भारत के अलग-अलग राज्यों में हमें देवी-देवताओं और वीरांगनाओं व महापुरुषों की अलग-अलग मूर्तियां देखने को मिलती हैं। ये मूर्तियां चौक-चौराहों से लेकर शहर और गांवों के भीतर बनी हुई हैं। इनमें से कुछ मूर्तियां अपनी विशालकाय आकार के लिए भी जानी जाती हैं। हालांकि, क्या आप भारत की सबसे ऊंची मूर्ति के बारे में जानते हैं। यह कौन-सी मूर्ति है और भारत में कहां स्थापित है, यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
भारत की सबसे ऊंची मूर्ति कौन-सी है
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि भारत की सबसे ऊंची मूर्ति कौन-सी है। आपको बता दें कि भारत की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी है। मूर्ति भारत के लौह पुरुष यानि कि सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित है। यह भारत के इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाती है, जो कि मूर्ति के साथ-साथ एक बड़े पर्यटन स्थल का रूप ले चुकी है। मूर्ति की कुल ऊंचाई 182 मीटर यानि कि 597 फीट है।
भूकंप के झटकों को सहने में है सक्षम
यह मूर्ति तेज भूकंप के झटकों और हवा का प्रतिरोध करने में सक्षम है। यह 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलने वाली हवाओं और 6.5 तीव्रता वाले भूकंप के झटकों को सह सकती है।
मूर्ति में किया गया है ब्रांज क्लेडिंग का इस्तेमाल
इस मूर्ति को बनाने में ब्रांज क्लेडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसके तहत मूर्ति के बाहरी हिस्से में 565 बड़े और करीब 6,000 छोटे हिस्सों को कांसे के पैनल से ढका गया है। इससे मूर्ति को सुनहरी चमक मिलती है।
33 महीनों में बनकर तैयार हुई थी मूर्ति
इस मूर्ति का निर्माण कार्य भी रिकॉर्ड समय में किया गया था। मूर्ति का निर्माण अक्टूबर 2013 में शुरू हुआ था, जो कि रिकॉर्ड समय 33 महीनों में पूरा हुआ था। मूर्ति को 31 अक्टूबर, 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया गया था।
मूर्ति में बनी है व्यूइंग गैलरी
सरदार पटेल की मूर्ति में करीब 153 मीटर की ऊंचाई पर छाती के पास एक गैलरी बनी है। यहां एक साथ 200 पर्यटक खड़े होकर विंध्य-सतपुड़ा की पहाड़ियों को देखने के साथ सरदार सरोवर बांध को देख सकते हैं। यहां तक पहुंचने में लिफ्ट द्वारा सिर्फ 30 सेकेंड का समय लगता है।
संग्रहालय में होता है जीवन से परिचय
मूर्ति के आधार में एक बड़ा संग्रहालय भी बनाया गया है। इसमें सरदार पटेल का जीवन परिचय और उनके द्वारा भारत के एकीकरण की कहानी को बताया गया है।
6 लाख गांवों से इकट्ठा हुआ था लोहा
इस मूर्ति को बनाने में खास बात यह है कि इसमें 6 लाख गांवों से लोहा लिया गया था। गांवों के किसानों ने अपने पुराने खेती के औजारों को मूर्ति के निर्माण में उपयोग होने के लिए दान किया था। साथ ही 6 लाख गांवों की मिट्टी भी यहां लाई गई थी, जिससे एक दीवार बनी हुई है।
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