Positive India: रिक्शा चालक के बेटे ने पहले ही एटेम्पट में UPSC क्लियर कर हासिल की थी 48वीं रैंक- जानें IAS गोविन्द जायसवाल की कहानी

Jul 29, 2020, 14:05 IST

UPSC  सिविल सेवा 2006 की परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल  करने वाले IAS गोविन्द जायसवाल का सफलता पाने तक का सफर चुनौतीपूर्ण रहा। परन्तु एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानने वाले गोविन्द ने कभी हार नहीं मानी। 

Positive India: रिक्शा चालक के बेटे ने पहले ही एटेम्पट में UPSC क्लियर कर हासिल की थी 48वीं रैंक- जानें IAS गोविन्द जायसवाल की कहानी
Positive India: रिक्शा चालक के बेटे ने पहले ही एटेम्पट में UPSC क्लियर कर हासिल की थी 48वीं रैंक- जानें IAS गोविन्द जायसवाल की कहानी

जब परिवार चलाने वाला एकमात्र सदस्य रिक्शा चालक हो तो बुनियादी सुविधाएं हासिल करना भी एक कामयाबी के सामान होता है। लेकिन IAS गोविंद जायसवाल की कहानी इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ इन सभी कठिनाइयों को पार कर सफलता आवश्य प्राप्त की जा सकती है। गोविन्द ने अपने पहले प्रयास में UPSC परीक्षा में 48 वां स्थान पाने के बाद अपना नाम इतिहास में दर्ज किया। आइये जानते हैं उनके इस संघर्षपूर्ण सफर के बारे में: 

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गोविन्द परिवार के साथ 12x8 फीट के किराए के कमरे में रहते थे

एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले गोविंद अपनी तीन बड़ी बहनों और माता पिता के साथ 12x8 फीट के किराए के कमरे में रहते थे। उनके पिता एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उन्होंने उस्मानपुरा के एक सरकारी स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और वाराणसी के सरकारी डिग्री कॉलेज से गणित में ग्रेजुएशन डिग्री हासिल की।

UPSC की तैयारी के खर्च के लिए पढ़ाई ट्यूशन

वाराणसी में ग्रेजुएशन पूरी होने के तुरंत बाद गोविन्द सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। मेट्रो शहर में रहने के खर्च का प्रबंधन करने में असमर्थ गोविंद के पिता नारायणम जायसवाल ने अपनी एकमात्र जमीन 4,000 रुपये में बेच दी। अपने स्वयं के खर्चों को कवर करने के लिए गोविंद गणित की ट्यूशन लेते थे और अगले 18-20 घंटों में अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते थे जिसके कारण 2006 में उन्होंने अपने पहले प्रयास में IAS परीक्षा को पास कर लिया।

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बेटे की पढ़ाई के लिए गोविन्द के पिता रिक्शा मालिक से बनें रिक्शा चालक 

गोविन्द के पिता नारायण के पास साल 1995 में करीब 35 रिक्शे थे। परन्तु पत्नी की बीमरी के इलाज के खर्च के लिए 20 र‍िक्शे बेच दिए। परन्तु 1995 में उनका देहांत हो गया। 2004-05 में गोविंद को UPSC सिविल सेवा की तैयारी और दिल्ली भेजने के लिए उनके पिता ने बाकी 14 रिक्शे बेच दिए। पढ़ाई में कमी न हो इसलिए वह एक रिक्शा खुद चलाने लगे। 2006 में गोविन्द के पिता के पैर में टिटनेस हो गया लेकिन यह बात उन्होंने गोविंद को नहीं बताई। वह नहीं चाहते थे की गोविन्द अपनी पढ़ाई छोड़ कर वापस लौट आएं। ऐसे स्थिति में उनकी बेटियां बारी-बारी पिता का ख्याल रखने को उनके पास रहती थीं

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UPSC की परीक्षा की तैयारी के दिनों में गोविन्द को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। पढ़ाई के दौरान कई बार 14 से 15 घंटों के लिए लाइट चली जाती थी जीके कारण उन्हें पढ़ने में काफी परेशानी होती थी। एक परेशानी कम नहीं हो रही थी कि गोविंद के सामने एक और परेशानी खड़ी हो जाती। लाइट जाने के बाद उनके पड़ोस में ही जेनेरेटर चलता था जिसकी वजह से काफी शोर होता था। पढ़ाई में किसी तरह के रुकावट न हो इसके लिए वह सभी खिड़कियाँ बंद कर और कानों में रूई डालकर पढ़ाई करते थे। अनेक कठिन परिस्थितियों ने भी गोविन्द का मनोबल नहीं तोड़ा और  परिश्रम के बाद उन्होंने पहली ही एटेम्पट में UPSC सिविल सेवा परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल की। 

अपने पिता के बलिदान और उनके प्रति विश्वास को गोविन्द ने ज़ाया नहीं जाने दिया और अनायास मेहनत के बाद यह उपलब्धि हासिल की। उनके इस जज़्बे को जागरण जोश का सलाम। 

Sakshi Saroha is an academic content writer 3+ years of experience in the writing and editing industry. She is skilled in affiliate writing, copywriting, writing for blogs, website content, technical content and PR writing. She posesses trong media and communication professional graduated from University of Delhi.
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