सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई, Board of Control for Cricket in India) के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को हितों के टकराव के आधार पर बीसीसीआई का कोई भी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर (तीरथ सिंह ठाकुर) और न्यायाधीश न्यायमूर्ति एफएमआई खलीफुल्ला (फकीर मोहम्मद इब्राहीम खलीफुल्ला) की खंड पीठ ने 22 जनवरी 2015 को दिया.
खंडपीठ ने श्रीनिवासन के दामाद और चेन्नई सुपरकिंग्स टीम के अधिकारी गुरूनाथ मैयप्पसन तथा राजस्थान रायल्स के सह-अध्यसक्ष राज कुन्द्रा के खिलाफ सट्टेबाजी के आरोपों को सही पाया जबकि एन श्रीनिवासन को तथ्य छिपाने के आरोपों से बरी कर दिया.
खंडपीठ ने वर्ष 2013 के आईपीएल घोटाले में सजा पर निर्णय लेने के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की समिति बनाई. यह समिति ही इस पर निर्णय देगी. इस समिति में सर्वोच्च न्यायालय के ही सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन को शामिल किया गया है. यह समिति दुराग्रह को दूर करने और तथ्यपरक तथा पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करने के लिए मयप्पन और कुंद्रा को दी जाने वाली सजा का निर्धारण और टीमों के भाग्य का फैसला करेगी.
खंडपीठ ने बीसीसीआई के नियम 6.2.4 में सितम्बर 2008 में किए गए संशोधन को अवैध करार दिया. इसी संशोधन के जरिये क्रिकेट प्रशासकों को आईपीएल और चैम्पियंस लीग में टीमें खरीद कर इसमें व्यावसायिक हित बनाने की अनुमति प्रदान की गई थी.
खंड पीठ ने निर्देश दिया कि श्रीनिवासन सहित कोई भी व्यक्ति, जिसका व्यावसायिक हित हो, बीसीसीआई में किसी भी पद के लिए अयोग्य होगा और व्यावसायिक हित के आधार पर यह अयोग्यता उस समय तक प्रभावी रहेगी, जब तक ऐसे व्यावसायिक हित रहेंगे.
खंड पीठ ने छह सप्ताह के भीतर पदाधिकारियों के चुनाव के लिए वार्षिक आम सभा की बैठक आहूत करने का बीसीसीआई को निर्देश दिया.
खंडपीठ ने अपने निर्देश में कहा कि भ्रष्टाचार के लिए न केवल खिलाडि़यों और टीम के अधिकारियों बल्कि फ्रेंचाइजियों को भी दंडित किया जायेगा.
खंड पीठ ने कहा कि सांविधानिक संरचना के दायरे में बीसीसीआई ‘राज्य’ नहीं है लेकिन बीसीसीआई के कार्य ‘सार्वजनिक कार्य’ हैं और ऐसी स्थिति में वे संविधान के अनुच्छेद 226 केअंतर्गत हाई कोर्ट के रिट अधिकार क्षेत्र में आते हैं.
खंड पीठ ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए कहा कि उसे मयप्पन और कुंद्रा के टीम अधिकारी के रूप में सट्टेबाजी में शामिल होने के निष्कर्ष से असहमति व्यक्त करने की कोई वजह नजर नहीं आती. राज्य सरकार और केंद्र सरकार बीसीसीआई को पूर्ण स्वायतता देती है जो राष्ट्रीय टीम का चयन करती है और जिसका क्रिकेट पर पूर्ण नियंत्रण है लेकिन उसने (राज्य) क्रिकेट बोर्ड के अधिकारों को चुनौती देने के लिये कोई कानून बनाना उचित नहीं समझा.
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