भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

अनुच्छेद 148 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से संबंधित है जो केंद्र और राज्य स्तर पर पूरे देश की वित्तीय व्यवस्था प्रणाली को नियंत्रित/समीक्षा करता है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा स्वयं अपने हाथों मुहर युक्त अधिपत्र द्वारा 6 वर्ष के लिए की जाती है। अपना पद ग्रहण करने से पहले कैग (सीएजी) तीसरी अनुसूची में अपने प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार, राष्ट्रपति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञा लेते हैं।

Dec 16, 2015, 17:04 IST

अनुच्छेद 148 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से संबंधित है जो केंद्र और राज्य स्तर पर पूरे देश की वित्तीय व्यवस्था प्रणाली को नियंत्रित/समीक्षा करता है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा स्वयं अपने हाथों मुहर युक्त अधिपत्र द्वारा 6 वर्ष के लिए की जाती है। अपना पद ग्रहण करने से पहले कैग (सीएजी) तीसरी अनुसूची में अपने प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार, राष्ट्रपति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञा लेते हैं। इसे जनता के रुपयों का रखवाला भी कहा जाता है।

नियुक्ति और पदावधि

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा स्वयं अपने हाथों मुहर युक्त अधिपत्र द्वारा की जाती है। अपना पद ग्रहण करने से पहले कैग (सीएजी) तीसरी अनुसूची में अपने प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार, राष्ट्रपति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञा लेते हैं। इसकी शपथ में निम्न विषय शामिल होते हैं ।

(i) विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा प्रकट करने के लिए ।

(ii)  भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए

(iii) बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह, दुर्भावना के साथ विधिवत और ईमानदारी से अपनी क्षमता के अनुसार तथा ज्ञान व न्याय के साथ अपने कार्यालय के कर्तव्यों का श्रेष्ठतम प्रयोग करना।

(iv) संविधान और कानूनों को बनाए रखने के लिए।

कैग की अवधि छह वर्ष या 65 वर्ष की उम्र तक की होती है। वह अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी समय राष्ट्रपति को इस्तीफा लिखकर अपना त्यागपत्र दे सकता है। जिस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाया जाता है ठीक उसी प्रकार उन्हीं आधारों के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा कैग को उनके पद से पदच्युत किया जा सकता है।
सुरक्षा उपाय और आजादी

(i) कैग को ठीक उसी तरह और उसी आधार पर पद से हटाया जा सकता है जिस तरह से राष्ट्रपित द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को हटाया जा सकता है। इसका मतलब है कि उन पर दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित होने के आधार पर, केवल एक प्रभावी विशेष बहुमत के साथ दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर हटाया जा सकता है।

(ii) कैग के वेतन और सेवा की अन्य शर्तों का निर्धारण कानून द्वारा संसद करती है। कैग की नियुक्ति के बाद ना तो उसका वेतन और अधिकारों के संबंध में ना ही उसके अनुपस्थिति, पेंशन या सेवानिवृत्ति की आयु को कम किया जा सकता है।

(iii) अपना पद पर स्थगन लगने के बाद वह भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य के अधीन वाले कार्यालय का पात्र नहीं होता है।

(iv) भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग तथा सीएजी के प्रशासनिक शक्तियों में सेवा करने वाले व्यक्तियों के लिए सेवा शर्तों को कैग के साथ परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा नियम बनाकर उनका निर्धारण किया जाता है।

(v) कैग के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय सहित सभी वेतन, भत्ते और देय पेंशन या उस कार्यालय में कार्यरत पेंशन के संबंध में, सभी का भुगतान भारत की संचित निधि द्वारा किया जाता है।

कर्तव्य और शक्तियां

संघ और राज्यों और किसी अन्य प्राधिकरण या निकाय के खातों के संबंध में संविधान का अनुच्छेद -149 कैग की शक्तियों को निर्धारित करने के लिए संसद को शक्तियां अथवा अधिकार प्रदान करता है। कैग के कर्तव्यों और कैग की शक्तियों को निर्दिष्ट करने के लिए संसद द्वारा सीएजी (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 को अधिनियमित किया गया था। अधिनियम में 1976 में संशोधन किया गया था।
नीचे उल्लेखित बिंदु कैग के कर्तव्य और शक्तियां हैं:

