Get chapter notes for UP Board class 10th Science notes on chapter 12(metals and non metals) second part from here. These notes are based on chapter 12 (metals and non metals) of class 10th science subject. Read this article to get the notes, here we are providing each and every notes in a very simple and systematic way.The main topic cover in this article is given below :
1. अधातुओं के रासायनिक गुणधर्म,
2. अम्लों से अभिक्रिया,
3. क्लोरिन से अभिक्रिया,
4. विधुत रसायनिक श्रेणी,
5. अनुप्रयोग,
6. धातुकर्म
7. अयस्क का सांद्रण,
8. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि,
9. चुम्बकीय पृथक्करण विधि,
10. फेन-पल्वन विधि,
11. रासायनिक विधियाँ, निस्तापन|
अधातुओं के रासायनिक गुणधर्म :
अधातुएँ इलेक्ट्रानों को ग्रहण करके, ऋण आवेशित आयन (ऋणायन) बनाती है| अत: इनको ऋण विधुती (electronegative) तत्व कहते है|
कार्बन मोनोक्साइड (CO), नाइट्रस आक्साइड (N2O) उदासीन आक्साइड हैं| ये न तो अम्लीय होते है और न ही क्षारीय; अत: ये आक्साइड लिटमस – पत्र पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं|

2. अम्लों से अभिक्रिया – अधातुएँ तनु अम्लों से हाइड्रोजन विस्थापित नही करती हैं| तनु अम्लों से अधातुओं द्वारा हाइड्रोजन तभी विस्थापित हो सकती है जब अभिक्रिया द्वारा उत्पन्न प्रोटानों या हाइड्रोजन आयनों (H+) को इलेक्ट्रानों की पूर्ति की जाए|
अधातुएँ इलेक्ट्रानग्राही होती हैं| इनके द्वारा प्रोटोनों को इलेक्ट्रानों की पूर्ति नही हो सकती हैं; अत: अधातुएँ तनु अम्लों से हाइड्रोजन विस्थापित नहीं कर सकती हैं|
3. क्लोरिन से अभिक्रिया- अधातु क्लोरिन से अभिक्रिया करने पर क्लोराइड बनाती है| यह सह्संयोजी यौगिक है, जो सामान्यतः वाष्पशील द्रव्य या गैस होती है|
विधुत रसायनिक श्रेणी : सभी धातुएँ एकसमान रूप से अभिक्रियाशील नहीं होती हैं| कुछ धातुएँ दूसरी धातु की अपेक्षा अधिक अभीक्रियाशील और सक्रीय होती हैं| जो धातुएँ आसानी से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन देती हैं, वे अधिक सक्रीय होती हैं|
1. धातु की सक्रियता की तुलना उनके द्वारा जल, ऑक्सीजन और अम्लों के साथ अभिक्रियाओं द्वारा करते हैं, परन्तु सभी धातुएं इन अभिकर्मकों के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं|
2. धातुओं की सापेक्ष सक्रियता ज्ञात करने के लिए विस्थापन अभिक्रियाओं का उपयोग करते हैं|
अधिक सक्रिय धातु को कम सक्रिय धातु को उसके लवन विलयन से विस्थापित करती है;जैसे-कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में आयरन का टुकड़ा डालें तो आयरन, कॉपर सल्फेट विलयन से कॉपर को विस्थापित कर देता है| इसका अर्थ होता है कि आयरन, कॉपर की अपेक्षा अधिक सक्रीय धातु है|
इसके विपरीत, यदि आयरन सल्फेट विलयन में कॉपर का टुकड़ा डालें तो अभिक्रिया नहीं होगी| इसप्रकार विस्थापन अभिक्रियाओ के प्रयोगों को करके, धातुओं को उनके सक्रियता क्रम में व्यवस्थित करते हैं| ऐसी श्रेणी को जिसमें सामान्य धातुओं को उनके घटते हुए सक्रियता क्रम में व्यवस्थित करते हैं| ऐसी श्रेणी को जिसमें सामान्य धातुओं को उनके घटते हुए सक्रियता क्रम में व्यवस्थित किया जाता है| विधुत रासायनिक श्रेणी अथवा सक्रियता श्रेणी कहते हैं|
अनुप्रयोग-
1. धातुओं द्वारा जल से हाइड्रोजन विस्थापित करने की क्षमता ज्ञात करना: हाइड्रोजन से ऊपर की धातुएँजल या वाष्प का अपघटन करके हाइड्रोजन निकालती हैं, परन्तु इससे निचे की धातुएँ ऐसा नहीं कर सकती हैं;जैसे-
3. विधुत रसायनिक श्रेणी में कॉपर का स्थान सिल्वर से ऊपर है, अर्थात कॉपर, सिल्वर से अधिक क्रियाशील है| यह सिल्वर को उसके लवन विलयन से प्रतिस्थापित कर देती है| सिल्वर आयनों का सिल्वर में अपचयन होने के कारण विलयन का रंग नीला हो जाता है|
धातुकर्म : अयस्कों से विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक उपचारों द्वारा शुद्ध धातु प्राप्त करने के प्रक्रम को धातुकर्म कहते हैं, अर्थात अयस्कों से धातुओं को अलग करने तथा उन्हें शुद्ध रूप में प्राप्त करने की विधियों को धातुकर्म कहते हैं|
धातुओं के निष्कर्षण की अलग-अलग भौतिक एवं रासायनिक विधियाँ हैं, ये विधियाँ अयस्क की प्रकृति और धातु के गुणों पर निर्भर करती है| ऐसा संभव नहीं है कि सभी प्रकार की धातुओं को उनके अयस्कों से एक ही विधि से प्राप्त किया जा सके| यधपि धातुओं के निष्कर्षण में निम्नलिखित तिन प्रक्रम निश्चित रूप से प्रयुक्त होते हैं-
1. अयस्कों का सांद्रण,
2. अपचयन,
3. धातुओं का शोसन,
इन प्रक्रमों का संचिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
अयस्क का सांद्रण: अयस्क के बड़े-बड़े टुकड़ों को पहले छोटे- छोटे टुकड़ों में तोड़ लिया जाता है| इसके बाद इन्हें महीन पीस लिया जाता है|
अयस्क में प्रायः मिट्टी, बालू, चूना, पत्थर आदि अशुद्धियों के रूप में मिले रहते हैं| इन्हें आधात्री या मैट्रिक्स कहते हैं| अयस्क को आधात्री से पृथक कर के अयस्क में धातु की प्रतिशतता बढ़ाने की प्रक्रिया को अयस्क का सांद्रण कहते हैं| अयस्कों के प्रकृति के अनुसार इन्हें विभिन्न भौतिक और रसायनिक विधियों से सांद्रित किया जाता है|
भौतिक विधियाँ : अयस्कों की प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित भौतिक विधियाँ अयस्कों के सांद्रण के लिए प्रयोग की जाती हैं|
1. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि: इस विधि में पृथक्करण आधात्री कणों तथा अयस्क कणों के आपेक्षिक घनात्वों में अंतर के आधार पर किया जाता है| इस विधि में बारीक़ पिसे हुवे अयस्क को जल की धारा के द्वारा धोया जाता है| हलके आधात्री कण (जैसे- रेत, मिट्टी आदि) इस जल धारा में बह जाते हैं तथा भरी अयस्क कण शेष रह जाते हैं|
सामान्यतः इस विधि द्वारा ऑक्साइड तथा कार्बोनेट अयस्कों का सांद्रण किया जाता है|
उदाहरण के तौर पर, तिन अयस्क तथा आयरन का सांद्रण गुरुत्वीय विधि से किया जाता है|
UP Board Class 10 Science Notes : Metals and Non Metals Part-I
2. चुम्बकीय पृथक्करण विधि : जब अयस्क अथवा अशुद्धि में से कोई घटक चुम्बकीय प्रविर्ती का होता है, तब पृथक्करण के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है| चुम्बकीय पृथक्करण में दो रोलरों पर एक बेल्ट गतिमान रहती है| इन रोलरों में से एक रोलर प्रबल चुम्बक होता है| जब बारीक़ पिसे हुए अयस्क को गतिशील बेल्ट के सिरे पर डालते हैं तो चुम्बकीय पदार्थ चुम्बक के समिप ही एकत्र हो जाता है, जबकि अचुम्बकीय पदार्थ रोलर से दूर गिरता है| इस विधि से फैरोमाग्नेटिक अयस्कों का सांद्रण किया जाता है| उदाहरण के तौर पर- FeWO4 एक चुम्बकीय अशुद्धि है| इसे टिन के अयस्क कैसीटेराइड से पृथक करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है|
3. फेन-पल्वन विधि: अयस्कों के सांद्रण के लिए अधिकांशतः फेन प्लवन विधि का उपयोग किया जाता है| सल्फाइड अयस्कों का सांद्रण प्रायः इसी विधि से किया जाता है| इसी विधि में बारीक़ पिसे हुएअयस्क को जल तथा तेल के मिश्रण में डालकर वायु प्रवाहित की जाती है| अशुद्ध अयस्क, तेल के साथ झाग बनाकर ऊपर तैरने लगता है और अपद्रव्य निचे बैठ जाते हैं| इस विधि में चिड का तेल या यूकिलिप्टस का तेल काम में लाया जाता है| जिंक सल्फाइड अयस्क का सांद्रण इसी विधि से किया जाता है|
रासायनिक विधियाँ: अयस्कों के सांद्रण हेतु निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग की जाती हैं :
1. निस्तापन- सांद्रित अयस्क को वायु की अनुपस्तिथि में उसके गलनांक के निचे, उच्च ताप पर गर्म कर के उसमें उपस्थित नमी, CO2, SO2 तथा अन्य वाष्पशील कार्बनिक अपद्रव्य को निष्काषित करने की क्रिया को निस्तापन कहते हैं| इस क्रिया में अयस्क से गैसीय पदार्थ अथवा वस्प्शील पदार्थ अलग हो जाते हैं तथा वह सरंध्र हो जाते हैं|
उदहारण:
UP Board Class 10 Science Notes : Methods of preparation, properties and uses of some salts part-I
UP Board Class 10 Science Notes : Methods of preparation, properties and uses of some salts part-II