्जा; विभवान्तर तथा धरा के पदों में
3. विधुत उर्जा; धरा तथा प्रतिरोध की पदों में
4. विधुत सामर्थ्य
5. विधुत बल्ब का सिधांत, संरचना
6. बल्ब में निष्क्रिय गैसों का भरन, दोष
7. विधुत उष्मक का सिधांत, संरचना
8. विधुत इस्तरी (प्रेस) का सिधांत, रचना, कार्य- विधि
विधुत उर्जा : किसी चालक में विधुत आवेश प्रवाहित होने के कारण जो उर्जा व्यय होती है, उसे विधुत उर्जा कहते हैं| इसका मात्रक जुल होता है|
माना किसी चालक के सिरों के बिच विभवान्तर V वोल्ट है| यदि चालक में t सेकंड के लिए q कुलाम आवेश प्रवाहित किया जाता है , तो किया गया कार्य और व्यय विधुत उर्जा
W = विभवान्तर × आवेश
विधुत उर्जा; विभवान्तर तथा धरा के पदों में: माना किसी चालक के सिरों के बिच विभवान्तर V वोल्ट है| यदि चालक में t सेकंड तक, I एम्पियर की धरा प्रवाहित की जाये तो,
चालक में प्रवाहित आवेश, q = I × t
अतः चालक में t सेकंड में व्यय विधुत उर्जा, W = V × q = V × I × t
अथवा, W = VIt ..............(1)
विधुत उर्जा; धरा तथा प्रतिरोध की पदों में : यदि चालक का प्रतिरोध R ओम है तो ओम के नियम के अनुसार, विभवान्तर V = IR
समीकरण (1) में V का मान रखने पर, W = I2Rt ....................(2)
विधुत उर्जा; विभवान्तर तथा प्रतिरोध के पदों में : पुनः ओम के नियम के अनुसार
विधुत धारा I = V / R
समीकरण (2) में I का मान रखने पर,
W = V2t / R
इस प्रकार, व्यय विधुत उर्जा W = VIt = I2Rt = V2t / R जुल
विधुत सामर्थ्य : किसी विधुत परिपथ में विधुत परिपथ में उर्जा के व्यय होने की समय डर को विधुत सामर्थ्य अथवा विधुत शक्ति कहते हैं| इसे P से प्रदर्शित करते हैं| तथा इसका मात्रक वाट होता है|
यदि किसी विधुत परिपथ में t सेकंड में W जुल उर्जा व्यय होती है तो परिपथ विधुत सामर्थ्य
P = W/ t
जुल/ सेकंड को वाट भी कहते हैं, अतः P = W/t
विभवान्तर और धारा के पदों में विधुत सामर्थ्य : सूत्र W = VIt से,
P = W/t = VIt/t वाट
अथवा, P = VI वाट
धारा और प्रतिरोध के पदों में विधुत सामर्थ्य : सूत्र W = I2Rt से,
P = W/t = I2Rt/t वाट अथवा, P = I2R वाट
विधुत सामर्थ्य, P = VI = I2R = V2/ R वाट
विभवान्तर और प्रतिरोध के पदों में विधुत सामर्थ्य : सूत्र W = V2t/R से,
P = W/t = V2t/Rt वाट अथवा, P = V2/R वाट
विधुत बल्ब का सिधांत : विस्धुत बल्ब; विधुत धरा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण है| किसी तार में विधुत धरा प्रवाहित करने पर उसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे तार का ताप बढ़ने लगता है तथा बहुत अधिक ताप होने पर वह श्वेत तप्त होकर चमकने लगता है अर्थात प्रकाश उत्पन्न होता है| इस प्रकार के विधुत बल्ब को ताप दीप्तविधुत लैम्प कहते हैं|
