सियाचिन ग्लेशियर कहाँ है?
सियाचिन ग्लेशियर को पूरी दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है. सियाचिन ग्लेशियर; पूर्वी कराकोरम / हिमालय, में स्थित है. इसकी स्थिति भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग देशान्तर: 76.9°पूर्व, अक्षांश: 35.5° उत्तर पर स्थित है. सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 78 किमी है. सियाचिन, काराकोरम के पांच बड़े ग्लेशियरों में सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है.
सियाचिन विवाद के बारे में:
समुद्र तल से औसतन 17770 फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा "अक्साई चीन" इस इलाके में है. भारत को इन दोनों देशों पर नजर रखने के लिए इस क्षेत्र में अपनी सेना तैनात करना बहुत जरूरी है. 1984 से पहले इस जगह पर न तो भारत और न ही पाकिस्तान की सेना की उपस्थिति थी.
विवाद की वजह: वर्ष 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन इलाके को बेजान और बंजर करार दिया गया था. लेकिन इस समझौते में दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण नही हुआ था. वर्ष 1984 के आस-पास भारत को ख़ुफ़िया जानकारी मिली कि पाकिस्तान सियाचिन ग्लेसियर पर कब्ज़ा करने के लिए यूरोप की किसी कंपनी से “विशेष प्रकार के “गर्म सूट” बनवा रहा है, तुरंत ही भारत ने भी यही विशेष सूट पाकिस्तान से पहले बनवा कर सियाचिन ग्लेशियर (बिलाफोंड ला पास -Bilafond La pass) पर 13 अप्रैल 1984 को अपनी सेना तैनात कर दी. सेना इस कब्जे के लिए यहाँ पर
"ऑपरेशन मेघदूत" चलाया था. ज्ञातव्य है कि अगर ये सूट पाकिस्तान सेना को पहले मिल जाते तो पाकिस्तान की सेना इस जगह पर पहले पहुँच जाती.
पाकिस्तान की सेना ने भी 25 अप्रैल 1984 को इस जगह पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन ख़राब मौसम और बिना तैयारी के कारण वापस लौटना पड़ा. अंततः 25 जून, 1987 को पाकिस्तान ने 21 हजार फुट की ऊँचाई पर क्वैड पोस्ट (Quaid post) नामक पोस्ट बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी क्योंकि भारत की सेना के पास गोला-बारूद ख़त्म हो गया था. चूंकि भारत की सेना ने यहाँ पर पहले से कब्ज़ा कर लिया था इसलिए इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है. भारत यहाँ पर लाभदायक स्थिति में बैठा है.
वर्ष 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई. उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी होनी बंद हो गई है लेकिन दोनों ओर की सेना तैनात रहती है. सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये का खर्च आता है.
यदि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो इसके क्या परिणाम होंगे?
सियाचिन की ठण्ड के बारे में
सियाचिन में सैनिकों की नियुक्ति 18000 से 23000 फीट की ऊँचाई पर होती है और यहाँ का तापमान माइनस 55 डिग्री तक गिर जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में 22 के लगभग ग्लेसियर हैं. सियाचिन ग्लेसियर में स्थिति इतनी ज्यादा विकट होती है कि आपके शरीर को जितनी ऑक्सीजन की जरुरत होती है उसकी केवल 30% आपूर्ति ही इस जगह मिल पाती है. यहाँ सैनिकों को घुटनों तक बर्फ में घुसकर चलना पड़ता है. एक पूर्णतः स्वस्थ सैनिक भी कुछ कदम चल पाता है और यदि किसी सैनिक के दस्तानों, जूतों में पसीना आ जाता है तो वह कुछ ही सेकेंड में बर्फ में बदल जाता है जिससे अल्प तपावस्था (hypothermia) और शीतदंश (frostbite) जैसी बीमारियाँ उसकी जान की दुश्मन बन जातीं हैं.
सियाचिन ग्लेसियर में ठंडी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ पर यदि जवान कुछ देर तक अपनी उंगलियाँ बाहर निकाल ले तो उसकी उंगलियाँ गल जाती हैं. यहाँ तक कि राइफल जम जाती है और मशीन गनों को चलाने से पहले गर्म पानी से नहलाया जाता है.
यहाँ पर जवानों को उनकी जरुरत के हिसाब से खाना (प्रति दिन 4000-5000 के कैलोरी वाला) नही मिल पाता है जिसके कारण 3 से 4 महीनों में ही उनका वजन 5 से 10 किलो तक कम हो जाता है. यहाँ रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन द्वारा विशेष रूप से तैयार किया गया खाना भेजा जाता है. जवानों को हमेशा स्टोब को जलाकर बर्फ से पानी बनाना पड़ता हैं लेकिन आग/ईंधन की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण यह काम भी बहुत कठिन हो जाता है.
एक आश्चर्य की बात यह है कि इस इलाके में सैनिकों की मौत की मुख्य वजह भारत और पाकिस्तान के सैनिकों की बीच लड़ाई नही बल्कि यहाँ के मौसम की विपरीत परिस्तिथियाँ हैं. एक अनुमान के अनुसार अब तक दोनों देशों के 2500 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि सियाचिन ग्लेसियर में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई की मुख्य वजह क्या है और हमारे जाबांज सैनिक कैसी विषम परिस्तिथियों में यहाँ रहकर देश की सीमा की रक्षा कर रहे हैं. ऊम्मीद है कि यह लेख आपको रोचक लगा होगा. अंत में सियाचिन ग्लेसियर में तैनात सभी जवानों को सभी भारतीयों की ओर से कोटि कोटि नमन.
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