पुरुष प्रजनन प्रणाली

प्रजनन के लिए मनुष्य यौन रीति का प्रयोग करते हैं। मनुष्यों में प्रजनन प्रणाली एक निश्चित आयु में काम करना शुरु कर देती है, इसे यौवन कहते हैं। मनुष्य जैसी जटिल बहुकोशिकीय जीवों में शुक्राणु और अंडे बनाने, शुक्राणुओं और अंडों को निषेचन के लिए एक साथ लाने और शिशु के रूप में युग्मनज के विकास के लिए विशेष प्रजनन अंग होते हैं।

Shikha Goyal
Jun 21, 2022, 13:21 IST

प्रजनन के लिए मनुष्य यौन रीति का प्रयोग करते हैं। मनुष्यों में प्रजनन प्रणाली एक निश्चित आयु में काम करना शुरु कर देती है, इसे यौवन कहते हैं। मनुष्य जैसी जटिल बहुकोशिकीय जीवों में शुक्राणु और अंडे बनाने, शुक्राणुओं और अंडों को निषेचन के लिए एक साथ लाने और शिशु के रूप में युग्मनज के विकास के लिए विशेष प्रजनन अंग होते हैं।

लेकिन मनुष्यों की प्रजनन प्रणाली में इन सब का वर्णन करने से पहले, हम 'यौवन' शब्द का अर्थ समझेंगे।

यौवन

छोटी उम्र में शरीर की काया एक जैसी होने से कभी– कभी यह बता पाना कि बच्चा लड़का है या लड़की, मुश्किल हो जाता है। तेजी से विकास और किशोरावस्था में शरीर में शुरु होने वाले परिवर्तन लड़की को अलग दिखाने लगते हैं और वह अलग तरीके से व्यवहार भी करने लगती है। लड़कों की तुलना में ये परिवर्तन लड़कियों में जल्द शुरु हो जाता है। बचपन और व्यस्कता के बीच का समय 'किशोरावस्था' कहलाता है। इस उम्र में लड़के और लड़कियों के शरीर में नर और मादा 'सेक्स हार्मोन्स' का उत्पादन बढ़ता है और उनके शरीर में व्यापक बदलावों की वजह बनता है। लड़को में वृषण और लड़कियों में अंडाशय अलग– अलग प्रकार के हार्मोन्स बनाते हैं। इसलिए, वे अलग तरीके से विकसित होते हैं। आखिरकार लड़के और लड़कियां लैंगिक दृष्टि से परिपक्व हो जाते हैं और उनकी प्रजनन प्रणाली काम करने लगती है।

जिस उम्र में सेक्स हार्मोन्य या युग्मक बनने लगते हैं और लड़का एवं लड़की प्रजनन के लिए लैंगिक रुप से परिपक्व या सक्षम हो जाते हैं, उसे यौवन कहते हैं। 

आम तौर पर लड़के 13 से 14 वर्षों में यौवन प्राप्त करते हैं जबकि लड़कियां 10 से 12 वर्षों में। यौवन प्राप्त करने पर, पुरुष जननांग वृषण नर युग्मक जिन्हें शुक्राणु कहा जाता है, उत्पादित करने लगते हैं और मादा जननांग अंडाशय मादा युग्मक जिन्हें अंडाणु या अंडे कहा जाता है, उत्पादित करने लगती हैं। नर एवं मादा जननांग यौवन के साथ ही यौन हार्मोन्स भी स्रावित करने लगते हैं।

वृषण नर यौन हार्मोन उत्पादित करता है जिसे टेस्टोस्टेरोन कहा जाता है और अंडाशय दो मादा सेक्स हार्मोन्स – एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का उत्पादन करने लगता है। प्रजनन में यौन हार्मोन्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये प्रजनन अंगों को परिपक्व और कार्यात्मक बनाते हैं। यौवन वह उम्र होती है जब प्रजनन अंग परिपक्वता प्राप्त करते हैं और द्वितियक यौन गुण विकसित होने लगते हैं।

लड़कों में यौवन आने पर होने वाले विभिन्न प्रकार के बदलाव हैं– कांखों में और जांघों के बीच जननांग क्षेत्र में बालों का उगना। इसके अलावा शरीर के अन्य हिस्सों जैसे छाती और चेहरे (मूछ, दाढ़ी आदि) पर भी बाल उगने लगते हैं। मांसपेशियों के विकास के कारण शरीर अधिक मांसल हो जाता है। आवाज भारी या टूटी हुई हो जाती है। छाती और कंधे चौड़े होने लगते हैं। लिंग और वृषण बड़े हो जाते हैं। वृषण शुक्राणु बनाना शुरु कर देता है। वयस्कता के साथ जुड़ी भावनाएं एवं यौन परिवर्तन विकसित होने लगते हैं। लड़कों में होने वाले ये सभी बदलाव वृषण में बनने वाले नर सेक्स हार्मोन्स– टेस्टेस्टेरॉन की वजह से हैं।

