भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 31 मार्च, 2004 में दी गयी नयी परिभाषा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बैंक से ऋण लेता है और लोन लेने की तिथि से 90 दिन बाद भी ब्याज या मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण, गैर निष्पादित परिसंपत्ति (नॉन– परफॉर्मिंग असेट) माना जाता है.
देश के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल गैर-निष्पादित संपत्तियों (8.4 ट्रिलियन रुपये) में सबसे अधिक योगदान 6.09 ट्रिलियन रुपये या कुल NPA के 20.41% का योगदान “उद्योग क्षेत्र” का है. इसके बाद 696 बिलियन रुपये या कुल NPA के 6.53% योगदान के साथ “सेवा क्षेत्र” का नंबर है जबकि कृषि और संबद्ध गतिविधियों में 149 बिलियन रुपया फंसा हुआ है.
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इस लेख में हम शीर्ष 13 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का नाम प्रकाशित कर रहे हैं जिनके पास कुल NPA का सबसे बड़ा हिस्सा है. इन बैंकों के नाम और उनके पास कुल NPA का विवरण इस प्रकार है;
बैंक का नाम | सकल NPA (रुपये) |
1. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया | 2.01 ट्रिलियन |
2. पंजाब नेशनल बैंक | 552 अरब |
3. आईडीबीआई बैंक | 445 अरब |
4. बैंक ऑफ इंडिया | 434 अरब |
5. बैंक ऑफ बड़ौदा | 416 अरब |
6. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया | 380 अरब |
7. कैनरा बैंक | 377 अरब |
8. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया | 324 अरब |
9. इंडियन ओवरसीज बैंक | 317 अरब |
10. यूको बैंक | 243 अरब |
11. इलाहाबाद बैंक | 231 अरब |
12. आंध्र बैंक | 215 अरब |
13. कॉरपोरेशन बैंक | 218 अरब |
देश में सबसे अधिक NPA, देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक का है इसके पास देश के कुल NPA का 24.39% अर्थात 2.01 ट्रिलियन हिस्सा है, इसके बाद घोटालों में घिरी पंजाब नेशनल बैंक का नंबर है जिसके पास 552 बिलियन डॉलर का NPA है. आईडीबीआई बैंक इस लिस्ट में 445 बिलियन डॉलर के साथ तीसरे स्थान पर है.
यहाँ पर यह जानना दिलचस्प है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास दिसंबर 2017 तक कुल NPA का 88.74% हिस्सा था, जिसमे शीर्ष 5 बड़े NPA धारक बैंकों की हिस्सेदारी 46.76% है. निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी कुल NPA में कम है क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि 21 निजी बैंकों के पास कुल सकल NPA 93,044 करोड़ रुपये का था. निजी क्षेत्र के 21 बैंकों में से 19 बैंकों की सभी बैंकों के कुल NPA में 1% से भी कम की हिस्सेदारी है. हालाँकि इस तरह की उपलब्धि सार्वजानिक क्षेत्र के सिर्फ दो बैंकों; पंजाब और सिंध बैंक और विजया बैंक के पास ही है.
देश के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPAs) का बढ़ना देश की बैंकिंग व्यवस्था की कमर तोड़ सकता है. बैंकों का NPA बढ़ने से बैंकों की संपत्ति फ्रीज़ होती है और उनकी उधार देने की शक्ति का ह्रास होता है. गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPAs) के बढ़ने से अन्य उद्योगों को उनकी जरुरत के हिसाब से धन नही मिल पाता है इसका नकारात्मक प्रभाव देश के अन्य क्षेत्रों के विकास पर पड़ता है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बढ़ते NPA के पीछे सबसे बड़ा कारण इन बैंकों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप है. ये बैंक नेताओं और अन्य अफसरों के दबाव में आकर ऐसे लोगों और उद्योगों को लोन दे देते हैं जिनके लाभ अर्जित करने और लोन लौटाने की संभावना ही कम होती है. अतः अगर देश के बैंकों के NPA को घटाना है तो सरकार को शीध्र ही बैंकिंग सेक्टर में बड़े बदलाव करने होंगे.
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