NISAR Mission: भारत पहुंचा निसार सैटेलाइट, यहां पढ़ें निसार मिशन से जुड़ी सात प्रमुख बातें

इसरो और नासा का ऐतिहासिक जॉइंट मिशन नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) अब अपने आखिरी चरण में पहुँच गया है. इस मिशन के तहत अमेरिकी वायुसेना के विमान C-17 से निसार सैटेलाइट को बेंगलुरु पहुंचा दिया गया है.

यहां पढ़ें निसार मिशन से जुड़ी सात प्रमुख बातें
यहां पढ़ें निसार मिशन से जुड़ी सात प्रमुख बातें

NASA-ISRO SAR (NISAR) Mission: भारत की स्पेस एजेंसी इसरो और नासा का ऐतिहासिक जॉइंट मिशन नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) अब अपने आखिरी चरण में पहुँच गया है. इस मिशन के तहत अमेरिकी वायुसेना के विमान C-17 से निसार सैटेलाइट को बेंगलुरु पहुंचा दिया गया है.

निसार सैटेलाइट मिशन, अंतरिक्ष सहयोग में अमेरिका-भारत संबंधों में एक मील का पत्थर साबित होगा. यह एक नागरिक अंतरिक्ष सहयोग मिशन है, साथ ही यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (Earth observation satellite) है.       

निसार सैटेलाइट को नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया जा रहा है. इस मिशन की शुरुआत 2014 में हुई थी.  

निसार मिशन की सात प्रमुख बातें:

1.नासा-इसरो मिशन: निसार मिशन अंतरिक्ष में अपनी तरह का पहला सैटेलाइट मिशन होगा जो दो अलग-अलग राडार फ्रीक्वेंसी (L-बैंड और S-बैंड) की मदद से पृथ्वी की मैपिंग करेगा. इस मिशन को लेकर अमेरिका और भारत की अंतरिक्ष एजेंसियों ने वर्ष 2014 में एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे.

2. संरचना : यह एक डबल फ्रीक्वेंसी इमेजिंग रडार सैटेलाइट है, जिसमें L-बैंड और S-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार उपकरण लगे है. इस सैटेलाइट का भार 2,800 किलोग्राम है. L-बैंड 24 सेंटीमीटर और S-बैंड 13 सेंटीमीटर का है. इसरो ने S-बैंड का मिर्माण किया है, जबकि L-बैंड नासा द्वारा विकसित किया गया है.

3. लॉन्चिंग: इस मिशन को जनवरी 2024 सतीश धवन अंतरिक्ष सेंटर से भेजने की तैयारी है. यह मिशन कम से कम तीन साल तक कार्य करेगा, जो 12 दिन में पूरी दुनिया का मैप तैयार करने में सक्षम है. इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जायेगा.

4. खासियत: इसरो इस मिशन के लिए इसरो स्पेसक्राफ्ट बस, प्रक्षेपण यान और संबंधित प्रक्षेपण सेवाएं और उपग्रह मिशन संचालन में सहयोग कर रहा है. नासा ने इस मिशन के लिए, नासा राडार रिफ्लेक्टर एंटीना, डिप्लॉयबल बूम, उच्च-दर संचार सबसिस्टम, जीपीएस रिसीवर, एक सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर और एक पेलोड डेटा सबसिस्टम भी प्रदान कर रहा है.

5. मिशन अवधि: नासा को अपने वैश्विक विज्ञान संचालन के लिए कम से कम तीन वर्षों के लिए L-बैंड रडार की आवश्यकता होगी, जबकि इसरो कम से कम पांच वर्षों तक S-बैंड रडार का उपयोग करेगा. S बैंड रडार 8-15 सेंटीमीटर की तरंग दैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर काम करेगा.

6. महत्व: यह मिशन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की निगरानी और समझने में मदद करेगा, जिसमें समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, ग्लेशियरों के पिघलने की घटना आदि शामिल है. साथ ही यह मिशन डेटा जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी की संरचना को समझने में मदद करेगा. यह मिशन दोनों देशों सहित पूरे विश्व में होने वाली क्लाइमेट से जुड़ी घटनाओं के बारें में जानकारी एकत्र करने में मदद करेगा. इसकी मदद से बायोमास, प्राकृतिक खतरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और भूजल के बारे में भी जानकारी प्राप्त की जा सकेगी.

7. उपयोगिता: निसार मिशन की मदद से एक डेटा बैंक तैयार किया जायेगा जिसमें पृथ्वी की सतह में परिवर्तन, प्राकृतिक खतरों और पारिस्थितिक तंत्र की गड़बड़ी से संबंधित जानकारियां होंगी. इसकी मदद से वन और कृषि क्षेत्रों के लिए अहम जानकारी एकत्र की जा सकेगी, साथ ही भविष्य की जलवायु मॉडल अनिश्चितता में भी कमी आयेगी.

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