(i) सीएजी भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य और प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश जहां पर विधान सभा होती है, के सभी व्यय का ऑडिट करता है। और यह पता लगाने के लिए कि खातों में दिखायी गयी धनराशि का वितरण सेवा या प्रयोजन के लिए कानूनी तौर पर सही तरह से किया गया कि नहीं या प्राधिकरण में जो व्यय दिखाया गया है वह उसके अनुरूप है कि नहीं, का भी ऑडिट सीएजी द्वारा किया जाता है।

(ii) सीएजी आकस्मिक निधि और लोक लेखा से संबंधित संघ और राज्यों के सभी लेनदेन का ऑडिट करता है

(iii) सीएजी सभी व्यापार, विनिर्माण, लाभ और हानि के खातों और बैलेंस शीट और संघ या किसी भी राज्य के किसी भी विभाग (Ii) वह आकस्मिकता निधि और लोक लेखा से संबंधित संघ और राज्यों के सभी लेनदेन ऑडिट

(iv) सीएजी,  व्यय, लेनदेन या उसके द्वारा आंकलित खातों की रिपोर्ट सौंपता है।

(v) सीएजी संघ या राज्य के राजस्व से काफी हद तक वित्त पोषित निकायों या प्राधिकरणों की प्राप्तियों और व्यय का ऑडिट करता है।

(vi) सीएजी उन प्राप्तियों और व्ययों का आडिट और रिपोर्ट करती है जहां एक संस्था या प्राधिकरण को भारत की संचित निधि से ऋण या अनुदान प्राप्त हो रहा है। सीएजी किसी भी राज्य या किसी भी केंद्र शासित प्रदेश जहां विधानसभा है, कोई भी प्रावधान के विषय कानून के दायरे में हैं, के खातों का ऑडिट कर सकता है।

(vii) सीएजी, राष्ट्रपति या किसी भी राज्य के राज्यपाल द्वारा आवेदित किसी भी प्राधिकरण के व्यय, लेनदेन का ऑडिट कर सकता है।

(vii) सीएजी, राष्ट्रपति को उन फार्म के बारे में सलाह देता है जो संघ और राज्यों के खातों में रखे जाते हैं।

(ix) सीएजी, राष्ट्रपति को संघ के खातों से संबंधित ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। तत्पश्चात् राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पास भेजतें हैं।

(x) सीएजी राज्य के खातों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत करता है। तत्पश्चात राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधायिका को देते हैं।

(xi) वह किसी भी कर या शुल्क की शुद्ध आय की जांच और उसे प्रमाणित करता है।

काम का दायरा

कैग, जनता के पैसे का प्रहरी है। वह उस खर्च की गयी धनराशि की जांच करता है, जिसे कार्यपालिका एक समान रूप से कानून द्वारा स्थापित और संसद के दिशा- निर्देशों के अनुसार उपलब्ध कराती है । वह केवल संसद के प्रति जवाबदेह है जो कार्यपालिका के प्रभाव से उसको स्वंतत्र बनाती है। वह निम्नलिखित रिपोर्टें राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है:

(i) विनियोग खातों पर ऑडिट रिपोर्ट

(ii) वित्तीय खातों का ऑडिट रिपोर्ट

(iii) सार्वजनिक उपक्रमों पर लेखापरीक्षा रिपोर्ट

आलोचना

कैग के पास खातों की जांच अथवा ऑडिड करने की शक्तियां सीमित हैं। इसका मतलब है, कि उसके पास उस पैसे पर नियंत्रण का कोई अधिकार नहीं है जो समेकित निधि से खर्च किया जा रहा है। वह केवल तभी ऑडिट कर सकता है जब पैसा खर्च किया जा चुका होता है। इसके विपरीत ब्रिटेन के कैग के पास नियंत्रक जैसी शक्ति नहीं होती है लेकिन केवल महालेखा परीक्षक के रूप में होती है। इसके अलावा, कैग कार्यपालिका द्वारा किए गए व्यय से संबंधित दस्तावेजों नहीं मांग सकता है। वहीं दूसरी ओर, कैग पर कार्यपालिका द्वारा बार-बार मनमानी का आरोप लगाया जाता है। कैग पर कार्यकारी सरकार के नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया लगता रहा है।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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