परमाणु जनदायित्व विधेयक पारित
काफी लंबे वाद-विवाद और कई महीनों की लंबी बहस के बाद संसद के दोनों सदनों ने परमाणु जनदायित्व क्षतिपूर्ति विधेयक (civil liabilities for nuclear damage bill, 2010) पारित कर दिया। लेकिन इस विधेयक के पारित होने के पूर्व इसमें कुल 18 संशोधन किए गए। इस विधेयक के पारित होने के पहले भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौता लागू नहीं हो सकता था। इस तरह से परमाणु समझौता लागू होने के रास्ते में अंतिम बाधा दूर हो गई साथ ही परमाणु व्यापार का मार्ग भी खुल गया। केद्र सरकार नवंबर 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के पूर्व इस विधेयक को पारित करवाना चाहती थी जिसमें वह कामयाब हो गई। लेकिन विधेयक को पारित करवाने के लिए सरकार को विपक्ष को राजी करने के लिए कुल 18 संशोधन करने पड़े। साथ ही विधेयक पारित होते समय सरकार ने इस बात का भी आश्वासन दिया कि जरूरत पडऩे पर इसमें भविष्य में और भी संशोधन किए जाएंगे।
परमाणु उत्तरदायित्व क्षतिपूर्ति विधेयक: मुख्य बिंदु
1. भारत की भौगोलिक सीमा के भीतर किसी भी गैर-सैनिक परमाणु संयंत्र में किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के ऑपरेटर का उत्तरदायित्व तय किया जाएगा। इस विधेयक के कानून बन जाने से दुर्घटना से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति या मुआवजा मिल सकेगा।
2. संसद में पारित विधेयक में 1500 करोड़ रु. के मुआवजे का प्रावधान है, जबकि मूल विधेयक में यह राशि मात्र 500 करोड़ रु. ही थी। साथ ही सरकार समय-समय पर इस राशि की समीक्षा भी करेगी। विधेयक में अधिकतम क्षतिपूर्ति दायित्व 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 2100 करोड़ डॉलर रखी गई है।
3. व्यक्तिगत जोखिम की दशा में क्षतिपूर्ति का दावा करने का समय बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया गया जबकि मूल विधेयक में यह अवधि मात्र 10 वर्ष ही थी।
4. क्षतिपूर्ति की रकम की समीक्षा के लिए पीडि़त व्यक्ति उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है।
5. दावों के निर्धारण के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का गठन किया जाएगा।
6. विधेयक के अनुसार परमाणु ऑपरेटर, आपूर्तिकर्ता या उसके कर्मचारियों पर परमाणु दुर्घटना के लिए किसी प्रकार का आरोप नहीं लगा सकेगा।
क्यों जरूरत थी इस विधेयक की?
भारत-अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते के बाद से भारत का कई देशों के साथ परमाणु सामग्री आपूर्ति का समझौता हो चुका है। इसकी वजह से कई विदेशी कंपनियां देश में परमाणु संयंत्रों का निर्माण कर रही हैं। परमाणु संयंत्रों में सदैव दुर्घटनाओं की संभानवा बनी रहती है। ऐसे में किसी दुर्घटना होने की स्थिति में किसका उत्तरदायित्व होगा इसका फैसला होना जरूरी था व तत्पश्चात क्षतिपूर्ति का निर्णय होना भी जरूरी था। इसी वजह से यह विधेयक पारित किया गया है।
भारत ने किए क्षतिपूर्ति संधि पर हस्ताक्षर
भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि पर 27 अक्टूबर को हस्ताक्षर कर दिए। इस संधि के तहत परमाणु दुर्घटना होने की स्थिति में पीडि़तों को एक रूप से वैश्विक कानूनी व्यवस्था के अंतर्गत मुआवजे का प्रावधान इस संधि में है। इस संधि को पहली बार 1997 में अपनाया गया था और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी में हस्ताक्षर के लिए रखा गया था। भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाला 14वां देश है।
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