हिट करें टारगेट

Nov 4, 2009, 04:05 IST

एआईपीएमटी-2010 की घोषणा हो चुकी है। समय कम है और करना है काफी कुछ। कैसे हिट करें टारगेट? बता रहे हैं धर्मशिला कैंसर हॉस्पिटल, दिल्ली के सीनियर न्यूरो सर्जन डॉ. पंकज कुमार..

इन दिनों किस प्रोफेशन का युवाओं में सबसे ज्यादा क्रेज है? इस बाबत हाल ही में हुए एक सर्वे हुआ। इसके मुताबिक, अधिकांश युवा प्रोफेसर के पेशे को पहले नंबर पर मानते हैं और दूसरे नंबर पर डॉक्टर के पेशे को। बेशक कई विकल्प होने के बावजूद डॉक्टर का क्रेज शायद कभी खत्म नहीं होगा।

डॉक्टर का पेशा मतलब संबंधित फील्ड का गहन ज्ञान, अत्यधिक धैर्य और जबरदस्त संवेदनशीलता। क्या आप हैं तैयार इस पेशे में आने के लिए? ऐसा न हो कि आप भी बन जाएं उन हजारों-लाखों प्रतिस्पर्धियों की भीड का हिस्सा, जो जरा-सी चूक की वजह से अपने सपने से समझौता कर बैठते हैं। इसलिए तैयारी ऐसी रखें, जिससे आपका निशाना बैठे एकदम अचूक।

नींव मजबूत हो तो..

नींव मजबूत हो, तो बडी से बडी और मजबूत इमारत खडी की जा सकती है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के समय भी आपको यही मूल मंत्र ध्यान रखना होगा। यदि 10वीं-12वीं कक्षा के स्तर के फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी पर पकड अच्छी है, तो समझ लीजिए आपकी आधी तैयारी यूं ही हो गई। इन विषयों पर अच्छी पकड का मतलब है अवधारणात्मक ज्ञान के साथ-साथ विषयों के एप्लिकेशंस की बेहतर समझ।

तैयारी के लिए कोई जादुई मंत्र नहीं है। इसके लिए आपको एक खास रणनीति के तहत पढाई करनी होगी। फिजिक्स में ज्यादा से ज्यादा फार्मूले तैयार करने चाहिए। इसमें टारगेट रखें कि न्यूमेरिकल्स नियत अवधि में कम्पलीट हो जाए। केमिस्ट्री की तैयारी टेबलर फॉर्म में करें और उसे लगातार रिवाइज करते रहें।

यदि बायोलॉजी अधिक प्रिय है, तो इसका अर्थ नहीं कि आप फिजिक्स के प्रति लापरवाही बरतें। इसी तरह, केमिस्ट्री अच्छी लगती है, तो बायोलॉजी से कन्नी न काटें। साथ ही याद रखें, टेक्स्ट बुक की अनदेखी कर दूसरे स्रोतों पर पूर्ण निर्भरता परीक्षा के अंतिम समय में भारी पड सकती है। भले ही आपको कुछ चैप्टर बोरिंग लगते हों, उन्हें बिल्कुल अनदेखा करने की बजाय एक बार जरूर पढ डालें। क्या पता उसी खास हिस्से से ज्यादा प्रश्न पूछे जाएं और वही बन जाएं सिलेक्शन के चंद निर्णायक प्रश्न।

मात्रा बडी या गुणवत्ता

क्वालिटी इज मोर इंपॉर्टेंट दैन क्वांटिटी-अंग्रेजी के इस प्रचलित कहावत पर ध्यान देने की जरूरत है। चूंकि आपके पास कम समय है। इसलिए अब सभी किताबों व ढेर सारे मैटीरियल्स को पढने-समेटने की बजाय, कम से कम और उपयोगी स्रोतों को ही फॉलो करें।

जैसे, एनसीईआरटी के बुक्स, किसी अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के टॉपिकवाइज नोट्स और एक संपूर्ण कही जाने वाली गाइड बुक, इस दिशा में ज्यादा मददगार हो सकते हैं। रोजाना इन्हीं से अभ्यास करें। एनसीईआरटी की बुक्स में दिए नोट्स को दोहराना न भूलें। उसमें दिए एक्सरसाइज को जरूर करें। इस तरीके से आप खुद को बेहतर स्थिति में महसूस करेंगे। जो पढा है, जिस किताब से पढा है, वह साफ-साफ आपको याद होगा।

मतलब साफ है, आप कठिन प्रश्न भी आसानी से हल कर सकेंगे, असमंजस या कन्फ्यूजन की संभावना कम से कम होगी।

