जल संसाधन प्रबंधन, जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग के आयोजन, विकास, वितरण और प्रबंधन से सम्बंधित गतिविधि है । यह जलचक्र प्रबंधन का उप-समुच्चय हैं । आदर्श रूप से, जल संसाधन प्रबंधन की योजना सभी की पानी की मांग को पूरा करने और उन मांगों को पूरा करने के लिए एक समान आधार पर पानी आवंटित करने से सम्बंधित है |
जल चक्र, वाष्पीकरण और वर्षा के माध्यम से, हाइड्रोलोजिकल प्रणाली को बनाए रखता है जो नदी, झीलों को बनाते हैं और कई किस्म की जलीय प्रणाली को आश्रय देते हैं | झीलें, स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों के बीच के मध्यवर्ती रूप हैं और इनमें पौधों और जन्तुओ की अनेक प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो नमी पर निर्भर रहतीं हैं |
जल से सम्बंधित सांख्यिकी
जल पृथ्वी की सतह के 70% भाग पर फैला हुआ हैं, लेकिन इसमें से केवल 3% ताजा पानी है। इसमें से 2% ध्रुवीय बर्फ पेटियों में है और केवल 1% नदियों, झीलों और अवभूमि जलवाही स्तर में है। इसका केवल एक अंश ही वास्तव में इस्तेमाल किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर पानी का 70% भाग कृषि के लिए, लगभग 25 % उद्योग के लिए और केवल 5% घरेलू उपयोग के लिए प्रयोग किया जाता है। हालांकि यह विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होता है जैसे औद्योगिक देश उद्योग के लिए जल के एक बड़े प्रतिशत का उपयोग करते हैं | भारत में कृषि के लिए 90%, उद्योग के लिए 7% और घरेलू इस्तेमाल के लिए 3% जल का उपयोग होता है।आज कुल वार्षिक मीठे पानी की निकासी 3800 घन किलोमिटर के लगभग है जो 50 साल पहले का दोगुना है (बांधों पर विश्व आयोग की रिपोर्ट, 2000) ।अध्ययनों से संकेत मिलता है कि एक व्यक्ति को पीने और स्वच्छता के लिए कम से कम प्रति दिन 20 से 40 लीटर पानी की जरूरत होती है |
भारत में 2025 तक पानी की उपलब्धता बहुत ही नाज़ुक स्तर तक पहुँचने की उम्मीद है | वैश्विक स्तर पर 31 देशों में पानी की कमी है और 2025 तक 48 देशों को पानी की कमी का गंभीर सामना करना पड़ सकता है| संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार 2050 तक 4 अरब लोग गंभीर रूप से पानी की कमी से प्रभावित होगे । इस पानी के बंटवारे को लेकर कई देशों के बीच संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा। भारत में करीब 20 प्रमुख शहर स्थायी या अस्थाई पानी की कमी का सामना करते हैं । ऐसे 100 देश हैं जो 13 बड़ी नदियों और झीलों के पानी के सहभागी हैं । अंतर्राष्ट्रीय समझौते जो ऐसे देशों में पानी के निष्पक्ष वितरण की देखरेख करते हैं विश्व शांति के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। भारत और बांग्लादेश ने पहले से ही गंगा के पानी के उपयोग पर बातचीत के जरिए समझौता किया है।
स्थायी जल प्रबंधन: 'पानी बचाओ' अभियान लोगों को हर जगह पानी की कमी के खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए चलाया हैं। दुनिया के जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए कई कदम उठाए जाने की जरूरत है। इन उपायों में शामिल हैं:
• कुछ बड़ी परियोजनाओं के निर्माण के बजाय कई छोटे जलाशयों को बनाना ।
• छोटे जलग्रहण बांधों का विकास करना और झीलों की रक्षा करना।
• मृदा प्रबंधन, सूक्ष्म जलग्रहण विकास और वनीकरण द्वारा भूमिगत जलभृतों को फिर से अत्यधिक जल सम्पन्न बना देना जिससे कि बड़े बांधों की ज़रूरत घट जाए |
• नगर निगम के कचरे का निदान व पुनर्चक्रण कर इस जल का कृषि के लिए उपयोग करना ।
• बांधों और नहरों से रिसाव की रोकथाम।
• शहरों में प्रभावी वर्षा जल संचयन का प्रचार करना ।
