कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है?

कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है. यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था. कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक पैनल जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है. कॉलेजियम की सिफारिश (दूसरी बार भेजने पर) मानना सरकार के लिए जरूरी होता है.

May 9, 2019, 15:08 IST
Meaning of Collegium System
Meaning of Collegium System

भारत की न्यायपालिका के आंकड़े सिद्ध करते है कि भारत की न्यायिक प्रणाली में सिर्फ कुछ घरानों का ही कब्ज़ा रहा गया है. साल दर साल इन्ही घरानों से आये वकील और जजों के लड़के /लड़कियां ही जज बनते रहते हैं. जिस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियां की जातीं हैं उसे “कॉलेजियम सिस्टम” कहा जाता है.

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है और यह भारत की न्याय व्यवस्था के लिए क्यों ठीक नही है.

जजों को नियुक्त करने की क्या प्रक्रिया है?

कॉलेजियम वकीलों या जजों के नाम की सिफारिस केंद्र सरकार को भेजती है. इसी तरह केंद्र भी अपने कुछ प्रस्तावित नाम कॉलेजियम को भेजती है. केंद्र के पास कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच/आपत्तियों की छानबीन की जाती है और रिपोर्ट वापस कॉलेजियम को भेजी जाती है; सरकार इसमें कुछ नाम अपनी ओर से सुझाती है. कॉलेजियम; केंद्र द्वारा सुझाव गए नए नामों और कॉलेजियम के नामों पर केंद्र की आपत्तियों पर विचार करके फाइल दुबारा केंद्र के पास भेजती है. इस तरह नामों को एक - दूसरे के पास भेजने का यह क्रम जारी रहता है और देश में मुकदमों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है.

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कॉलेजियम किसी वकील या जज का नाम केंद्र सरकार के पास “दुबारा” भेजती है तो केंद्र को उस नाम को स्वीकार करना ही पड़ता है, लेकिन “कब तक” स्वीकार करना है इसकी कोई समय सीमा नही है. इस समय उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश K.M. जोसेफ के नाम के साथ यही प्रक्रिया चल रही है और नियुक्ति अटकी हुई है.

ज्ञातव्य है कि भारत के 25 हाईकोर्ट (25 वां आन्ध्र प्रदेश) में 395 और सुप्रीम कोर्ट में जजों के 4  पद खाली है. न्यायालयों की नियुक्ति के लिए 146 नाम पिछले 2 साल से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच मंजूरी ना मिलने के कारण अटके हुए हैं. इन नामों में 36 नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास लंबित है जबकि 110 नामों पर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है.

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कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है?

कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है. यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था. कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक फोरम जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है. कॉलेजियम की सिफारिश दूसरी बार भेजने पर सरकार के लिए मानना जरूरी होता है. कॉलेजियम की स्थापना सुप्रीम कोर्ट के 5 सबसे सीनियर जजों से मिलकर की जाती है जिनके नाम इस प्रकार हैं;

1. माननीय श्री न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (CJI)

2. माननीय श्री न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबड़े

3. माननीय श्री न्यायमूर्ति एन.वी. रमना

4. माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा

5. माननीय श्री न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन

सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है. इसके अलावा उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्‍नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है.

UPA सरकार ने 15 अगस्त 2014 को कॉलेजियम सिस्टम की जगह NJAC (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त‍ि आयोग) का गठन किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) कानून को असंवैधानिक करार दे दिया था. इस प्रकार वर्तमान में भी जजों की नियुक्ति और तबादलों का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम ही करता है.

NJAC का गठन 6 सदस्यों की सहायता से किया जाना था जिसका प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बनाया जाना था इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठ जजों, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ीं 2 जानी-मानी हस्तियों को सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी.

NJAC में जिन 2 हस्तियों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमिटी करती. इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी.

ऊपर दी गयी पूरी जानकारी के आधार पर यह बात स्पष्ट हो गया है कि देश की मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था “पहलवान का लड़का पहलवान” बनाने की तर्ज पर “जज का लड़का जज” बनाने की जिद करके बैठी है. भले ही इन जजों से ज्यादा काबिल जज न्यायालयों में मौजूद हों. यह प्रथा भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के लिए स्वास्थ्यकर नही है. कॉलेजियम सिस्टम का कोई संवैधानिक दर्जा नही है इसलिए सरकार को इसको पलटने के लिए कोई कानून लाना चाहिए ताकि भारत की न्याय व्यवस्था में काबिज कुछ घरानों का एकाधिकार ख़त्म हो जाये.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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