राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 27 जून, 2024 को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पेपर लीक जैसे मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने के साथ-साथ राष्ट्रीय आपातकाल का भी जिक्र किया है।
हाल ही में 25 जून, 2024 को राष्ट्रीय आपातकाल की घटना को 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। ऐसे में इन दिनों राष्ट्रीय आपातकाल का मुद्दा गर्म है। सियासी खेमे में सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से इस मुद्दे पर खींचातानी देखी जा सकती है। इस लेकर संसद में शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी देखा गया। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर राष्ट्रीय आपातकाल क्या है और भारत में यह कब और क्यों लगाया गया था।
राष्ट्रीय आपातकाल क्या है?
राष्ट्रीय आपातकाल वह स्थिति है, जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तथा अन्य अनेक स्वतंत्रताएं प्रतिबंधित कर दी जाती हैं। राष्ट्रीय आपातकाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आता है।
राष्ट्रीय आपातकाल कब घोषित किया जा सकता है?
राष्ट्रीय आपातकाल तब घोषित किया जाता है, जब देश की सुरक्षा को खतरा हो और ऐसा खतरा युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति उपर्युक्त कारकों के आधार पर आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
भारत में राष्ट्रीय आपातकाल
भारत के नागरिकों ने आगामी वर्षों में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के तीन उदाहरण देखे हैं।
1962 - भारत-चीन युद्ध के दौरान
1971 - भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान
1975 - इंदिरा गांधी के शासन के दौरान
हम यहां 1975 के राष्ट्रीय आपातकाल पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1975 का राष्ट्रीय आपातकाल
1975 के राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भारत में राजनीतिक अशांति का यह सबसे लंबा दौर था।
आपातकाल की अवधि लगभग 21 महीने तक चली, जो 25 जून 1975 की मध्य रात्रि से शुरू होकर 21 मार्च 1977 को समाप्त होने तक चली।
राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की तथा आपातकाल की घोषणा का एकमात्र कारण देश में आंतरिक अशांति बताया।
इस दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिए गए तथा प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई।
सरकार के निर्णय का विरोध करने वालों को गिरफ्तार कर लिया गया। बताया जाता है कि उस दौरान करीब एक लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की, जिनके पास संसद में बहुमत था।
इस घटना को भारत के लोकतंत्र के इतिहास में सबसे काले दिनों में से एक माना जाता है।
इस अवधि में जनसंख्या कम करने के उपाय के रूप में पुरुषों की जबरन नसबंदी भी की गई।
आपातकाल के बाद प्रभाव
21 मार्च 1977 को आपातकाल हटने के बाद देश में नए चुनाव हुए, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की हार हुई और जनता दल के मोरारजी देसाई भारत के नए प्रधानमंत्री चुने गए।
राष्ट्रीय आपातकाल को लगे 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। ऐसे में संसद में यह मुद्दा एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो निश्चित ही ऐसे विषयों पर सवाल पूछे जाने की संभावना रहती है।
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