• कृषि के क्षेत्र में जल संरक्षण के उपायों को लागू करना जैसे रिसाव वाली सिंचाई का प्रयोग करना ।
• पानी का वास्तविक मूल्य निर्धारित करने से लोग अधिक ज़िम्मेदारी व कुशलता से इसका उपयोग करेंगे और पानी की बर्बादी कम करेंगे |
• कटाई क्षेत्रों में जहां भूमि निम्न दर्जे की हो जाती है, पहाड़ी ढलानों पर मेड्बंधी कर मृदा प्रबंधन किया जा सकता है और प्लग पर नाले बनाकर नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी और निम्न दर्जे के क्षेत्रों को फिर से हरा भरा बनाना मुमकिन हो जाएगा |
बांधों की समस्याएं
• विखंडन और नदियों का प्राकृतिक परिवर्तन।
• नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव
• लोगों के विस्थापन के कारण बड़े बांधों के सामाजिक परिणाम।
• आसपास की भूमि का जल जमाव और स्थिरीकरण ।
• जानवरों की संख्या को कम करना, उनके निवास स्थान को नुकसान पहुँचाना और उनके प्रवास मार्गों को काटना ।
• नाव द्वारा मछली पकड़ने और पर्यटन में बाधा पड़ना ।
• वनस्पतियों के सड़ने तथा जलप्रवाह से कार्बन अंतः प्रवाह के कारण जलाशयों से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रभाव का हाल में ही पता चला है |
सरदार सरोवर परियोजना
1993 में भारत में सरदार सरोवर परियोजना से विश्व बैंक के पीछे हट जाने के कारण जल मग्न क्षेत्रों के स्थानीय लोगों की आजीविका और उनके घरों के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया था | गुजरात में नर्मदा पर बने इस बांध ने कई हज़ार आदिवासी लोगों को विस्थापित कर दिया जिनका जीवन और जीविका इस नदी, वन और कृषि भूमि से जुड़ी हुई थी| नदी के किनारे रहने वाले मछुआरों ने अपनी भूमि को खो दिया है, जबकि इसका लाभ नीचे के क्षेत्रों में रहने वाले अमीर किसानों को होगा जिन्हें कृषि के लिए पानी मिल जाएगा।
हिमाचल प्रदेश में कूल्हें
हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में चार सौ से अधिक साल पहले नहर सिंचाई की एक स्थानीय प्रणाली को विकसित किया गया जिसे कुल्ह कहा गया । नदियों में बह रहे पानी को इन कुल्हों के द्वारा मानव निर्मित नालों में बाँट दिया गया जो पानी को पहाड़ी ढलानों पर बने कई गाँव में ले जाती थी। इन कूल्हों में बह रहे पानी का प्रबंधन सभी गांवों के बीच आम सहमति से किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि रोपण के मौसम के दौरान, ऊंचाई वाले गावों से पहले पानी का इस्तेमाल कुल्ह के स्रोतों से दूर गावों द्वारा किया जाता है । इन कूल्हों की देखरेख दो या तीन लोगों द्वारा की जाती है जिन्हें ग्रामीणों द्वारा भुगतान किया जाता है | सिंचाई के अलावा, इन कूल्हों से पानी को मिट्टी में भी डाल दिया जाता है और विभिन्न जगहों पर पौधों को पानी मिल जाता है । सिंचाई विभाग द्वारा कूल्हों पर अधिकार लिए जाने से, ज़्यादातर कूल्हें निर्जीव हो गईं और पहले की तरह पानी की सौहार्दपूर्ण भागीदारी नहीं रही है|
जल संचयन भारत में एक पुरानी अवधारणा है, जिनके विभिन्न नाम इस प्रकार हैं:
• राजस्थान में खाड़ियाँ, तालाब और नदियाँ ,
• महाराष्ट्र में बंधर और ताल,
• मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बंधी, बिहार में अहर और प्यने
• हिमाचल प्रदेश में कूल्ह,
• जम्मू क्षेत्र के कंडी इलाके में तालाब,
• तमिलनाडु में एरिस (तालाब),
• केरल में सुरंगम, और
• कर्नाटक में कट्टा, सबसे प्राचीन जल संचयनों में से हैं जिसमें जल संवहन का प्रयोग अभी तक किया जाता है | स्थानीय जल संसाधनों पर लोगों के नियंत्रण ने इन संसाधनों के कुप्रबंधन और अति उपभोग को कम कर दिया है |
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