अल्फा, बीटा और गामा किरणों में क्या अंतर है?

Dec 16, 2020, 18:08 IST

रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहा जाता है और यह तीन प्रकार की होती हैं: अल्फा, बीटा और गामा. आइये इस लेख के माध्यम से इन किरणों और इनके बीच क्या अंतर होता है के बारे में अध्ययन करते हैं.

Difference between Alpha, Beta and Gamma rays
Difference between Alpha, Beta and Gamma rays

रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहा जाता है और यह तीन प्रकार की होती हैं: अल्फा, बीटा और गामा. यानी रेडियोएक्टिविटी के दौरान, अल्फा, बीटा और गामा जैसी किरणें एटम से निकलती हैं जब अस्थिर परमाणु या एटम स्थिरता प्राप्त करने की कोशिश करता है.

ये रेडिएशन एक एटम के न्यूक्लियस से निकलते हैं. उनका व्यवहार एक दूसरे से भिन्न होता है, हालांकि तीनों कुछ आयनीकरण (Ionization) का कारण बनते हैं और इनमें प्रवेश (Penetration) करने की पॉवर भी होती है.

अल्फा किरणों  के बारे में (Alpha Rays)

अल्फा किरणें सकारात्मक रूप से चार्ज होने वाले कण हैं या फिर पॉजिटिवली चार्ज पार्टिकल्स होते हैं. अल्फा-कण अत्यधिक सक्रिय और ऊर्जावान हीलियम परमाणु है जिसमें दो न्यूट्रॉन और दो प्रोटॉन होते हैं. इसका प्रतीक α है. रेडियोधर्मी परमाणु के नाभिक से इन अल्फा कणों को छोड़ा जा सकता है. अल्फा क्षय प्रक्रिया में अल्फा कणों का उत्सर्जन होता है.

इन कणों में न्यूनतम प्रवेश शक्ति (Penetration power) और उच्चतम आयनीकरण शक्ति होती है. इनकी उच्च आयनीकरण शक्ति के कारण शरीर में पहुंचने पर वे गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन कणों का उत्सर्जन "प्रोटॉन रिच" परमाणुओं में होता है. अल्फा कण को बाद में हीलियम -4 नाभिक के रूप में पहचाना गया. वे कम दूरी तक कई परमाणुओं को आयनित करने में सक्षम होते हैं. चूंकि अल्फा कण में कोई इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए अल्फा कण एक आवेशित कण होता है. अल्फा कण सबसे बड़े कण हैं जो एक नाभिक से उत्सर्जित होते हैं. मुख्य रूप से (बहुत कम मात्रा में) स्मोक डिटेक्टर जैसे आइटम में ये किरणेंउपयोग की जाती हैं.

बीटा किरणों  के बारे में (Beta Rays)

बीटा कण अत्यंत ऊर्जावान इलेक्ट्रॉन हैं जो आंतरिक नाभिक से मुक्त होते हैं. इनका मास negligible होता है और चार्ज नेगेटिव होता है. न्यूक्लियस में एक न्यूट्रॉन एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन में एक बीटा कण के उत्सर्जन पर विभाजित होता है. इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि यह इलेक्ट्रॉन है जो नाभिक द्वारा तीव्र गति से उत्सर्जित होता है.

अल्फा कणों की तुलना में बीटा कणों में एक उच्च प्रवेश शक्ति होती है और आसानी से त्वचा के अंदर जा सकते हैं. बीटा क्षय के दौरान, परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या एक से घट जाती है, और प्रोटॉन की संख्या एक से बढ़ जाती है. यानि क्षय के इस संस्करण में भी द्रव्यमान संख्या (mass number) समान रहता है. हालाँकि परमाणु संख्या (atomic number) एक से बढ़ जाती है. इन किरणों का उपयोग चिकित्सा अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि नेत्र रोग का इलाज.

गामा किरणों के बारे में (Gamma Rays)

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के उच्च-आवृत्ति वाले छोर से उत्पन्न होने वाली तरंगों का कोई द्रव्यमान (Mass) नहीं होता है जिसे गामा किरणों के रूप में जाना जाता है.

गामा किरणों और एक्स-रे में उच्च-ऊर्जा तरंगें होती हैं जो प्रकाश की गति से काफी दूर तक की यात्रा कर सकती हैं और आमतौर पर अन्य सामग्रियों को भेदने की एक महान क्षमता होती है. इसी कारण से, गामा किरणों (जैसे कोबाल्ट -60 से) अक्सर चिकित्सा अनुप्रयोगों में कैंसर का इलाज करने और चिकित्सा उपकरणों को Sterilize करने के लिए उपयोग की जाती हैं.  अन्य सामग्रियों में प्रवेश करने की उनकी क्षमता के बावजूद, सामान्य रूप से, न तो गामा किरणें और न ही एक्स-रे में कुछ भी रेडियोधर्मी बनाने की क्षमता होती है.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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