Chandrayaan 3 Mission: भारत देश 14 जुलाई की दोपहर चंद्रयान-3 की लांचिंग से इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय जोड़ रहा है।
करीब चार साल बाद फिर से इस मिशन की ओर बढ़ रहे भारत की घोषणा के बाद से सिर्फ भारत नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की नजरें भारत की ओर टकटकी लगाकर देख रही हैं।
शुक्रवार की दोपहर जब भारत इस मिशन को लांच करेगा, तो पूरी दुनिया इस मिशन का गवाह बनेगी। वहीं, चार साल पहले भारत की ओर से चंद्रयान-2 लांच किया गया था।
इस बार का मिशन भारत के लिए और भी खास है, जो कि भविष्य में चांद पर नए शोध को लेकर भारत के लिए नए दरवाजे खोलने का काम करेगा।
ऐसे में चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 से अलग है। इस लेख के माध्यम से हम इन दोनों के मिशन के बीच अंतर को लेकर जानेंगे।
क्या था चंद्रयान-2 मिशन
चंद्रयान-2 भारत द्वारा चांद पर शोध के लिए लांच किया गया महत्वपूर्ण अभियानों में से एक अभियान है। इस अभियान को Geo Satellite Launch Vehicle(GSLV)-Mark-3 से लांच किया गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य चांद की सतह पर उतरकर वहां मिट्टी के नमूनों व अन्य चीजों को लेकर भारत स्पेस एजेंसी इसरो को डाटा भेजना था, जिससे भविष्य में चांद पर नए शोध कर सके। इस मिशन में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को भारत की ओर से विकसित किया गया था।
कब हुआ था लांच
चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को भारतीय समयानुसार 2ः43 बजे श्रीहरीकोटा रेंज से लांच किया गया था।
यदि होते सफल, तो चौथा देश होता भारत
भारत यदि अपने चंद्रयान-2 मिशन में सफल होता, तो भारत USSR, USA और China के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश होता।
क्योंकि, चंद्रयान-2 को चांद के सबसे दक्षिणी छोर पर 70 डिग्री के अक्षांश पर उतारना था। हालांकि, लैंडिंग से करीब 2.1 किलोमीटर पहले चंद्रयान-2 अपने रास्ते से भटक गया और इसके बाद पूरे देश में मायूसी छा गई थी।
क्या था प्रमुख उद्देश्य
चंद्रयान-2 का प्रमुख उद्देश्य खनिज विज्ञान, चांद पर बर्फ से बनी सतह के निशान की खोज करना, सतह का मानचित्रण करना और चंद्र रेगोलिथ की मोटाई का अध्य्यन करना था।
क्या है चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-2 के विफल होने के बाद इसरो ने चंद्रयान-3 की तैयारी कर ली है। इसके लिए एक बार फिर चांद को लेकर मिशन तैयार किया गया है और 14 जुलाई यानि शुक्रवार की दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर भारत इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहा है।
इस मिशन में चंद्रयान-3 की यात्रा 40 से 45 दिन होगी। इस अभियान के लिए Launch Vehicle Mark(LVM)-3 का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके माध्यम से यह मिशन लांच किया जाएगा।
चंद्रयान-2 से कितना अलग है चंद्रयान-3
भारत ने चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर का इस्तेमाल किया था। हालांकि, इस मिशन में विफलता के बाद भारत ने अपने नए मिशन में काफी बदलाव किए हैं। चंद्रयान-3 मिशन में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी रूप से विकसित प्रोप्लशन मॉड्यूल को शामिल किया गया है।
यह मिशन के लैंडर और रोवर को चांद की सतह पर छोड़ देगा और चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर पहुंच इसके चक्कर लगाता रहेगा। ऐसे में इससी मदद से संपर्क बना रहेगा।
सफल होने पर भारत होगा दुनिया का पहला देश
भारत के लिए यह मिशन बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि, यदि भारत इस अभियान में सफल होता है, तो यह ऐसा करने वाला पहला देश बन जाएगा। इससे पहले किसी भी देश ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग नहीं की है।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य लैंडर और रोवर को चांद की सतह पर सुरक्षित उताकर भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के साथ बर्फ की परत की खोज व अन्य खनिज खोज करना है।
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