संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा-2013 (आईएएस 2013) के अंतिम परिणाम घोषित किये. इस परीक्षा में दूसरे स्थान पर चयनित मुनीश शर्मा ने निस्संदेह अत्यंत सम्मानजनक उपलब्धि अर्जित की, जिसके लिए वह शत-शत बार हार्दिक बधाई के पात्र हैं.
मुनीश शर्मा ने दिल्ली में रहते हुए अपनी पढ़ाई और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारियां की. बचपन में ही पिता के गुजर जाने के बाद दिल्ली के मुनीश शर्मा को उनकी टीचर मां ने न केवल जतन से संभाला, बल्कि कुछ इस तरह तराशा कि उन्होंदने अपने दूसरे प्रयास में ही दूसरा स्थांन हासिल कर अपने जज्बे को दिखा दिया...
jagranjosh.com के साथ उनके साक्षात्कार के महत्त्वपूर्ण अंश निम्नलिखित है:-
जागरणजोश: क्या यूपीएससी में अपनी रैंक को लेकर कॉन्फिडेंट थे?
मुनीश शर्मा: पिछले बार मैंने बहुत अच्छी तैयारी की थी। मुझे पूरी उम्मीद थी कि सलेक्शन जरूर होगा। मैंने नेट पर रिजल्ट देखा, तो शुरू के टॉप रैंक में ही अपना नाम खोज रहा था, लेकिन नहीं मिला। मुझे लगा शायद टॉप में सलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद मैंने पूरा नाम लिखकर सर्च किया, लेकिन फिर भी नहीं आया। इस बार रैंक को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं था। तैयारी भी पिछली बार की तुलना में कम ही की थी, लेकिन जब यह पता चला कि मेरी ओवरऑल दूसरी रैंक आई है, तो ताज्जुब हुआ, पर खुशी भी हुई।
जागरणजोश: आपको लगता है कि सिविल सर्विसेज को लेकर युवाओं में अभी भी क्रेज है?
मुनीश शर्मा: सिविल सर्विसेज को लेकर युवाओं में आज भी बहुत क्रेज है, लेकिन बहुत से लोग इस एग्जाम को टफ मानकर इसकी तैयारी नहीं करते। कुछ आइआइटी-आइआइएम में चले जाते हैं, लेकिन वहां से भी अक्सर उनका लक्ष्य बदल जाता है, लेकिन जिन्हें अपने ऊपर पूरा विश्वास होता है वे यह एग्जाम जरूर क्लवालिफाई कर लेते हैं।
जागरणजोश: आपकी तैयारी में पेरेंट्स का क्या भूमिका रही है?
मुनीश शर्मा: फैमिली सपोर्ट बहुत मिला। बचपन में दादा हरिचंद्र शर्मा ने हमेशा प्रोत्साहित किया। एक बार स्कूल में इंडिया का मैप तैयार करना था, मुझसे बन नहीं पा रहा था। फिर दादाजी ने कहा कोशिश करो हो जाएगा। बाद में मेरे द्वारा तैयार किया गया मैप क्लासरूम में लगाया गया। वहां से मुझमें एक कॉन्फिडेंस आया। इसके अलावा मां ने बहुत मेहनत की। मैं दिल्ली में हरिनगर के उसी सरस्वती बाल मंदिर में पढ़ा, जहां मेरी मां पढ़ाती थीं। स्कूल में अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने परिवार को भी पूरी तरह संभाला। मैं बहुत छोटा था, तभी पापा का देहान्त हो गया। सारी जिम्मेदारी मां पर थी। लंबे समय से हार्ट पेशेंट होने के बावजूद मां ने हमें कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। पिछले साल उनकी हार्ट सर्जरी भी हुई। मेरे भविष्य के लिए कई बार वह अपनी दवा भी नहीं खरीदती थीं। आज जो कुछ भी हूं उन्हीं की वजह से हूं।
जागरणजोश: प्रिलिम्स, मेन्स और इंटरव्यू के लिए किस तरह की स्ट्रेटेजी बनाई?
