भारत में यदि सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला की बात करें, तो यह अरावली की पहाड़ियां हैं। भारत की ये पहाड़ियां बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहाड़ियां हैं, जो कि लंबे समय से एक ढाल के रूप में बनी हुई हैं। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में यहां अवैध गतिविधियां बढ़ी हैं, जिससे पहाड़ी को नुकसान पहुंच रहा है और धीरे-धीरे ये पहाड़ी खत्म हो रही है। यही वजह है कि इन दिनों अरावली पर्वत श्रृंखला चर्चाओं में बनी हुई है और इसके संरक्षण को लेकर मुहिम छिड़ी हुई है।
कहां से कहां तक है अरावली की पहाड़ियां
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि अरावली की पहाड़ियां कहां से कहां तक हैं। आपको बता दें कि यह गुजरात से शुरू होकर दिल्ली तक फैली हुई हैं। दिल्ली में रायसीना हिल्स अरावली का ही सबसे उत्तरी अंतिम छोर है।
कितनी लंबी है अरावली पर्वत श्रृंखला
अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई की बात करें, तो यह कुल 692 किलोमीटर है। इसके सबसे ऊंचे शिखर की बात करें, तो यह गुरु शिखर है, जो कि माउंट आबू में है। इसकी कुल ऊंचाई 1722 मीटर है।
कितनी पुरानी है अरावली पर्वत श्रृंखला
अरावली पर्वत श्रृंखला पृथ्वी के इतिहास में सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक घटना है। इनका निर्माण करीब 2.5 अरब से 3 अरब साल पहले हुआ था। वहीं, इसकी तुलना में हिमालय की बात करें, तो हिमालय सिर्फ 4 से 5 करोड़ साल पुराना है।
कैसे हुआ था अरावली का निर्माण
अरावली का निर्माण प्रोटो-लाउरेशिया और गोंडवाना जैसे महाद्वीपों के आपस में टकराने से हुआ था। इन्हें क्रेटॉन कहा जाता है। ऐसे में बुंदेलखंड क्रेटॉन और मारवाड़ क्रेटॉन के बीच टक्कर होने की वजह से जमीन का हिस्सा ऊपर की ओर आ गया था।
बनते गए वलित पर्वत
टकराव के बाद भूमि की ऊपरी सतह पर दबाव बना और इससे चट्टानों में मोड़ पड़ गए। इस वजह से अरावली को वलित पर्वत यानि कि फोल्डेड माउंटेन कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अपने समय में अरावली पर्वत की ऊंचाई हिमालय की तरह ऊंची रही होगी।
अरावली में मिलते हैं खनिज
जिस समय अरावली पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण हुआ, तो उस समय यहां कई ज्वालमुखी गतिविधियां हुईं। अधिक गर्मी और दबाव की वजह से यहां की चट्टानें खनिज में बदली। आज यहां तांबा, सीसा और जस्ता पाया जाता है।
समय के साथ घटती गई अरावली पर्वत श्रृंखला
अरावली पर्वत श्रृंखला समय के साथ कम हो गई है। इसकी मुख्य कारणों में करोड़ों वर्षों तक धूप, पानी और हवा है। ऐसे में अब इसका सिर्फ कुछ ही हिस्सा बचा है, जिसकी ऊंचाई भी अधिक नहीं है। वहीं, कुछ जगहों पर इसका अवैध रूप से खनन किया जा रहा है, जिससे इसका अधिक क्षरण हो रहा है।
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