संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा-2013 (आईएएस 2013) के अंतिम परिणाम घोषित किये. इस परीक्षा में तृतीय स्थान पर चयनित रचित राज ने निस्संदेह अत्यंत सम्मानजनक उपलब्धि अर्जित की, जिसके लिए वह शत-शत बार हार्दिक बधाई के पात्र हैं.
झारखंड के डाल्टनगंज के रचित राज को कभी पढ़ाई के लिए डांट नहीं पड़ी, लेकिन उन्होंने सही राह पर मेहनत की और पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में तीसरा स्थान लाकर हर किसी को चौंका दिया...
बचपन का सपना था सोसायटी के लिए कुछ करना। देश को गुड गवर्नेंस के जरिए प्रगति की राह पर ले जाना। बस इसी चाहत को पूरा करने के लिए सिविल सर्विसेज को चुनने वाले झारखंड के डाल्टनगंज के रचित राज ने आखिरकार अपनी मंजिल पा ही ली। २०१३ में आयोजित सिविल सर्विसेज एग्जाम में रचित को पहले ही अटेम्प्ट में तीसरी रैंक मिली। ये अलग बात है कि उन्हें कतई इस सफलता की उम्मीद नहीं थी। इसलिए यह रिजल्ट एक सरप्राइज की तरह सामने आया है। हालांकि वे खुश हैं कि उनकी ईमानदार मेहनत रंग लाई।
देश सेवा का प्लेटफॉर्म
बीआइटी, वेल्लोर से बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक करने वाले रचित कहते हैं, यूथ राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी निभाना चाहते हैं। सिविल सर्विसेज देश सेवा से जुड़ने का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। मैं भी हमेशा से गरीब तबके और समाज के पिछड़े लोगों के विकास के लिए काम करना चाहता था, क्योंकि उनकी हालत देखकर मुझे काफी अससोस होता था। इसलिए बचपन में ही तय कर लिया था कि जब भी देश सेवा का मौका मिलेगा, उसे हाथ से नहीं जाने दूंगा। मुझे कभी किसी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने का क्रेज नहीं था। मैं गुड गवर्नेंस के साथ सोसायटी में डेवलपमेंट लाना चाहता हूं। इसलिए अब के बाद मेरी पहली कोशिश यही होगी कि सीधे लोगों से कनेक्ट करूं। स्थानीय समस्याओं को दूर करने के प्रयास के साथ ही ब्यूरोक्रेसी को टेक्नोलॉजी फ्रेंडली बनाऊं। पुलिस को और विजिलेंट बनाऊं। महिलाओं की सुरक्षा आज एक बड़ा मुद्दा है। इसके लिए २४-७ हेल्पलाइन नंबर शुरू करने का इरादा है। साथ ही किसानों के विकास के लिए काम करना चाहता हूं।
ब्यूरोक्रेट्स से अपेक्षाएं
एक सफल ब्यूरोक्रेट वही है, जो लोगों से जुड़कर विकास और प्रशासन की जिम्मेदारी संभाले। क्योंकि जब कलेक्टिव तरीके से काम होगा, तभी समाज में बदलाव आएगा। इसके अलावा सिविल सर्वेंट का नम्र होना भी जरूरी है। हां, नम्रता का मतलब यह नहीं है कि वह निर्णय लेने में लचर हो। उन्हें देश हित में अपना निर्णय लेना होगा। यह सही है कि ब्यूरोक्रेसी में हमेशा से राजनीतिक हस्तक्षेप रहा है। लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह राष्ट्रीय एजेंडे के लिए किस चीज को सही मानता है और फिर उसके अनुसार लोगों को कनविंस करता है। पहले की तुलना में ब्यूरोक्रेसी में काफी चेंज आए हैं। ऑफिसर्स को कम से कम दो साल की स्थायी पोस्टिंग देने की बात चल रही है, जिससे कि अचानक होने वाले ट्रांसफर्स की नीति पर रोक लग सके।
