अंतरराष्ट्रीय मौसम संगठन तथा मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली प्राइवेट एजेंसी स्काईमेट द्वारा मार्च 2017 में यह घोषणा की गयी कि प्रशांत महासागर में अलनीनो उत्पन्न होने के कारण भारत में गर्मियां सामान्य से अधिक गर्म होंगी तथा मानसून भी कमज़ोर रह सकता है.
विश्व मौसम संगठन के अनुसार जून और जुलाई में प्रशांत महासागर में अलनीनो उत्पन्न होने की संभावना है जिससे इस वर्ष जून से सितंबर के मध्य मॉनसून 92 से 95 प्रतिशत तक हो सकता है. स्काईमेट की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-पूर्व में जुलाई-अगस्त तक प्री-मॉनसून बारिश आरंभ हो सकती है. भारतीय मौसम विभाग अप्रैल में मानसून संबंधी अनुमान जारी करेगा.
अल-नीनो को इस वर्ष भी कमजोर मानसून के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया मौसम विभाग के मुताबिक अल-नीनो से एशिया में सूखा और दक्षिण अमेरिका में भारी बारिश की संभावना बन रही है. अल-नीनो का असर जुलाई से दिखने को मिल सकता है. वर्ष 2016 में मानसून अच्छा रहा था जिससे भारत में बम्पर खरीफ फसल हुई थी लेकिन वर्ष 2017 में मानसून कमज़ोर रहते फसलों के प्रभावित होने की आशंका है. इससे पहले 2014 और 2015 में भी अल-नीनो के चलते भारत में किसानों को सूखे की मार झेलनी पड़ी थी.
महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे कम मॉनसून वर्षा की आशंका है.
अल-नीनो
प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म होने को अल-नीनो प्रभाव कहते हैं. अल-नीनो प्रभाव के कारण समुद्री धारा एवं वायु प्रवाह की दिशा बदल जाती है. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानसून पर तभी पड़ता है जब पृथ्वी के तापमान में 0.5 डिग्री से अधिक बढ़ोतरी होती है. इसके कारण विषुवत रेखा के साथ बहने वाली ट्रेड विंड कमज़ोर पड़ने लगती है जिससे उन देशों में मानसून कमज़ोर हो जाता है.
भारत के लिए महत्व
मानसून से भारत में 80 प्रतिशत वर्षा होती है तथा भारतीय कृषि की पानी की आवश्यकता पूरी होती है. भारतीय कृषि का लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र अभी भी वर्षा पर आधारित है. इससे भूमिगत जल स्रोतों में भी बढ़ोतरी होती है जिससे शहरी क्षेत्रों तथा ग्रामीण क्षेत्रों को पीने के पानी की उपलब्धता होती है. अल-नीनो का सबसे बुरा असर भारत में वर्ष 2009 में हुआ था. उस समय इसके कारण देश के कुछ इलाको में सूखे और अकाल के हालात पैदा हुए थे.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation