पर्वतीय स्थलों के लिए मशहूर उत्तराखंड राज्य उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों में शामिल है। यही वजह है कि उत्तर भारत में जब भी प्रमुख राज्यों की बात होती है, तो इसमें उत्तराखंड राज्य का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।
भारत का यह राज्य अपनी विविध संस्कृति और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है। गढ़वाल और कुमाऊं, दो मंडलों में बंटा यह राज्य अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व विख्यात है। हालांकि, आज का उत्तराखंड यूं नहीं बसा, बल्कि राज्य के गठन के पीछे एक लंबा संघर्ष जुड़ा हुआ है, जिससे आज का उत्तराखंड बना। इस लेख के माध्यम से हम उत्तराखंड के गठन के बारे में जानेंगे।
पहले उत्तर प्रदेश का था हिस्सा
पहले उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। हालांकि, उत्तराखंड के पहाड़ी लोग उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाके के लोगों से अलग थे। उनकी परंपराएं, संस्कृति और भाषा में अंतर था। वहीं, लोगों को लगता था कि सरकार पहाड़ी इलाकों के विकास पर कम ध्यान दे रही है, जबकि मैदानी इलाके में सरकार का अधिक ध्यान है।
1938 में उठी मांग
साल 1938 में श्रीनगर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें पहली बार पहाड़ी इलाके को अलग करने की मांग उठी। हालांकि, कई सालों तक यह मांग उठी रही, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन 1990 में यह आंदोलन तेज हुआ, जिसमें छात्रों और किसानों से लेकर महिलाएं तक शामिल हो गईं।
बड़ी घटनाओं से बदला आंदोलन का रूख
आंदोलन के तेजी पकड़ने के बाद जगह-जगह धरना-प्रदर्शन हुए। इस दौरान 1994 में खटीमा में पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई, जिसमें कुछ लोगों को गोली लगी। इसके अगले दिन मसूरी में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई गईं। वहीं, कुछ दिन बाद मुजफ्फरनगर में आंदोलकारियों की पुलिस के साथ झड़प और गोली चलने के वजह से आंदोलन और तेज हुआ और इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
कब हुआ उत्तराखंड राज्य का गठन
लंबे संघर्ष और जनता के दबाव के कारण उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, 2000 लाया गया, जिसका उद्देश्य 13 जिलों के साथ एक नया राज्य बनाना था। साल 2000 में 1 अगस्त को यह विधेयक लोकसभा में पेश हुआ पारित भी हो गया। वहीं, 10 अगस्त को यह राज्यसभा से भी पारित हो गया। 28 अगस्त को इस विधेयक को मंजूरी मिली और 9 नवंबर, 2000 में उत्तरांचल राज्य का गठन हुआ। हालांकि, साल 2007 में राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। आज उत्तराखंड की अपनी जीवनशैली और संस्कृति है। शहरी भागदौड़ से थक चुके लोग हर साल यहां सुकून की तलाश में पहुंचते हैं और खुद को तरोताजा करते हैं।
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