बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की गणना कैसे की जाती है?

वर्तमान में, भारतीय फिल्म उद्योग का कुल राजस्व 13,800 करोड़ रुपये है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी फिल्म द्वारा कितना रुपया कमाया गया है, इसकी गणना किस प्रकार की जाती है. यदि नहीं, तो इस लेख को पढ़िए और पता लगाइए कि किसी फिल्म के कुल कलेक्शन को कैसे कैलकुलेट किया जाता है.
Box Office
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वर्तमान में, भारतीय फिल्म उद्योग का कुल राजस्व 13,800 करोड़ रुपये (2.1 अरब डॉलर) है जो कि 2020 तक लगभग 12% की दर से बढ़ता हुआ 23,800 करोड़ रुपये या 3.7 अरब डॉलर का हो जायेगा. अगर टीवी, फिल्म,म्यूजिक और अन्य सम्बंधित उद्योगों को एक साथ मिला दिया जाए तो वर्तमान में इसका कुल आकार वर्ष 2017 में 22 अरब डॉलर था जो कि 2020 तक बढ़कर 31.1 अरब डॉलर हो जायेगा.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी नई फिल्म ने रिलीज़ होने पर कितना लाभ कमाया; इसका अनुमान कैसे लगाया जाता है. इस लेख में हम आपको किसी फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को कैसे कैलकुलेट किया जाता है; इस में बारे में बतायेंगे.

आइये सबसे पहले इस लेख में इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों के बारे में जानते हैं;
प्रोडूसर या निर्माता: यह वह व्यक्ति होता है जो फिल्मों में निवेश करता है अर्थात किसी फिल्म के बनने में होने वाले सभी खर्चों को वहन करता है. एक निर्माता जो फिल्म बनाने में निवेश करता है उसे फिल्म का "बजट" कहा जाता है. इसमें अभिनेताओं को दिया जाने वाला शुल्क, तकनीशियनों, क्रू मेम्बर के आने-जाने, खाने और रहने का खर्चा भी शामिल होता है. इन खर्चों के अलावा फिल्म बनने के बाद इसके प्रमोशन पर किया जाने वाला खर्चा भी इसमें शामिल होता है.

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वितरक (Distributor): डिस्ट्रीब्यूटर;  प्रोडूसर और थियेटर मालिकों के बीच की कड़ी का काम करता है.  निर्माता अपनी फिल्म को "ऑल इंडिया” के वितरकों को बेचता है. कभी कभी निर्माता किसी थर्ड पार्टी की मदद से भी वितरकों को फिल्म के डिस्ट्रीब्यूशन राइट्स बेच देता है और फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही थर्ड पार्टी से अपना सौदा कर लेता है. इस स्थिति में फायदा या नुकसान थर्ड पार्टी के हिस्से में आता है.

box office collection india

भारतीय फिल्म उद्योग को मुख्य रूप से 14 सर्किटों में बांटा गया है और प्रत्येक सर्किट का अपना “वितरक प्रतिनिधि” होता है. देश में 14 सर्किट हैं; मुंबई, दिल्ली / यूपी, पूर्वी पंजाब, मध्य भारत, केंद्रीय प्रांत, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, निजाम, मैसूर, तमिलनाडु, असम, उड़ीसा और केरल.

थियेटर मालिक: वितरक पहले से तय एग्रीमेंट के आधार पर थियेटर मालिकों को उनके थियेटर में फिल्म दिखाने के लिए राजी कर लेता है. भारत में दो प्रकार के सिनेमाघर हैं: (i) सिंगल स्क्रीन (ii) मल्टीप्लेक्स चेन.
दोनों प्रकार के थियेटर मालिकों के पास वितरकों के साथ विभिन्न प्रकार के समझौते होते हैं. यह समझौते मुख्य रूप से वितरकों को सिनेमाघरों द्वारा भुगतान किए जाने के लिए "फिल्म स्क्रीन की संख्या" और "प्रॉफिट रिटर्न" पर केंद्रित होता है.

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि थियेटर मालिकों के पास ही टोटल कलेक्शन इकठ्ठा होता है. कुल कलेक्शन में से मनोरंजन कर (लगभग 30%) काटा जाता है. मनोरंजन कर अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा वसूला जाता है और यह हर सर्किट में अलग अलग रेट से वसूला जाता है. अंत में मनोरंजन कर चुकाने के बाद एग्रीमेंट के अनुसार जितना रुपया बचता है उसका एक हिस्सा डिस्ट्रीब्यूटर को लौटा दिया जाता है.

