प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओमान दौरे के बाद भारत को इस क्षेत्र में सामरिक बढ़त प्राप्त हुई है. दोनों देशों को बीच हुए एक समझौते के अनुसार भारत अब ओमान के दुकम पोर्ट का इस्तेमाल अपनी सैन्य गतिविधियों एवं लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए कर सकेगा.
सामुद्रिक रणनीति के लिहाज से दुकम पोर्ट तक भारत की पहुंच होना काफी महत्वपूर्ण है. इस पोर्ट से भारत इलाके में चीने के प्रभाव एवं गतिविधियों पर नजर रखने के साथ उसे चुनौती देने में सक्षम होगा.
भारत के लिए लाभ
• दुकम पोर्ट ओमान के दक्षिणपूर्वी भाग में स्थित है और यहां से एक साथ अरब सागर और हिंद महासागर दोनों तरफ नजर रखी जा सकती है.
• इस पोर्ट का सामरिक एवं रणनीतिक महत्व काफी ज्यादा है क्योंकि यह ईरान के चाबाहार बंदरगाह के नजदीक स्थित है.
• इस समझौते के बाद भारत अपने युद्धपोतों के रखरखाव के लिए दुकम पोर्ट और ड्राई डॉक का इस्तेमाल कर सकेगा.
• भारत सेशेल्स में एजम्पशन आइलैंड और मॉरीशस में एगालेगा बंदरगाह को पहले से ही विकसित कर रहा है, ऐसे में दुकम पोर्ट तक सैन्य पहुंच होने से भारत की सामुद्रिक सुरक्षा और मजबूत होगी.
• भारत ने दुकम पोर्ट पर सितंबर 2018 में एक पनडुब्बी भेजी थी. इसके अलावा वहां नौसेना का जहाज आईएनएस मुंबई और दो पी-8 आई निगरानी विमान भी गए थे
• इसे प्रधानमंत्री मोदी की दो दिवसीय ओमान यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धिद के रूप में देखा जा सकता है.
• इससे भारत इस क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की है जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.
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भारत-ओमान संबंध
भारत और ओमान के मध्य लंबे समय से घनिष्ठ विदेशी संबंध हैं. भारत का मस्कट में दूतावास है. भारत ने मस्कट में फरवरी 1955 में कांसुलेट आरंभ किया था जिसे 1971 में दूतावास का दर्जा दिया गया. भारत से मस्कट में पहली बार 1973 में राजदूत भेजा गया. वहीं ओमान ने 1972 में अपना दूतावास दिल्ली में आरंभ किया. ओमान में बड़ी संख्या में भारतीय लोग रहते हैं जो ओमान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. भारत और ओमान के मध्य व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र में भी घनिष्ठ संबंध हैं. राजनैतिक दृष्टि से भी दोनों देशों के बीच घना संबंध है. ओमान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है.
चाबहार में भारत
ओमान में मिली सफलता से पहले भारत ईरान में चाबहार पोर्ट के जरिए इस पूरे इलाके में चीन-पाक पर एक मानोवैज्ञानिक बढ़त बना चुका है. पाकिस्तान को बाईपास करते हुए चाबहार पोर्ट पहुंचना भारत के लिए रणनीतिक और राजनीतिक जीत है. इसके तहत भारत ने पहले चरण के विकास में करीब 85.21 मिलियन डालर का निवेश किया है. इसके अलावा भारत फीस के रूप में ईरान को दस साल में 22.95 मिलियन डालर देगा. भारत इस पोर्ट का अपने जरूरतों के लिहाज से इस्तेदमाल कर सकेगा. इसके चलते उसे ग्वािदर में चीन पाक पर रणनीतिक रूप से बढ़त भी मिल सकेगी.
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