जब बिना हथियार संसद के गेट पर आतंकियों से भिड़ गई थी कमलेश यादव

13 दिसंबर, 2001 को संसद भवन पर हमला हुआ था। हालांकि, संसद भवन पर तैनात सीआरपीएफ की जवान कमलेश यादव ने आतंकियों की योजना को पूरी तरह विफल बना दिया था। कमलेश को 11 गोलियां लगीं, लेकिन इसके बावजूद भी आतंकियों से निहत्थे भिड़ गई थीं।

Aug 1, 2025, 18:53 IST
कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव की शौर्य कहानी
कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव की शौर्य कहानी

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और संसद लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। यह वह जगह है, जहां कानून आकार लेता है और देश के बड़े-बड़े फैसले लिए जाते हैं। हालांकि, संसद के इतिहास में 13 दिसंबर, 2001 का दिन किसी काले दिन से कम नहीं रहा, जब देश के लोकतंत्र के सबसे बड़े केंद्र पर आतंकवादी हमला हुआ। इस हमले को विफल बनाने में भारत के वीर बहादुर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहूति दी, जिससे यह एक बड़ा हादसा होने स बच गया। शौर्य और वीरता का परिचय देने वाले उन बहादुर सैनिकों में CRPF की एक मां भी थीं, जिन्होंने गेट नंबर एक पर आतंकवादियों को रोकते हुए शहादत प्राप्त की थी।

1994 में ज्वाइन किया था CRPF

कमलेश कुमारी यादव मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले की बघनी गांव की रहने वाली थीं। साल 1994 में उन्होंने CRPF ज्वाइन किया था। कुछ समय बाद उनकी ड्यूटी संसद भवन पर लगी। वह संसद भवन के गेट नंबर एक पर मुस्तैदी से तैनात रहती थीं और आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर कड़ी नजर रखती थीं। 

11 बजकर 40 मिनट पर हुआ था हमला

कमलेश की आदत थी कि वह प्रतिदिन शिफ्ट से पहले अपने पति राज किशोर से फोन पर बात करती थीं। अपने बच्चों के बारे में पूछना उनका आदत में शुमार था। इसके बाद वह ड्यूटी का निर्वाहन करती थीं। सामान्य दिनों की तरह वह 13 दिसंबर की सुबह भी गेट नंबर एक पर तैनात थी। इस दौरान सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर उन्होंने देखा कि एक सफेद रंग की अंबेस्डर कार, जिस पर संसद का नकली स्टीकर लगा हुआ है, तेजी से गेट नंबर एक ओर बढ़ रही है। इस देख कमलेश तुरंत चौंकन्ना हो गई और उन्होंने तेजी से आगे बढ़ते हुए कार सवारों को रूकने को कहा। उन्होंने कार में बैठे पांच लोगों से पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि कार में बैठे व्यक्ति कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि आतंकवादी हैं। उन आतंकवादियों ने कमलेश की एक नहीं सुनी और गोलियां चला दी। 

11 गोलियां झेलने के बाद भी नहीं रूकी

कमलेश ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और वह मौके से नहीं भागी। इस दौरान उन्हें 11 गोलियां लगी, लेकिन जमीन पर गिरने से पहले कमलेश बहुत जोर से चीखी। यह कोई सामान्य चीख नहीं थी, बल्कि उनकी साहस और तत्परता भरी चीख ने मौके पर मौजूद अन्य लोगों को भी सचेत कर दिया। इस वजह से सिर्फ कुछ ही सेकेंड में संसद भवन के दरवाजे बंद कर दिए गए और संसद भवन में मौजूद सांसदों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। उनके शौर्य से संसद भवन के अंदर एक बड़ा हादसा होने से बचा गया, लेकिन इस पूरी घटना में एक माली व अन्य 9 सैनिकों का बलिदान हो गया। बाद में खुफिया जानकारी से यह पुष्टि हुई थी कि संसद भवन में मौत की यह संख्या सैकड़ों से अधिक हो सकती थी। सांसदों के अंदर मौजूद होने के कारण आतंकवादियों ने ग्रेनेड और विस्फोटकों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर नरसंहार की योजना बनाई थी। हालांकि, वे इसमें विफल रहे।

2002 में मिला मरणोप्रांत अशोक चक्र

कमलेश यादव को उनके शौर्य व बहादुरी के लिए 26 जनवरी 2002 को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी बेटी ने राष्ट्रपति से यह उपहार प्राप्त किया।

CRPF मुख्यालय में रखा गया है ब्लॉक का नाम

आज सीआरपीएफ मुख्यालय में एक ब्लॉक का नाम कमलेश यादव के नाम पर रखा गया है। लड़कियों के लिए एक छोटा-सा स्कूल भी उनके नाम पर है। आज भी सीआरपीएफ में उनकी बहादुरी के किस्से सैनिकों की जुबान पर रहते हैं और बल में भर्ती होने वाली महिलाएं उनसे प्रेरणा लेती हैं।

लेखक-लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान,पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी 

 


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