सुनामी की लहरें और उसका प्रभाव समुद्र के तल की बनावट और आकार-प्रकार से निर्धारित होती है. नासा के जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला और ओहायो स्टेट विश्वविद्यालय के संयुक्त शोध में यह रिपोर्ट दी गई. साथ ही जमीन या तट की बनावट भी यह तय करती है कि समुद्र के अंदर आए भूकंप से उठने वाली सुनामी की ऊंची-ऊंची लहरें किस हद तक नुकसान पहुंचाएंगी.
नासा और ओहायो स्टेट विश्वविद्यालय के संयुक्त शोध में यह बताया गया कि समुद्र के तल की बनावट सुनामी की रफ्तार और लहरों की ऊंचाई भी निर्धारित करती है. संयुक्त शोध में जापान में आए 9.0 रिक्टर स्केल के भीषण भूकंप के बाद आई सुनामी और अमेरिका के पश्चिमी तट स्थित कैलीफोर्निया के क्रेसेंट सिटी के तटीय इलाकों में आए समुद्री तूफान का तुलनात्मक अध्ययन किया गया. शोध में यह पाया गया कि दोनों तटीय इलाकों में समुद्र का तल एकसमान नहीं था. शोध की रिपोर्ट मार्च 2012 के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित की गई.
जापान में आए भूकंप से पास के महासागर के तल का एक हिस्सा कंपित हुआ था जिससे तल की चट्टानों में हलचल हुई और वह हिस्सा कुछ ऊपर उठ गया था. जबकि अमेरिका में ऐसा नहीं हुआ था. वैज्ञानिकों का मानना है कि यही अवधारणा महासागर के तल में भी काम करती है. जल के नीचे कहीं पहाड़ हैं और कहीं गहरी खाई स्थित है. कहीं प्राचीन गोंडवाना चट्टानें हैं जिनमें कभी भूकंप नहीं आता और अगर आता है तो वह इतना भीषण होता है कि महाद्वीप की प्लेट्स तक खिसक जाती हैं. वहीं हिमालयी क्षेत्र की सबसे नवीनतम चट्टानों में सर्वाधिक भूकंप आते हैं लेकिन वह सतही अधिक होती हैं और नुकसान इतना भीषण नहीं होता है.
जापान में आए 9.0 रिक्टर स्केल के भीषण भूकंप के बाद आई सुनामी की उपग्रह से ली गई तस्वीरों और आंकड़ों से स्पष्ट है कि अगर सुनामी का केंद्र बहुत दूर भी है तो भी तबाही भीषण हो सकती है. इसलिए महासागर के तल की बनावट ही सबसे अहम भूमिका निभाती है. इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने किन्ही दो इलाकों में तूफानी लहरें एक साथ उठने के बाद भी उनका आपस में विलय होने की नई अवधारणा दी. यानी इससे दो तूफान मिलकर और बड़ी तबाही मचाएंगे या फिर आपस में ही विलीन हो जाएंगे यह दोनों स्थितियां महासागर के तल की बनावट से निश्चित होती हैं.
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