संरचना : यह कांच का एक खोखला गोला होता है, जिसके अन्दर की वायु निकालकर इसमें या तो निर्वात रखते हैं या इसमें कोई निष्क्रिय गैस; जैसे – नाईट्रोजन अथवा आर्गन भर देते हैं| इसकी उपरी भाग पर पीतल की टोपी लगी रहती है, जिसके दोनों ओर दो पिने लगी होती हैं| टोपी के मुह को चपड़ा अथवा लाख से बंद कर देते हैं| इस चपड़े पर जस्ते के दो तनके लगे होते हैं| तनकों का सम्बन्ध को मोटे चालक तारों से अलग- अलग होता है| यह चालक तार एक कांच की लम्बी चढ़ से होकर बल्ब के अन्दर इसप्रकार से लाये जाते हैं कि ये आपस में एक दुसरे को खिन पर भी स्पर्श न करें| चालक तारों के बल्ब के अन्दर वाले सिरों पर टंग्स्टन का बारीक़ तार कुंडली के रूप में लगा रहता है जिसे तंतु कहते हैं| टंग्स्टन का तंतु इसलिए बनाया जाता है, क्यूंकि इसके बहुत पतले तार बनाये जा सकते हैं और इसका गलनांक भी बहुत ऊँचा (3400०C)है| इसप्रकार जब तंतु में विधुत धरा बहती हैतो यह श्वेत तप्त होकर प्रकाश देने लगता है|
बल्ब में निष्क्रिय गैसों का भरना :
साधारण कोटि के तथा कम सामर्थ्य के बल्बों के भीतर निर्वात होता है, परन्तु ऊँची सामर्थ्य के बल्बों में निष्क्रिय गैसें(जैसे - नाईट्रोजन अथवा आर्गन) भर देने से तंतु का ओक्सीकरणनहीं हो पाता| इससे तुरंत का वाष्पीकरण नहीं होता तथा बल्ब की दक्षता और आयु भी बढ़ जाती है|
विधुत बल्ब को सीलबंद करने से पहले इसमें से वायु निकलना आवश्यक है| वरना बल्ब का तंतु गर्म होकर वायु की ऑक्सीजन से संयोग करके ओक्सीकृत हो जायेगा| निष्क्रिय गैसों की उपस्तिथि में ऐसा नहीं होता है| गैस वाले बल्बों में तंतु को सर्पिलाकार कुंडली के रूप में इसलिए बनाते हैं, क्यूंकि धरातल कम होने के कारण इसके संपर्क में कम गैस आती है, जिससे चालन और संवहन द्वारा ऊष्मा की हानी कम होती है|
तंतु में धारा प्रवाहित करने पर उसका ताप 1500०C से 2500०C तक हो जाता है| इतने ताप पर तंतु प्रकाश देने लगता है| सामान्यतः ताप द्विप्त बल्बों में व्यय उर्जा 5% से 10% भाग ही प्रकाश में परिवर्तित होता है|
शेष उर्जा ऊष्मा में ही बदल जाती है तथा विकिरणों के रूप में बल्ब से निर्गत होती है| विधुत बल्ब की शक्ति का मान अलग-अलग होता है| इसी कारण से बल्ब पर वाट के साथ-साथ वोल्टेज भी लिखा रहता है; जैसे- 100W-230V वाले बल्ब का अर्थ है कि यदि इसे 230 वोल्ट पर जलाएं तो इसकी शक्ति 100 वाट होगी अर्थात 1 सेकेंड में 100 जूल विधुत उर्जा व्यय होगी जो प्रकाश और ऊष्मा में बदल जाएगी| सप्लाई वोल्टेज कम हो जाने से बल्ब की शक्ति भी कम हो जाती है जिससे प्रकाश धीमा पद जाता है|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी
दोष : इस विधुत बल्ब में यह दोष है कि 2100०C से ऊँचे ताप पर टंग्स्टन धीरे-धीरे वास्पित होकर बल्ब की दीवार पर जमने लगता है, जिसके कारण बल्ब से बाहर आने वाला प्रकाश धुन्दला पद जाता है|
विधुत उष्मक का सिधांत : किसी निम्न प्रतिरोध के तार में विधुत धारा प्रवाहित करने से उसमे उत्पन्न ऊष्मा का मान अधिक होता है, जिससे वह रक्त तप्त होकर ऊष्मा उत्सर्जित करने लगता है| विधुत उष्मक का प्रयोग घरों में खाना बनाने, कमरा गर्म करने के लिए किया जाता है|
संरचना : इसमें चीनी मिट्टी की एक प्लेट होती है, जिसमें खांचे बने होते हैं| इन खांचों में मिश्र-धातु नाइक्रोम का सर्पिलाकार टपक तार रखा जाता है, जिसके दोनों सिरे प्लेट पर लगे लगे दो पेंचों T, T से जुड़े रहते हैं| नाइक्रोम, निकिल 80% तथा क्रोमियम 20% की मिश्र- धातु होती है, जो उच्च ताप तक गर्म करने पर भी नहीं पिघलती तथा जो वायु से मिलकर शीघ्र ही ओक्सीकृत नहीं होती है| नाइक्रोम का विशिष्ट प्रतिरोध अधिक होने से आवश्यक प्रतिरोध का तापक तार छोटे तार से ही बन जाता है| कम वाटेज पर उष्मक के तापक- तार का प्रतिरोध अधिक तथा उच्च वाटेज वाले उष्मक के तापक तार का प्रतिरोध कम होता है|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स :मानव नेत्र तथा दृष्टि दोष
विधुत इस्तरी (प्रेस) का सिधांत : यह भी विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण है|
रचना : इसके निम्नलिखित चार भाग हैं :
1. आधार प्लेट
2. तापक-तार
3. दाब अथवा भार- प्लेट
4. कुचालक हत्था
1. आधार प्लेट- यह लोहे की बनी होती है जिसके बहरी सतह पर क्रोमियम की पोलिश करके इसको चिकना बना दिया जाता है| इस कारण विकिरण द्वारा ऊष्मा का क्षय नहीं होता|
2. तापक तार – यह नाइक्रोम का बना होता है तथा एक अब्रक की पतली चादर पर सपाट रूप से लिपटा रहता है| इसे अब्रक की एक दूसरी पलट पर रख कर आधार प्लेट पर रख दिया जाता है| इस तापक तार को ऊपर से एस्बेस्टाँस की एक मोती चादर से ढक दिया जाता है|
3. भार- प्लेट – एस्बेस्टाँस की चादर के ऊपर एक भर प्लेट रख दिया जाता है, जिसमें प्लग-पिन लगा रहता है तथा जिसका सम्बन्ध नाइक्रोम की तार से लगी संबन्धक पत्तियों A, B से होता है|
4. कुचालक हत्था - भार-प्लेट के ऊपर लकड़ी अथवा एबोनाईट और बैकेलाइट से बना एक कुचालक हत्था लगा रहता है|
कार्य विधि : जब कपड़ों पर प्रेस करनी होती है तो प्लास्टिक चढ़े तारों द्वारा तापक –तार के सिरों A और B का सम्बन्ध विधुत मेंस से कर देते हैं| इससे तापक तार में विधुत धरा प्रवाहित होने लगती है और वह गर्म होकर लाल तप्त हो जाता है| अतः विधुत उर्जा का उष्मीय उर्जा में परिवर्तन होने लगता है| तापक तार एस्बेसटास की प्लेट से ढका होने से तथा उसके ऊपर वायु होने से इसमें उत्पन्न ऊष्मा ऊपर को नहीं जा पाती, क्यूंकि एस्बेसटास और वायु दोनों ऊष्मा के कुचालक हैं| तापक तार से उत्पन्न लगभग सभी ऊष्मा अब्रक की चादर से निकल कर आधार प्लेट को गर्म कर देती है| क्यूंकि अब्रक विधुत का कुचालक होता है फिर भी इसमें से ऊष्मा चली जाती है| चूँकि तापक तार अब्रक की पतली चादर पर सपाट रूप से लिप्त होता है| अतः इस्तरी की तली एकसमान रूप में गर्म होने लगती है| इस्तरी की बहरी सतह पोलिशदार होने के कारण, विकिरण द्वारा ऊष्मा की हनी भी नहीं होती है| इस अवकरण को पकड़ने के लिए कुचालक धातु का एक हत्था इसके ऊपर लगा रहता है जिसे पकड़ कर इस्तरी का उपयोग करते हैं|
इस आर्टिकल में विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव'चेप्टर 'के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है, आने वाले दुसरे पार्ट में हम इस चेप्टर के बचे हुए टॉपिक्स पर चर्चा करेंगे|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : प्रकाश का अपवर्तन (गोलीय तलों पर):लेंस
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