बचाव रेड वायर सिंड्रोम से

ज्यादातर मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में निगेटिव मार्किंग होती है। अभ्यर्थियों के लिए यह एक बडा फियर-फैक्टर है। यदि पहली बार मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठने जा रहे हैं, तो जरूरी है कि आपको रेड वायर सिंड्रोम के बारे में पता हो।

दरअसल, परीक्षा में अमूमन चार स्तर के प्रश्न पूछे जाते हैं। पहले स्तर के प्रश्न वे हैं, जिनका सौ प्रतिशत उत्तर आपको पता होता है। दूसरे में आपको पचहत्तर प्रतिशत उत्तर आते है। तीसरे में मामला फिफ्टी-फिफ्टी का होता है और चौथे स्तर के सवालों का जवाब आपको बिल्कुल पता नहीं होता। जो अभ्यर्थी चौथे स्तर के सवाल भी देने के प्रलोभन से खुद को रोक नहीं पाते, वही हो जाते हैं रेड वायर सिंड्रोम के शिकार। परिणाम यह होता है कि यही बन जाता है उनकी विफलता का बडा फैक्टर।

इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रश्न-पत्र मिलते ही आप सभी सवालों को चार वर्गो में बांट लें, फिर उनके जवाब लिखें। वैसे, इस सिंड्रोम से बचने के लिए मॉडल प्रश्नों और पिछले साल के प्रश्नों का अधिकतम अभ्यास करें। अभ्यास के लिए अलग-अलग मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के पिछले वर्ष के प्रश्न-पत्रों का सेट हो, तो अच्छा। इससे सभी प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों की प्रकृति समझने में आसानी होगी।

पिछले वषरें के प्रश्नपत्रों के आधार पर सिलेबस के उन हिस्सों की पहचान करें, जिससे ज्यादा प्रश्न पूछे जाते हैं। कोशिश करें कि प्रश्न हल करने के बाद कमजोर पक्षों को दूर करने का प्रयास हो।

कोचिंग की जरूरत

इसमें कोई दोराय नहीं कि बेहतर कोचिंग संस्थान आपकी तैयारी को सही दिशा देते हैं। इसमें परीक्षा पूर्व रिहर्सल हो जाती है। आप नई-नई जानकारियों से अपडेट होते रहते हैं। कोई विषय कमजोर है, तो सामूहिक तैयारी से कमजोरी को दूर कर सकते हैं।

कब करें कोचिंग? यदि आपको लगता है कि सिलेबस कवर होने के बाद भी कई तरह की समस्याएं हैं, तो कोचिंग ज्वाइन करें। कोचिंग को कारगर बनाना आपके हाथ में है। कोचिंग क्लासरूम में पढाए जाने वालेलेक्चर्स पर अमल करें, होने वाले टेस्ट में हिस्सा लें और अपना बेस्ट देने का प्रयास करें। ऑल द बेस्ट!

प्रस्तुति : सीमा झा

seemajha@nda.jagran.com

रिवीजन का हिट फार्मूला

रिवीजन, रिवीजन और रिवीजन-यही एक मंत्र है, जिसे इस वक्त आपको याद रखना है। रिवीजन के लिए जितने चैप्टर्स हैं, उन्हें तीन हिस्सों-सबसे कठिन चैप्टर्स, मध्यम स्तर के मुश्किल चैप्टर्स और सबसे आसान चैप्टर्स में बांट लें। इनसे संबंधित पांच-पांच की-व‌र्ड्स (संबंधित सब्जेक्ट के मूल अवधारणाओं से जुडे कुछ खास शब्द) तैयार करें। इन की-व‌र्ड्स को मन में दोहराते रहें। अगर दोहराव के दौरान अटकते हैं, तो समझ लीजिए अभी तैयारी पूरी नहीं हुई है, क्योंकि आपने अवधारणाओं को पूरी तरह नहीं समझा है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है, आजमाएं जरूर लाभ होगा।

एआईपीएमटी व अन्य मेडिकल एंट्रेस एग्जाम

एआईपीएमटी-2010 के लिए तिथियों की घोषणा कर दी गई है। प्रारंभिक परीक्षा 3 अप्रैल, 2010 को और फाइनल परीक्षा 16 मई, 2010 को होगी। आवेदन करने की अंतिम तिथि 4 दिसंबर है।

प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना चाहिए।

अधिकतम उम्र 25 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए लॉग ऑन करें-

www.aipmt.nic.in

एमबीबीएस में एडमिशन के लिए अखिल भारतीय स्तर और राज्य स्तर पर कई परीक्षाएं ली जाती हैं। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स जैसे बडे और ख्यातिप्राप्त संस्थान सीधे प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं।

विभिन्न राज्यों के प्री-मेडिकल टेस्ट

गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

वर्धा मेडिकल कॉलेज-वर्धा, आ‌र्म्ड फोर्स-पुणे आदि।

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Education Desk

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