एक बहुत चर्चित कहावत है कि उगते सूर्य को नमस्कार हर कोई करता है. अर्थात सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाले व्यक्ति का अनुकरण तथा प्रशंसा हर कोई करता है. लेकिन सफल होने के लिए जीवन के बहुत से छोटे बड़े पहलुओं पर गौर करने की जरुरत होती है. अपने लक्ष्य से थोड़ा सा विचलन कई अवांछित परिणाम दे जाता है. करियर को लेकर छात्र कॉलेज के दिनों से ज्यादा सीरियस होते हैं. यूँ तो स्कूल से ही अधिकांश स्टूडेंट्स इस विषय में सोचना शुरू कर देते हैं लेकिन पूरी तरह से इसके प्रति सीरियस कॉलेज के दिनों में ही होते हैं.
सिलेबस पाठ्यक्रम, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज का अतिरिक्त भार तथा इसके साथ साथ अन्य असाइंमेंट्स आजकल स्टूडेंट्स को तनाव ग्रस्त बनाते जा रहे हैं तथा कॉलेज के बीजी शेड्यूल से उनकी ख़ुशी दिनोंदिन गायब होती चली जा रही है. आजकल इस विषय पर कई चर्चाएं, अध्ययन और सर्वेक्षण हुए हैं कि क्या छात्रों को हर कीमत पर सफलता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए या फिर उन्हें स्वास्थ्य और अन्य संबंधित उपलब्धियों के साथ प्रसन्नचित रहने की प्रेरणा दी जानी चाहिए.

वस्तुतः इस जगत में कुछ ऐसे लोग हैं जो सफल होने की बजाय खुश रहना ज्यादा पसंद करते हैं. दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके जीवन का एकमात्र मकसद किसी भी तरह से जीवन में सफलता प्राप्त करना है.
दरसल खुशी और सफलता जीवन के ऐसे दो आयाम है जो अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से सबंधित है. लेकिन लोगों को इसे देखने का नजरिया कुछ ऐसा है कि इसे लोग दो अलग अलग दृष्टिकोण से देखना शुरू कर देते हैं. इन दो चीजों के बीच बड़ा विवाद है कि जीवन में सफलता अधिक महत्वपूर्ण है या फिर खुश रहना ज्यादा मायने रखता है.
सफलता खुशी से अधिक मायने रखती है : दरसल सफलता जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम लक्ष्य है और इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे हासिल करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए. प्राम्भिक अवस्था में सफल होने के लिए जीवन में कई चीजों की कुर्बानियां देनी पड़ती हैं लेकिन सफल होते ही आप अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में समर्थ हो जाते हैं. आपकी अपने समाज में एक प्रतिष्ठा होती है तथा आप प्रसिद्धि और पैसे के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ते चले जाते हैं.
माता-पिता या अभिभावकों द्वारा कॉलेज में पढ़ाई कर रहे छात्रों को बचपन से ही पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने की सीख दी जानी चाहिए तथा उसे टेलीविजन देखने या अन्य प्रकार के खेलों में हमेशा समय बर्बाद न करने देने की मंशा से उस पर नजर रखनी चाहिए. माता-पिता द्वारा बचपन में बच्चों पर की गयी सख्ती आगे चलकर उनके लिए बहुत उपयोगी साबित होती है तथा इससे बच्चे अनुसाशित होने के साथ साथ अपने दायित्वों को समझने लगते हैं. बचपन का अनुशासन कॉलेज के दिनों में बहुत कारगर सिद्ध होता है.
कुछ अपवाद को छोड़कर कॉलेज में आने के बाद छात्र इतने परिपक्व हो जाते हैं कि सफलता हेतु कड़ी मेहनत के अतिरिक्त किसी अन्य चीज को वरीयता नहीं देते हैं. खुशी एक अस्थायी भावना है जबकि सफलता आजीवन आपके साथ रहती है तथा आगे की राह भी प्रशस्त करती है. साथ ही हर किसी के लिए ख़ुशी के अपने अलग मायने हैं. कोई गिटार बजाकर खुश हो सकता है तो कोई क्लास असाइनमेंट्स को बहुत बेहतर तरीके से करने के बाद ही खुश हो पाता है.
खुशी सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है: इसमें कोई शक नहीं कि जीवन में कुछ भी करने के पीछे सिर्फ एक ही प्राथमिक कारण होता है वह है कार्य विशेष को करके खुश होना, इसके बाद अन्य चीजें द्वितीयक कारण के रूप में आती हैं. वस्तुतः खुशी भी सफलता की एक अनिवार्य कड़ी है. सफलता मिलने पर हम स्वतः खुशी महसूस करते हैं. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जो लोग जीवन में हमेशा खुश रहते हैं वे अपने जीवन में उतने ही सफल भी होते हैं. एक तरफ खुशी किसी भी तरह की सफलता प्राप्त करने में मौलिक भूमिका निभाती है जबकि दूसरी तरफ सफल होने पर स्वतः खुशी का माहौल होता है. यानी खुशी और सफलता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.
अध्ययन के दौरान अध्ययन करने के साथ साथ छात्रों को माता-पिता या शिक्षकों द्वारा अपनी रुचिगत गतिविधियों में भाग लेकर जीवन का सही आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इन गतिविधियों में भाग लेने से उनके व्यक्तित्व में निखार आएगा तथा वे आगे चलकर अध्ययन क्षेत्र में सफलता हासिल करते हुए एक अच्छा इंसान बन पाएंगे.
सफलता प्राप्ति के बाद भी अगर कोई व्यक्ति खुश नहीं रहता तो उसके लिए जीवन में सफलता का कोई मायने नहीं है. अगर वे अपनी सफलता का आनंद नहीं उठा पाते तो उनके जीवन में हमेशा एक खालीपन रहता है जिसकी भरपाई शायद दुनिया की कोई भी चीज नहीं कर पाएगी.
आगर हम जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं तो उसके लिए हमें अपनी सहजात भावनाओं का त्याग करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि अपने लक्ष्य के अनुसार हमेशा सही दिशानिर्देश के जरिये मनोवांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है. जब ईश्वर ने हमारे अन्दर खुश रहने की सहजात प्रवृति दी है तो हम उसका हनन क्यों करें ? क्यों न हम अपनी छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करके जीवन को और सफल बना लें.
वस्तुतः ख़ुशी और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं लेकिन हमें हमेशा भौतिक सुखों के पीछे ही नहीं भागना चाहिए. हमें इस जीवन को संपूर्णता में जीने का प्रयास करना चाहिए.