मुनीश शर्मा: मैं स्कूल टाइम से ही पढ़ाई में ठीक था। कोर्स के अलावा दूसरी चीजें पढ़ने का शौक बचपन से था। सिविल सर्विसेज के प्रिलिम्स एग्जाम में किसी खास तरह की स्ट्रेटेजी नहीं बनाई। कैट की तैयारी की थी और रेगुलर न्यूजपेपर पढ़ता था। इसलिए कोई खास दिक्कत नहीं आई। मेन्स के लिए जरूर मेहनत की थी। निरवाण एकेडमी में टीचर्स ने बहुत हेल्प की। जगह-जगह पर उनका गाइडेंस काम आया। नोट्स बनाने के लिए इंटरनेट की जो अच्छी साइट्स थीं उनकी मदद ली। इंटरव्यू के लिए कुछ खास नहीं किया। इंटरव्यू में आप जो हैं बस वही शो करें। क्योंकि अगर आप कुछ छिपाने की कोशिश करेंगे, तो एक्सपर्ट्स आपको तुंरत पकड़ लेते हैं।
जागरणजोश: सिविल सर्विसेज एग्जाम में सिलेबस चेंज का कितना फर्क पड़ा? आप इस बदलाव को कितना सही मानते हैं?
मुनीश शर्मा: सिलिबस में जो चेंज हुआ है, मेरे ख्याल से वह सही है। ऑप्शनल सब्जेक्ट कम हो गए हैं। यह मेरे लिए फायदेमंद रहा। इससे सबको बराबर का चांस मिलता है। मेरा मेन सब्जेक्ट लॉ था। एमबीए के दौरान लॉ की थोड़ी बहुत पढ़ाई की थी, वही मेन्स एग्जाम में भी काम आई।
जागरणजोश: एक सिविल सर्वेंट के रूप में किस तरह की स्किल्स जरूरी हैं?
मुनीश शर्मा: हर परिस्थिति में काम करने की आदत होनी चाहिए। दूसरों को समझने की कला बहुत जरूरी है। इसके अलावा किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले पूरी खोजबीन जरूर करें।
जागरणजोश: एग्जाम की तैयारी के लिए कितना समय देते थे?
मुनीश शर्मा: जॉब में होने की वजह से ज्यादा टाइम तैयारी के लिए नहीं दे पाता था। रोज एक-दो घंटे ही पढ़ पाता था, लेकिन सैटरडे और संडे सात-आठ घंटे स्टडी करता था। इसके अलावा न्यूज पेपर बहुत पढ़ता था। कई न्यूज पेपर पढ़ने का शौकीन हूं। इससे बहुत मदद मिली।
जागरणजोश: एक सिविल सर्वेंट सोसायटी और कंट्री को किस तरह से अपना योगदान दे सकता है। जबकि राजनीतिक दखलंदाजी बहुत है। इसका सामना कैसे करेंगे?
मुनीश शर्मा: कहि रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
रहीम के इस दोहे को मैंने अपने जीवन में उतार लिया है। जब हमने देश सेवा की ठान ली है, तो विपरीत परिस्थितयों से क्या घबराना। हमेशा अच्छाई के रास्ते पर चलेंगे, तो बुराई कभी करीब नहीं आएगी।
जागरणजोश: इसके पहले जो जॉब कर रहे थे, उसके बारे में बताएं?
मुनीश शर्मा: तैयारी के दौरान टीम कंप्यूटर्स नाम की एक कंपनी में काम कर रहा था। इसके पहले केपीएमजी कंपनी में काम किया। शुरुआत दि स्मार्ट क्यूब नाम की कंपनी से थी। यहां मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। दूसरों से डीलिंग का खास अनुभव मैंने जॉब के दौरान ही हासिल किया है।
संक्षिप्त परिचय |
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सिविल सेवा परीक्षा, 2013 में दूसरा स्थान |
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