मध्य प्रदेश में भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाद अब एक और रेलवे स्टेशन का नाम बदला जाएगा. सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा किया है कि इंदौर के पातालपानी रेलवे स्टेशन (Patalpani Railway Station) का नाम बदलकर ‘टंट्या मामा’ रेलवे स्टेशन (Tantya Mama railway station) किया जाएगा.
मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि इंदौर में 53 करोड़ की लागत से बन रहे बस स्टैंड और पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम तांत्या मामा के नाम पर रखा जाएगा. शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया कि जनजातीय गौरव, मामा टंट्या भील का बलिदान दिवस 4 दिसंबर को है.
Bhopal, Madhya Pradesh | CM Shivraj Singh Chouhan addressed the cabinet to discuss the renaming of Patalpani Railway Station to Tantya Mama Railway Station. pic.twitter.com/wpZcPHSK3b
— ANI (@ANI) November 23, 2021
मुख्यमंत्री ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस तरीके से भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन नाम बदलकर कमलापति रखा है. वैसे ही पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम जननायक टंट्या भील के नाम पर रखा जाएगा. यह स्टेशन इंदौर-अकोला रेल लाइन पर पड़ने वाला एक छोटा सा स्टेशन है, जिसका पातालपानी झरना पर्यटन स्थल घूमने आए लोग इस्तेमाल करते हैं.
हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी बदला
गौरतलब है कि इससे पहले भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर कमलापति स्टेशन कर दिया गया था. मध्य प्रदेश सरकार ने स्टेशन का नाम बदलकर महान गोंड रानी कमलापति के नाम पर करने का प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा था. मंत्रालय ने मंजूरी देते हुए रेलवे बोर्ड को बदलाव के लिए पत्र लिख दिया और बोर्ड ने हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति करने की अधिसूचना जारी कर दी थी.
इंदौर में 53 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले बस स्टैंड और पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या मामा के नाम पर रखा जायेगा। #जनजातीय_गौरव_सप्ताह pic.twitter.com/4ZRRQIuc3T
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) November 22, 2021
टंट्या मामा कौन हैं?
जानकारों का कहना है कि टंट्या भील का जन्म खंडवा जिले की पंधाना तहसील में साल 1842 में हुआ था. पिता भाऊ सिंह ने टंट्या को लाठी और व तीर-कमान चलाने का हुनर सिखाया. टंट्या ने धनुष बाण के साथ लाठी चलाने और गोफन कला में इतनी निपुणता हासिल कर ली कि उनकी चर्चा होने लगी.
टंट्या ने अंग्रेजों के चाटुकार सूदखोरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और घर-बार छोड़कर जंगल में छिपकर रहने लगे. कम समय में ही टंट्या मामा की दहशत अंग्रेजों में इस कदर बस गई कि वो उनका नाम सुनकर ही कांपने लगते थे. मध्य प्रदेश के झाबुआ और आसपास के जनजातीय इलाकों में टंट्या मामा ने कई जगह ब्रिटिश खजाने को लूटा. वे इस धन को गरीब लोगों के बीच बांट देते थे.
अंग्रेजों ने टंट्या मामा को धोखे से पकडवा लिया. उसे 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में सजा दी गई. लेकिन जब टंट्या मामा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश करने को जबलपुर ले जाया जा रहा था तो उसके समर्थन में जगह-जगह हुजूम उमड़ पड़ा था.
टंट्या को 19 अक्टूबर 1889 को फांसी की सजा सुनाई गयी और महू के पास पातालपानी के जंगल में उसे गोली मारकर फेंक दिया गया था. जहां पर इस ‘वीर पुरुष’ की समाधि बनी हुई है. वहां से गुजरने वाली ट्रेनें रूककर सलामी देती हैं.
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