यौवन आने पर लड़कियों में होने वाले विभिन्न प्रकार के बदलावः  कांखों में और जांघों के बीच जननांग क्षेत्र में बालों का उगना (यह बदलाव लड़कों के जैसा ही है)। स्तन ग्रंथियां या स्तन का विकास होता है और वे बड़े होने लगते हैं। कूल्हे चौड़े हो जाते हैं। कूल्हे और जांघों जैसे शरीर के अलग– अलग हिस्सों पर अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है। फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय और योनी का बढ़ना। अंडाशय अंडे जारी करने लगता है। माहवारी शुरु हो जाती है। वयस्कता से संबंधित भावनाएं एवं यौन इच्छाएं विकसित होने लगती हैं। लड़कियों में होने वाले ये सभी बदलाव अंडाशय में बनने वाले मादा यौन हार्मोन्य– एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की वजह से होता है।

पुरुष प्रजनन प्रणाली

मानव नर प्रजनन प्रणाली में निम्नलिखित अंग होते हैं– वृषण, अंडकोष, अधिवृषण, शुक्राणु वाहिनी, शुक्राणु पुटिका, प्रोस्टेट ग्रंथि और लिंग।   

 

वृषण अंडे के आकार वाला अंग है जो पुरुष के उदर गुहा के बाहर होता है। पुरुष में दो वृषण होते हैं। वृषण पुरुष या पुरुषों का प्राथमिक प्रजनन अंग होता है। वृषण का काम नर यौन कोशिका या नर युग्मक जिन्हें शुक्राणु कहते हैं, बनाना है। साथ ही इसका काम नर यौन हार्मोन– टेस्टोस्टेरोन बनाना भी है। एक मनुष्य का वृषण यौवन आने के बाद से आजीवन यौन युग्मक या शुक्राणु का निर्माण करता रहता है। मनुष्य का वृषण छोटे मांसल थैली में होती है जिसे वृषणकोश कहते हैं। यह उदर गुहा के बाहर होती है। वृषण शरीर के उदर गुहा के बाहर होती है और शरीर की गहराई में नहीं रहती क्योंकि शुक्राणु को शरीर के सामान्य तापमान से कम तापमान की आवश्यकता होती है। उदर गुहा के बाहर होने के कारण इसका तापमान शरीर के भीतर के तापमान की तुलना में करीब 3 डिग्री सेल्सियस कम होता है। इस प्रकार, वृषण शुक्राणुओं के बनने के लिए इष्टतम तापमान प्रदान करता है।

वीर्यकोष से शुक्राणु बाहर आते हैं एक कुंडली के आकार वाली नली जिसे अधिवृषण ( एपिडिडमिस) कहते हैं, में जाते हैं। यहां शुक्राणु अस्थायी तौर पर रहते हैं। एपिडिडमिस से शुक्राणु, एक लंबी नली– शुक्राणु नली के माध्यम से ले जाए जाते हैं। यह नली, ब्लैडर से आने वाले एक और नली जिसे  मूत्रमार्ग (युअरीथ्र) कहते हैं, से जुड़ी होती है। शुक्राणु नली के मार्ग के साथ, लाभदायक पुटिका (Seminal Vesicles) कहे जाने वाले ग्लैंड्स और प्रोस्ट्रेट ग्लैंड शुक्राणु में अपने स्राव को मिला देते हैं और इस प्रकार शुक्राणु अब तरल रुप में आ जाते हैं। यह तरल एवं इसके शुक्राणु को वीर्य कहा जाता है, यह एक गढ़ा तरल पदार्थ होता है। लाभदायक पुटिका (Seminal Vesicles) और प्रोस्ट्रेट ग्लैंड का स्राव शुक्राणु को पोषण प्रदान करते हैं और उसके आगे जाने की प्रक्रिया को आसान बना देते हैं। युअरीथ्र शुक्राणुओं और मूत्र के लिए आम पैसेज बनाता है। युअरीथ्र शुक्राणु को लिंग तक ले जाता है जो शरीर के बाहर खुलता है। प्रजनन के उद्देश्य से संभोग के दौरान पुरुष का शरीर लिंग से शुक्राणुओं को महिला के शरीर के योनी में प्रवेश कराता है।

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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