सर्वोच्च न्यायालय ने गोवा में खनन पर लगे 19 माह पुराने प्रतिबंध को 21 अप्रैल 2014 को हटा दिया. यह प्रतिबंध सितंबर 2012 में अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिए लगाया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिबंध को हटाने का फैसला न्यायमूर्ति एमबी शाह की निगरानी में बने पैनल की रिपोर्ट के बाद किया.
न्यायमूर्ति एके पटनायक की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए 20 मिलियन टन के कैपिंग प्रोडक्शन का सुझाव दिया. राज्य में खनन की कितनी क्षमता की अनुमति दी जाए, इसका फैसला विशेषज्ञ समिति अगामी छह माह में तय करेगी.
यह समिति खनन से निकलने वाले डंप्स को कैसे इस्तेमाल किया जाए इसका भी फैसला करेगी. इसके अलावा, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के एक किलोमीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के खनन का पट्टा नहीं दिया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय के वन बेंच ने कहा है कि 2007 के बाद वाले पट्टे के नवीकरण पर विचार नहीं किया जाएगा.
गोवा, लौह अयस्क का सबसे अधिक निर्यात करने वाले राज्यों में से एक है. इस प्रतिबंध की वजह से पिछले दो वर्षों में भारत के लौह अयस्क के निर्यात में 85 फीसदी ( 100 मिलियन टन) की कमी आई है. एक समय भारत लौह अयस्क का निर्यात करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश था लेकिन अब यह दसवें स्थान पर है.
गोवा से होने वाली अतिरिक्त आपूर्ति जो अपने उत्पादन का लगभग पूरा हिस्सा निर्यात कर देता है, उम्मीद के मुताबिक लौह अयस्क के अधिशेष को बढ़ाएगा क्योंकि रीयो टिंटो और बीएचपी बिल्लिटन जैसी बड़ी कंपनियां उत्पादन को बढ़ाएंगीं.
इस प्रतिबंध ने भारत के सबसे बड़े लौह अयस्क निर्यातक सेसा स्टर्लाइट को पंगु बना दिया था. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इसे सबसे अधिक लाभ होगा.
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