Here we are providing UP Board class 10th Science notes on chapter 17 structure of human body 5th part. Many students find science intimidating and they feel that here are lots of thing to be memorised. However Science is not difficult if one take care to understand the concepts well. Quick notes help student to revise the whole syllabus in minutes. This Key Notes clearly give you a short overview of the complete chapter. The main topic cover in this article is given below :
1. लसीका परिसंचरण तन्त्र
2. पाचन
3. कार्बोहाइड्रेटस का पाचन
4. प्रजनन
5. पुरुष के जननांग
6. वृषण
7. अधिवृषण या एपिडिडाइमिस
8. शुक्रवाहिनी
9. मूत्रमार्ग
10. सहायक ग्रन्थियाँ
11. स्त्री के जननांग
12. अंडाशय
लसीका परिसंचरण तन्त्र (Lymph Circulatory System) :
सभी कशेरुकियों में रुधिर परिसंचरण के अतिरिक्त एक और तरल परिसंचरण तन्त्र होता है जिसे लसीका परिसंचरण तन्त्र कहते हैं| तरल को लसीका कहते हैं| जिन वाहिनियों में लसीका प्रवाहित होता है, उन्हें लसीका वाहिनियाँ कहते हैं|
लसीका परिसंचरण तन्त्र लसीका केशिकाओं, लसीका वाहिनियों, लसीका गाँठो तथा लसीका अंगों से बना होता है|
1. लसीका केशिकाएँ (Lymph capillaries) – यह अंगों में पाया जाने वाला महीन नलिकाओं का जाल है| आंत्र विलाई में इनकी अन्तिम शाखाएँ आक्षीर वाहिनियाँ कहलाती हैं|
2. लसीका वाहिनियाँ (Lymph vesseles) – लसीका केशिकाएँ मिलकर लसीका वाहिनियाँ बनाती हैं| ये रचना में शिराओं के समान होती हैं| सभी लसीका वाहिनियाँ अन्त में बाई वक्षीय लसीका वाहिनी तथा दाई वक्षीय लसीका वाहिनी द्वारा अग्र म्हाशिराओं में खुलती हैं|
3. लसीका गाँठे (Lymph nodule) – लसीका वाहिनियाँ कुछ स्थानों पर फूलकर लसीका गाँठे बनाती हैं| आंत्र की सबम्यूकोसा में पेयर के चकत्ते भी लसीका गाँठे हैं|
4. लसीका अंग (Lymph organs) – प्लीहा, थाइमस ग्रन्थि, टान्सिल आदि लसीका अंग हैं|
UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-III
पाचन (Digestion) :
जटिल अघुलनशील कार्बनिक भोज्य पदार्थों को सरल घुलनशील इकाइयों से बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं| इसके फलस्वरूप शरीर की कोशिकाओं को उपापचय क्रियाओं हेतु भोज्य पदार्थ देखिए|
कार्बोहाइड्रेटस का पाचन (Digestion of Carbohydrate) :
1. मुखगुहा में (In Buccal Cavity) – टायलिन एन्जाइम मंड के कुछ भाग को शर्करा में बदलता है|
2. ग्रहणी में (In duodenum)- एमाइलेज एन्जाइम मंड को जल की उपस्थिति में डाइसैकेराइडस (disaccharides) में बदलता है|
3. क्षुद्रान्त्र में (In Small Intestine) – माल्टेज, लैक्टेज, सुक्रेज आदि एन्जाइम डाइसैकेराइडस को मोनोसैकेराइडस (ग्लूकोस, फ्रक्टोज, गैलेक्टोज) में बदल देते हैं| कोशिकाएँ मोनोसैकेराइडस का उपयोग करती हैं|
प्रजनन (Reproduction) :
यह जीवधारियों का एक विशिष्टगुण है| प्रजनन के द्वारा जीवधारी अपनी प्रजाति का सृष्टि में बनाए रखते हैं प्रजनन द्वारा जीवधारी अपने समान सन्तानें उत्पन्न करते हैं|
पुरुष के जननांग (Male Reproductive organs) :
इसके अन्तगर्त निम्नलिखित अंग आते हैं-
(1) वृषण (Testes)
(2) अधिवृषण या एपिडिडाइमिस (Epididymis),
(3) शुक्रवाहिनी (Vas deferens),
(4) शुक्राशय (Seminal vesicle),
(5) मूत्रमार्ग (Urethra),
(6) सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory glands)|
