जल से आर्सेनिक का शोधन करेगा ग्रैफीन
ग्रैफीन है कार्बन का अपरूप:
ग्रैफीन कार्बन का एक द्वि-आयामी अपररूप होता है जिसके द्वारा अब दावा किया जा रहा कि जल से आर्सेनिक का शोधन किया जा सकता है। इसकी एकल परत संरचना मधुमक्खी के छत्ते जैसी दिखाई देती है। हमारी पेंसिल में लगा ग्रेफाइट महज ग्रेफीन की एक के ऊपर एक रखी परतों का ढेर है। कार्बन नैनोट्यूब्स ग्रेफीन की चादरों को लपेट कर बनाई जाती है।
अपने विशिष्ट गुणों की वजह से ग्रैफीन इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में इसकी असामान्य रूप से उच्च वैद्युत चालकता काफी लाभकारी सिद्ध होती है। हाल ही में दक्षिण कोरिया पोहांग यूनीवर्सिटी के एक वैज्ञानिक दल ने ग्रैफीन ऑक्साइड़ एवं मैग्नेटाइट से बने एक संश्लिष्ट पदार्थ का प्रयोग पीने के पानी में से आर्सेनिक हटाने में किया है।
आर्सेनिक एक ऐसा तत्व है जिससे कैसर होने का खतरा रहता है। एक अरब भाग पानी में इसके 10 भाग से अधिक होने पर पानी पीने योग्य नहीं रह जाता है। यह समस्या भारत के कई क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर व्याप्त है। आर्सेनिक प्रदूषित पानी के पीने से व्यक्ति को असाध्य रोग होने के साथ-साथ मृत्यु भी हो सकती है। पानी में आर्सेनिक मुख्यत: आर्सेनिक युक्त प्राकृतिक चट्टानों में से आता है। साथ ही खनन से भी आर्सेनिक का प्रदूषण फैलता है। वैज्ञानिक का यह भी कहना है कि सिंचाई के लिए नदियों और तालाबों के पानी के स्थान पर भूमिगत पानी के अधिक उपयोग से भी आर्सेनिक प्रदूषण फैलता है।
पोहांग यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अवकृत ग्रैफीन ऑक्साइड आधारित एक नए प्रकार का मैग्नेटाइट सम्मिश्र तैयार किया है। यह संकर पदार्थ कमरे के तापमान पर परम अनुचुंबकीय होता है और पानी के नमूने से 99.9 प्रतिशत तक आर्सेनिक का शोधन कर सकता है।
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