आइये अब जानते हैं कि बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को कैसे जोड़ा जाता है?
वितरकों को थियेटर मालिकों से मिलने वाला रिटर्न सप्ताह के आधार पर दिया जाता है. जैसे यदि फिल्म मल्टीप्लेक्स में रिलीज़ होती है तो पहले सप्ताह के कुल कलेक्शन का 50%, दूसरे सप्ताह में 42%, तीसरे में 37% और चौथे के बाद 30% भाग फिल्म वितरकों को दिया जाता है. लेकिन यदि फिल्म सिंगल स्क्रीन पर रिलीज़ होती है तो वितरक को फिल्म रिलीज़ के पहले सप्ताह से लेकर जब तक फिल्म चलती है वितरक को सामन्यतः 70-90% भाग देना पड़ता है.
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इस प्रकार डिस्ट्रीब्यूटर का लाभ/हानि= फिल्म खरीदने की लागत - वितरक का हिस्सा  

आइये अब इस पूरी प्रक्रिया को एक उदाहरण के माध्यम से समझें;
मान लीजिए कि एक मल्टीप्लेक्स में एक टिकट की औसत कीमत 200 रुपये है और कुल 100 लोगों ने फिल्म देखी और पूरे वीक के फिल्म के कुल 100 शो आयोजित हुए . इस प्रकार फिल्म का एक शो का कुल कलेक्शन हुआ ; 200 x 100x 100 =20,00,000 रुपये. यदि इस कमाई में से 30% की दर से मनोरंजन कर (6 लाख रुपये) घटा दिया जाये तो सिनेमाघर की एक शो की कुल कमाई हुई 14 लाख रुपये.

समझौते के अनुसार; थियेटर मालिक द्वारा पहले शो से वितरक को दिया जाने वाला हिस्सा होगा कुल कमाई का 50%; जो कि 14 लाख के हिसाब से 7 लाख हुआ.

दूसरे सप्ताह में होने वाला कुल कलेक्शन  (यदि 100 दर्शक और 80 शो मान लिए जायें) तो ; 200 x 80x 100 =16 लाख रुपये

यदि 16 लाख रुपये में से 30% का मनोरंजन कर चुका दिया जाये तो कुल कमाई बचेगी;1600000-480000=11,20,000 रुपये

अब वितरक को कुल हिस्सा मिलेगा; 11,20,000 रुपये का 42% जो कि बनेगा; 4,70,400 रुपये.

इसी तरह समझौते के अनुसार वितरक को हिस्सा तब तक मिलता रहेगा जब तक कि फिल्म उस थियेटर में चल रही है.

इसी तरह की कमाई वितरक को सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमाघरों से होगी.
सिंगल स्क्रीन पर एक टिकट की कीमत है 100 रुपये और पूरे वीक में 100 शो दिखाए जाते हैं और हर शो में 100 लोगों ने फिल्म देखी तो इस सिनेमाघर का पूरे वीक कुल कलेक्शन हुआ; 100x 100x 100 =10,00,000 रुपये.

यदि इस कमाई में से 30% की दर से मनोरंजन कर (3,00,000 रुपये) घटा दिया जाये तो सिनेमाघर की कुल कमाई हुई 7,00,000 रुपये. अब अगर समझौते के अनुसार 80% कमाई वितरक को मिलती है तो उसे कुल 5,60,000 रुपये एक सप्ताह की कमाई से मिलेंगे. और यदि फिल्म आगे के हफ़्तों में भी चलती रहती है तो वितरक को उसका हिस्सा मिलता रहेगा.

यहाँ पर यब बात बताना भी जरूरी है कि वितरक को सिनेमाघरों में टिकट की बिक्री से होने वाली आय के अलावा नॉन थियेट्रिकल स्रोतों जैसे म्यूजिक राईट, सेटेलाइट अधिकार और विदेशी सब्सिडी आदि से भी आय प्राप्त होती है.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की गणना कितनी पेचीदा लेकिन ट्रांसपेरेंट है. उम्मीद है कि इस बारे में आपका कांसेप्ट क्लियर हो गया होगा.

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