सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दहेज हत्या के दोषियों के लिए उम्रकैद को न्यूनतम सजा माना. निर्णय में बताया गया कि ऐसे जघन्य अपराध के लिए उम्रकैद से कम सजा नहीं दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए निर्णय में बताया कि अनुच्छेद 304 (बी) के तहत दोष साबित हो चुका है. अतः दायर क्षमा याचिका जिसमें कैलाशू उर्फ कैलाशवती के बुजुर्ग होने और इस घटना के 1996 में होने का तर्क सजा से बचने के लिए नाकाफी है.
ज्ञातव्य हो कि उत्तराखंड के रुड़की जिले में 17 फरवरी 1996 को रेनू को दहेज विशेष रूप से, टेलीविजन या कूलर और अन्य सामानों की मांग पूरी न होने पर जलाकर मार डालने के आरोप में मुकेश भटनागर (पति), कैलाशू उर्फ कैलाशवती (सास) और राजेश भटनागर को निचली अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा दी गई थी.
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