Here we are providing UP Board class 10th Science notes for chapter 21; reproduction 2nd part. We understand the need and importance of revision notes for students. These UP Board chapter-wise key points are prepared in such a manner that each and every concept from the syllabus is covered in form of UP Board Revision Notes.
Some of the benefits of these exclusive revision notes include:
1. Cover almost all important facts and formulae.
2. Easy to memorize.
3. The solutions are elaborate and easy to understand.
4. These notes can aid in your last minute preparation.
The main topic cover in this article is given below :
युग्मनज का परिवर्द्धन (Development of zygote) : युग्मनज में विदलन (cleavage) होता है| पहले मारुला (morula), फिर ब्लासटूला (blastula) व उसके बाद गैस्टुला (gastrula) का निर्माण होता है| भ्रूण (embryo) का परिवर्द्धन मादा शरीर के बाहर अंडे के अन्दर होता है तो इसे अंडप्रजकता (oviparity) कहते हैं| मनुष्य तथा सभी स्तनियों में भ्रूण का सम्बन्ध मादा के शरीर से एक विशेष उतक जरायु (placenta) द्वारा हो जाता है और भ्रूण गर्भाशय में रहकर ही शिशु में परिवर्द्धित होता है| इसे जरायुजता (viviparity) कहते हैं| कुछ प्राणियों में इनके मध्य की स्थिति भी हो सकती है; जैसे अंडाणु निषेचन के बाद मादा के शरीर में रहकर परिवर्द्धित तो अवश्य होता है, किन्तु उसका मादा के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता| इसे अंड – जरायुजता (ovi-viviparity) कहते हैं|
कायिक प्रवर्धन (Vegetative Progagation) :
पौधे का कोई भी वर्धी भाग जब मातृ पौधे से अलग होकर एक नए पौधे का निर्माण करता है तो इसे ‘वर्धी प्रवर्धन’ या कायिक प्रवर्धन कहते हैं| यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है :
I. प्राकृतिक (natural),
II. कृत्रिम (artivicial),
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural Vegetative Progagation) :
पौधों में स्वत: होने वाले कायिक प्रवर्धन को प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहते हैं|
इस प्रकार का कायिक जनन पुष्पी पादपों में निम्नलिखित प्रकार से होता है-
1. जड़ों द्वारा (By Roots) : शकरकन्द, सतावर, बेल, परवल इत्यादि पौधों की जड़ें भोजन संचय करती हैं तथा इन पर कलिकाएँ होती हैं| इन्हीं कलिकाओं से नए पौधों का निर्माण होता रहता है| (सामान्यता जडो पर कलिकाएँ नहीं पाई जाती हैं|)
2. तनों द्वारा (By Stems) : पौधों के विभिन्न प्रकार के तने कायिक प्रवर्धन में महत्वपूर्ण भाग लेते हैं| इन तनों में भोजन संचित होता है तथा पर्वसन्धियों पर जो कलिकाएँ होती हैं उनसे नए पौधे बनते हैं| कायिक जनन में भाग लेने वाले तने निम्नलिखित तीन प्रकार के हो सकते हैं|
(i) भूमिगत तनों (underground stems) में भोजन संग्रह होने से ये मोटे व मांसल हो जाते हैं| इनकी पर्वस्न्धियों पर उपस्थित कलिकाएँ (अग्रस्थ व क्क्षस्थ) अनुकूल वातावरण में वृद्धि करके नए पौधों का निर्माण करती हैं| इस प्रकार का प्रवर्धन आलू, घुइयाँ, बंडा, जिमीकन्द, अदरक इत्यादि में देखा जाता है|
(ii) अर्द्धवायवीय तने (subaerial stems) द्वारा अनेक पौधों में कायिक प्रवर्धन होता है| दूब घास के उपरिभूस्तारी, पुदीना के अन्त: भूस्तारी, स्ट्राबेरी का भूस्तारी तथा जलकुम्भी का भुस्तारिका आदि में पर्वसन्धियों से अपस्थानिक जड़े निकल आती हैं| इनके पर्वों के नष्ट हो जाने से नए पौधे बन जाते है|
(iii) तने के वायवीय रुपान्तरण के रूप में पत्र प्रकलिकाओं (bulbils) का विशेष महत्व है| पत्र प्रकलिकाएँ भोजन संग्रह करने वाली विशेष प्रकार की कलिकाएँ है जो मात्र पौधे से अलग होकर अनुकूल वातावरण में एक नए पौधे का निर्माण करती हैं| पत्र प्रकलिकाएँ खट्टी-बुट्टी, रामबाँस, अन्नास, लहसुन, जिमीकन्द इत्यादि में पाई जाती हैं|
3. पत्तियों द्वारा (By Leaves) : कुछ पौधों की पत्तियाँ भी भोजन का संग्रह करती हैं| विशेष अनुकूल अवस्थाओं में इन पर कलिकाएँ बनती हैं जो नए पौधों को जन्म देती हैं| इस प्रकार से होने वाला कायिक प्रवर्धन अजूबा या घाव पत्ता या ब्रायोफिलम (Bryophyllum), बोगोनिया (Begonia) इत्यादि में पाया जाता है|
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial Vegetative Propagation) :
मनुष्य द्वारा पौधों में कृत्रिम ढंग से किए गए कायिक जनन को क्रत्रिम कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं|
मनुष्य ने अपने लाभ के लिए प्राकृतिक कायिक प्रवर्धनों को देख –देख कर उसी के आधार पर, कायिक प्रवर्धन की अनेक विधियाँ अपनाई हैं| इनमें से प्रमुख विधियाँ अग्रलिखित हैं-
1. कलम लगाना (Cutting) : गुलाब, गन्ना, गुडहल, अंगूर आदि के पौधों के इस विधि से द्वारा उगाया जाता है| अच्छे विकसित और पुराने पौधों की शाखाओं को काटकर भूमि में गाड दिया जाता है| इन शाखाओं पर कुछ कक्ष्स्थ कलिकाएँ अवश्य होनी चाहिए| पर्वसन्धियों से अथवा कटे हुए भाग से अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं| इनकी क्क्षस्थ कलिकाएँ बढ़कर नए पौधे को जन्म देती हैं| कलम खड़ी या पड़ी लगाई जा सकती हैं| आक्सिन; जैसे – IAA आदि; में डुबाकर लगाई गई कलम में कलिकाएँ और जड़ें शीघ्र निकल आती हैं|
2. दाब लगाना (Layering) : सेब, नाशपाती, चमेली, नीबू आदि में शाखाएँ कठोर होती हैं; अत: सरलता से कलम के रूप में प्रवर्धित नहीं हो पाती हैं| इसलिए पौधे पर लगे – लगे ही शाखा के कुछ भाग को छीलकर शाखा को भूमि में दबा देते हैं| बाद में, इसी भाग से अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं| अब मुख्य पौधे से इसे काटकर अलग कर लेते हैं इससे नया पौधा बन जाता है|
3. गूटी (Gootee) लगाना : यह वायु में दाब लगाने के समान है| किसी शाखा को छीलकर खाद्युक्त मिट्टी लेप दी जाती है तथा टाट इत्यादि लपेटकर सुतली आदि से बाँध कर छोड़ दिया जाता है| गूटी को हर समय नम रखना आवश्यक है| शाखा में गूटी के अन्दर, कुछ दिन बाद अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं| शाखा को मुख्य पौधे से काटकर अलग करके इसे कहीं भी लगाया जा सकता है|
UP Board Class 10 Science Notes :activities of life or processes of life Part-VI
UP Board Class 10 Science Notes :activities of life or processes of life Part-VII
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