सीक्रेट ऑफ सक्सेस
सिविल सर्विसेज में कामयाबी का कोई फिक्स्ड फॉर्मूला जैसा नहीं है, कहते हैं रचित। जो भी स्टूडेंट ईमानदारी के साथ पांच से छह महीने तैयारी करता है, सिलेबस के अनुसार टु द प्वााइंट स्टडी करता है, उसे सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है। जहां तक इंटरव्यू की बात है, उसमें कैंडिडेट की पूरी पर्सनैलिटी, प्रेजेंटेबल स्किल्स, एडमिनिस्ट्रेटिव केस स्टडी के जरिए प्रेशर हैंडल करने की क्षमता, लोगों से डील करने का हुनर, ऑनेस्टी और इंटेग्रिटी चेक की जाती है। इसमें जो खरा उतरता है, वही सक्सेस पाता है। मेरी सफलता में कड़ी मेहनत के साथ-साथ माता-पिता के मॉरल सपोर्ट ने अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने लाइफ के हर मोड़ पर मेरे फैसले में मेरा साथ दिया है।
प्लानिंग के साथ शुरुआत
रचित ने दिसंबर २०१२ में एक प्लानिंग के तहत सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की थी। रोजाना ४ से ५ घंटे फोकस्ड होकर पढ़ाई करते। वे कहते हैं, यूपीएससी एग्जाम का सिलेबस काफी वास्ट होता है। मुमकिन नहीं है कि आप सब कुछ पढ़ ही लें। इसलिए मैंने फोकस होकर पॉजिटिव एटीट्यूड के साथ तैयारी की। स्टडी मैटीरियल का रेगुलर रिवीजन करता रहा। इसके अलावा अपनी राइटिंग एबिलिटी पर भी वर्क किया क्योंकि प्रिलिमिनरी और मेन्स में सक्सेस के लिए यह बहुत जरूरी है। मैंने ज्यादा से ज्यादा क्वैश्चंस की प्रैक्टिस की। हां, इंटरव्यू से पहले थोड़ा नर्वस था कि क्या होगा? लेकिन मैं खुशकिस्मत रहा कि मुझसे पूछे गए करीब ९९ परसेंट सवाल ओपिनियन बेस्ड थे, जिसके जवाब मैंने पूरे विश्वास के साथ दिए।
सी-सैट से मिला फायदा
रचित की मानें तो यूपीएससी के सिलेबस में हुए बदलावों से नुकसान नहीं, फायदा ही हुआ है। खासकर जीएस और मेन्स के सिलेबस में इथिक्स का पेपर शामिल करने से एग्जाम का अप्रोच ज्यादा मॉडर्न और साइंटिफिक हो गया है। हां, यह जरूर है कि सी-सैट से साइंस स्ट्रीम वाले (इंजीनियरिंग और मेडिकल) कैंडिडेट्स को ज्यादा फायदा मिला है। क्योंकि वे रीजनिंग, एनालिटिकल क्वैश्चचंस और मैथ्स आदि के सवालों को आर्ट्स और कॉमर्स बैकग्राउंड वालों के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से डील कर सकते हैं। सवालों को अधिक तार्किक तरीके से सॉल्व कर सकते हैं। लेकिन इंग्लिश या हिंदी मीडियम का कोई भेदभाव नहीं है।
सक्षिप्त परिचय
- सेक्रेड हार्ट स्कूल, डाल्टनगंज (हजारीबाग) से दसवीं किया
- पिलानी के बिड़ला सीनियर सेकंडरी स्कूल से १२वीं किया
- बीआइटी, वेल्लोर से बायोटेक्नोल़ॉजी में बीटेक
- इंडियन फॉरेस्ट सर्विस एग्जाम में २३वां रैंक हासिल किया
- -पिता बैंक में जॉब करते हैं, मां गृहिणी हैं
- - बड़े भाई ऋषभ भी इंजीनियर हैं
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