1991 का साल स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के आर्थिक इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत, भुगतान संतुलन के कारण पैदा हुए गंभीर खतरे से गुज़रा। कठिन परिस्थितियों से संभावनाओं के नये द्वार खुले और आर्थिक नीति में आवश्यक सुधार किये गये। इस खतरे का मुकाबला करने के लिए ऐसी योजना बनाई गयी जोकि स्थायित्व और संरचनात्मक सुधारों पर आधारित थी। जब अर्थव्यवस्था के दोषों के सुधार के लिए स्थायित्व आधारित योजना जो उन दोषों को दूर करने के लिए बनायी गई जो आर्थिक एंव भुगतान संतुलन के स्तर पर थे।
नब्बे के दशक में शुरू हुये संरचनात्मक सुधारो में जिन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया वो औधोगिक लाइसेंसिंग,विदेशी निवेश,विदेशी व्यापार ,विनिमय दर प्रबंधन तथा वित्तीय क्षेत्र थे। विदेश व्यापार नीति मे किये गये सुधार शुल्क दर कम करने व आयात पर मात्रात्मक नियंत्रण को कम करने पर आधारित थी।
शुल्क दरों में धीरे – धीरे कमी की गई। बदली हुये हालातों में भारतीय उद्योगों की सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक सावधानियां बरती गयी। नयी आर्थिक नीति ने अर्थव्यवस्था मे बेहतर माहौल पैदा किया जिससे क्षमता और प्रतियोगी व्यावस्था का विकास किया।
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