1. वृषण (Testes) – पुरुष में एक जोड़ा वृषण (testes) उदर गुहा से बाहर, थैले जैसी रचना, वृषण कोष (scrotal sacs) में सुरक्षित रहते हैं| प्रत्येक वृषण के अन्दर अनेक अत्यन्त महीन तथा कुंडलित शुक्र नलिकाएँ (seminiferous tubules) होती हैं| इनकी जनन कोशिकाएँ (germ cells) शुक्राणुजनन की क्रिया के द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण करती हैं|
2. अधिवृषण या एपिडिडाइमिस (Epididymis)- शुक्राणु अन्य अनेक नलिकाओं से होते हुए वृषण के बाहर स्थित एक अति कुंडलित नालिका से बने अधिवृषण या एपिडिडाइमिस (Epididymis) में आते हैं| यह संरचना वृषण कोष में ही स्थित होती है|
3. शुक्रवाहिनी (Vas deferens) – एपिडिडाइमिस के अन्तिम छोर से एक मोटी शुक्रवाहिनी (Vas deferens) निकलती है| शुक्राणु, शुक्राशय स्त्राव के साथ मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं|
5. मूत्रमार्ग (Urethra) – शुक्राशय एक सँकरी नली के द्वारा, जिसे स्खलन नलिका (ejeculatory duct) कहते हैं, मूत्राशय (urinary bladder) के सँकरे भाग मूत्रमार्ग (urethra) में खुलता है| मूत्रमार्ग शिश्न के शीर्ष पर एक छिद्र द्वारा खुलता है| इस छिद्र को मूत्र – जनन छिद्र कहते हैं| शिश्न मैथुन में सहायक होता है| शिश्न साधारण अवस्था में शिथिल व मुलायम होता है, किन्तु उत्तेजना की अवस्था में इसके रुधिर कोटरों (blood sinuses) में रुधिर भर जाने से यह सख्त हो जाता है|
6. सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory glands) – जनन अंगो के अतिरिक्त अनेक सहायक ग्रन्थियाँ; जैसे – प्रोस्टेट (prostate), काउपर्स (cowper’s), पेरीनिअल (पेरीनिअल (erineal) आदि; होती हैं जो वीर्य बनाने सहित शुक्राणुओं के पोषण और उनको जीवित रखने में सहायता करती हैं|
स्त्री के जननांग (Female Reproductive organs):
इसके अंतगर्त निम्नलिखित अंग आते हैं-
(1) अंडाशय (Ovary),
(2) अंडवाहिनी (Oviduct),
(3) गर्भाशय (Uterus),
(4) सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory glands)|
1. अंडाशय (Ovary) – स्त्री में एक जोड़ा अंडाशय (ovarise) होते हैं| ये अंडाकार भूरे रंग की रचनाएं हैं तथा उदरगुहा में स्थित होती हैं| अंडाशय के अंदर जनन कोशिकाओं से अंडजनन की क्रिया के द्वारा अंड (ova) बनते हैं|
2. अंडवाहिनी (Oviduct) - अंडवाहिनी लगभग 10 सेमी लम्बी होती है| इसका प्रारम्भिक भाग अंडाशय के पास ही एक कीप की तरह की झालदार रचना, अंडवाहिनी मुखिका (oviducal funnel) बनाता है, जो एक कुंडलित तथा सँकरी फैलोपिअन नलिका (fallopian tube) में खुलती है| अंडाशय से अंड (ovum) अंडवाहिनी मुखिका के द्वारा फैलोपिअन नलिका में आता है| अंड का निषेचन फैलोपिअन नलिका में होता है|
3. गर्भाशय (Uterus) – दोनों अणडवाहिनी का पश्च चौड़ा संयुक्त होकर गर्भाशय (uterus) का निर्माण करता है| यह लगभग 7.5 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 3 सेमी मोटा होता है| निषेचन अंड गर्भाशय हो जाता है, यह गर्भाशय से एक विशेष ऊतक जरायु (placenta) द्वारा जुड़कर माता के शरीर से पोषण प्राप्त करता है| यह क्रमश: भ्रूण (embryo) और फिर धीरे-धीरे शिशु के रूप में विकसित होता है| गर्भाशय का अन्तिम सँकरा भाग योनी (vagina) कहलाता है| यह योनी छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलता है|
4. सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory glands)- जैसे बार्थोलिन (Bartholin’s), पेरीनिअल (perineal) ग्रन्थियाँ आदि| इनसे स्त्रावित तरल पदार्थ योनि व योनि मार्ग को सदैव जीवाणुरोधक व चिकना बनाए रखते हैं|
UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-I
UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-II
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