मंगोलियाई कंजूर क्या है और इसका महत्व?

Jul 20, 2020, 16:16 IST

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा मंगोलियाई कंजूर के 108 खंडों का पुनर्मुद्रण करने की परियोजना आरंभ की है. उम्मीद है कि मार्च 2022 तक इन सभी संस्करणों को प्रकाशित किया जाएगा. आइए मंगोलियाई कंजूर के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं.

Mongolian Kanjur
Mongolian Kanjur

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के तहत प्रकाशित मंगोलियाई कंजूर के पांच पुनर्मुद्रित खंडों का पहला सेट भारत के राष्ट्रपति राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को 4 जुलाई, 2020 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भेंट किया गया था, जिसे धर्म चक्र दिवस के रूप में भी जाना जाता है.

इसके बाद एक सेट श्री गोनचिंग गानबोल्ड, भारत में मंगोलिया के राजदूत, संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), श्री प्रहलाद सिंह पटेल द्वारा अल्पसंख्यक मामले राज्य मंत्री श्री किरेन रिजिजू की उपस्थिति में सौंपा गया था. 

परियोजना के बारे में

संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) के तहत मंगोलियाई कंजूर के 108 खंडों के पुनर्मुद्रण के लिए इस परियोजना को शुरू किया है. उम्मीद है कि मार्च 2022 तक सभी मंगोलियाई कंजूर के 108 खंड प्रकाशित कर दिए जाएंगे.

मंगोलियाई कंजूर (Mongolian Kanjur) क्या है?

यह बौद्ध धर्म वैधानिक ग्रंथ है जिसे मंगोलिया में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ माना जाता है. मंगोलियाई भाषा में 'कंजूर' का अर्थ है 'संक्षिप्त आदेश' जो विशेष रूप से भगवान बुद्ध के शब्द हैं. कंजूर की भाषा शास्त्रीय मंगोलियाई है और  इसमें 108 खंड हैं.

इसका मंगोलियाई बौद्धों द्वारा काफी सम्मान किया जाता है और वे मंदिरों में कंजूर की पूजा करते हैं और अपने दैनिक जीवन में या अपनी प्रतिदिन कि जीवन शैली में धार्मिक रिवाज के रूप में कंजूर की पंक्तियों का पाठ करते हैं. मंगोलिया के लगभग हर बौद्ध मठ में कंजूर को रखा जाता है. आपको बता दें कि मंगोलियाई कंजुर को तिब्बती भाषा से अनुदित किया गया है. वास्तव में, मंगोलियाई कंजूर मंगोलिया को एक सांस्कृतिक पहचान उपलब्ध कराने का एक स्रोत है.

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भारत और मंगोलिया: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध

भारत और मंगोलिया के बीच ऐतिहासिक परस्पर संबंध सदियों पुराने हैं. भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक राजदूतों द्वारा, बौद्ध धर्म को मंगोलिया में आरंभिक ईस्वी के दौरान ले जाया गया था. परंपरागत रूप से, तिब्बती बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म था. यही कारण है कि, मंगोलिया में बौद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक प्रभुत्व है. 

1946-1990 के दौरान, इसे कम्युनिस्ट शासन के तहत इसे दबा दिया गया था, केवल एक प्रदर्शन मठ में ही रहने दिया गया था. कई पांडुलिपियों को जला दिया गया था और मठ अपने पवित्र ग्रंथों से वंचित हो गए थे. उदारीकरण शुरू होने के बाद, 1990 से, बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान हुआ है. 2010 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार, 53% मंगोलियाई बौद्ध के रूप में पहचान करते हैं.

भारतीय कनेक्शन के बारे में

प्रोफेसर रघु विरा ने 1956-58 के दौरान दुर्लभ कंजूर पांडुलिपियों की एक माइक्रोफिल्म प्रति प्राप्त की और उसे भारत ले आए. 1970 के दशक में, 108 खंडों में मंगोलियाई कंजूर को राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रोफेसर लोकेश चंद्रा द्वारा प्रकाशित किया गया था. अब वर्तमान संस्करण का प्रकाशन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन द्वारा किया जा रहा है. इसमें प्रत्येक खंड में कंटेंट की एक सूची है जो मंगोलियाई में सूत्र के मूल शीर्षक को इंगित करती है.

1955 में, भारत ने मंगोलिया के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए. तब से दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ संबंध अब एक नई ऊंचाई तक पहुंच गए हैं. इसलिए, मंगोलियाई सरकार के लिए भारत सरकार द्वारा मंगोलियाई कंजूर का प्रकाशन भारत और मंगोलिया के बीच सांस्कृतिक सिम्फनी के प्रतीक के रूप में कार्य करेगा और आने वाले वर्षों के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में योगदान देगा.

क्या आप पांडुलिपि (Manuscript) के बारे में जानते हैं?

यह एक हस्तलिखित रचना है जो मुख्य रूप से कागज, छाल, कपड़े, ताड़ के पत्ते पर लिखी जाती है, या अन्य सामग्री जो 75 वर्ष पहले हस्त लिखित संयोजन है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक, ऐतिहासिक अथवा सौंदर्यपरक महत्त्व है. आपको बता दें कि लिथोग्राफ (lithographs) और प्रिंटेड वॉल्यूम (printed volumes)पांडुलिपियां (manuscripts) नहीं हैं.

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (National Mission for Manuscripts) क्या है?

फरवरी 2003 में भारत सरकार द्वारा पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय द्वारा पांडुलिपियों में संरक्षित ज्ञान का दस्तावेजीकरण, संरक्षण एवं प्रसार करने के लिए अधिदेश के साथ शुरू किया गया था. मिशन का मुख्य उद्देश्य दुर्लभ और अप्रकाशित पांडुलिपियों को प्रकाशित करना है, ताकि उन में निहित ज्ञान शोधकर्ताओं, विद्वानों और बड़े पैमाने पर आम लोगों तक फैलाया जा सके. इसलिए, इस योजना के तहत, मंगोलियाई कंजूर के 108 खंडों के पुनर्मुद्रण को इस मिशन द्वारा आरंभ किया गया है. और यह उम्मीद है कि मार्च 2022 तक सभी संस्करणों को प्रकाशित किया जाएगा. यह कार्य प्रख्यात विद्वान प्रो. लोकेश चंद्रा की देखरेख में किया जा रहा है.

अंत में आपको बता दें कि भारत के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने धम्म चक्र दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में कहा था, ‘गुरु पूर्णिमा के इस पावन दिवस पर, हम भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इस अवसर पर मंगोलियाई कंजुर की प्रतियां मंगोलिया सरकार को भेंट की जा रही हैं. मंगोलियाई कंजुर का मंगोलिया में काफी सम्मान है.‘

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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