हिंदी माध्यम से पाई कामयाबी

Jul 24, 2021, 22:53 IST

सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम से 33वां स्थान प्राप्त करने वाले मुक्तानंद अग्रवाल से खास बातचीत :

सिविल सेवा परीक्षा-2007 में अपने पहले ही प्रयास में 33वां स्थान हासिल कर मुक्तानंद अग्रवाल ने यह दिखा दिया कि यदि एकाग्रता से तैयारी की जाए, तो मंजिल जरूर मिलती है। खास बात यह है कि उन्होंने हिंदी माध्यम से इतना ऊंचा स्थान पाया। राजस्थान के निवासी मुक्तानंद ने अपने अनुभव जोश को कुछ इस तरह बांटे..

4सिविल सेवा परीक्षा में 33वां स्थान प्राप्त करने पर आपको हार्दिक बधाई। इतनी बडी सफलता मिलने पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या रही?

अपनी कामयाबी का समाचार सुनने के बाद कुछ क्षण तो मैं विश्वास ही नहीं कर पाया कि मुझे इतना ऊंचा स्थान मिला है। मुझे सफलता की उम्मीद तो थी, पर लगता था कि बहुत ऊंचा रैंक कई साल तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को ही मिल पाता है। इसलिए यह समाचार अत्यंतविस्मयकारीतथा प्रसन्नतादायक था।

4सिविल सेवा परीक्षा में यह आपका कौन-सा प्रयास था?

यह मेरा पहला ही प्रयास था। मेरे लिए सबसे बडी खुशी की बात यह है कि अपने पहले ही प्रयास में मुझे इतनी बडी कामयाबी मिल गई। इसके लिए मैं अपने माता-पिता तथा अध्यापकों का शुक्रगुजार हूं।

4अपने परिवार तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं? क्या अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि होना इस परीक्षा में सफल होने के लिए आवश्यक है?

मैं एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से हूं। मेरे पिता बैंक कर्मचारी हैं और मेरी माता परिवार की देखभाल करती हैं। मेरे माता-पिता के संस्कार और प्रेरणा लगातार मेरे साथ रहे और मेरी सफलता में यह अत्यंत महत्वपूर्ण कारण रहा। मेरे परिवार की आर्थिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि असाधारण नहीं रही है, इसलिए मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि किसी भी पारिवारिक पृष्ठभूमि का विद्यार्थी इस परीक्षा में सफल हो सकता है।

4इस कामयाबी का सबसे बडा राज आपको क्या लगता है?

मुझे लगता है कि इस परीक्षा में सफल होने के लिए कोई असाधारण योग्यता नहीं चाहिए। इसके लिए वास्तविक आवश्यकता दृढ संकल्प, कठोर परिश्रम तथा उचित रणनीति की है। मैंने आरंभ से अंत तक सिर्फ इसी के बारे में सोचा। एकाग्र होकर समर्पित अध्ययन ही मेरी तैयारी का रहस्य है।

4सिविल सेवा परीक्षा में आपके वैकल्पिक विषय क्या थे? आपने यही विषय क्यों चुने?

मुख्य परीक्षा में मेरे वैकल्पिक विषय थे-संस्कृत साहित्य एवं दर्शनशास्त्र। प्रारंभिक परीक्षा में मैंने दर्शनशास्त्र विषय लिया था। चूंकि ये दोनों विषय मैंने स्नातक स्तर तक पढे थे, इसलिए इनसे मेरा पूर्व परिचय था। इसके अतिरिक्त इनमें मेरी पर्याप्त रुचि भी थी। वैसे भी सिविल सेवा परीक्षा में दर्शनशास्त्र तथा साहित्य के विषय ज्यादा पॉपुलर एवं अंकदायी माने जाते हैं।

4इस परीक्षा में आपका माध्यम क्या था? क्या आपको लगता है कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थी ही इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफल हो पाते हैं?

मैंने यह परीक्षा हिंदी माध्यम से दी है। यह ठीक है कि इस परीक्षा में सफल होने वाले विद्यार्थियों में बहुत बडी संख्या अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों की होती है, किंतु इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हिंदी माध्यम के विद्यार्थी इसमें सफल नहीं हो सकते। यदि हिंदी माध्यम के विद्यार्थी अपनी साम‌र्थ्य के अनुरूप विषयों का चयन करें तथा रणनीति के स्तर पर सजग रहें, तो उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

4क्या आपने कहीं से कोचिंग या मार्गदर्शन भी हासिल किया था?

मैंने दर्शनशास्त्र की तैयारी के लिए मुखर्जी नगर, दिल्ली स्थित दृष्टि/ दि विजन संस्थान के डॉ. विकास दिव्यकीर्ति का मार्गदर्शन प्राप्त किया। उन्होंने विषय की अवधारणाएं स्पष्ट करने के साथ-साथ आदर्श उत्तर लेखन की विधि का भी अच्छा अभ्यास कराया। साक्षात्कार के लिए भी मैंने दृष्टि में ही क्लासेज की और छद्म साक्षात्कार दिए। प्रत्येक स्तर पर उनका मार्गदर्शन मेरे लिए उपयोगी सिद्ध हुआ। (जब हमने डॉ. विकास दिव्यकीर्ति से बात की तो उन्होंने बताया कि मुक्तानंद पिछले वर्ष के उनके सबसे अच्छे विद्यार्थियों में से एक रहा है। उसकी सबसे खास बात थी, सूक्ष्म अवधारणाएं एवं समझने की उसकी क्षमता। इसके अतिरिक्त कम शब्दों में सारगर्भित रूप में अपनी बात को प्रस्तुत करना भी उसकी प्रमुख विशेषता थी।)

4भावी अभ्यर्थियों को इस परीक्षा की तैयारी के बारे में क्या सलाह देना चाहेंगे?

मैं यही कहना चाहूंगा कि उन्हें पूर्वाग्रहों से रहित होकर कठिन परिश्रम करना चाहिए। इस परीक्षा में कोई भी व्यक्ति सफल हो सकता है, यदि वह नियोजित रूप से परिश्रमपूर्वक अध्ययन करे। इसके अतिरिक्त यह भी सलाह देना चाहूंगा कि किसी भी कोचिंग संस्थान में प्रवेश केवल विज्ञापन देखकर न लें, बल्कि पुराने विद्यार्थियों से पूछकर और स्वयं एक-दो कक्षाएं करके अपने विवेक के आधार पर लें।

प्रस्तुति : अरुण श्रीवास्तव 

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Education Desk

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