बलबन दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश का एक गुलाम था और तुर्कों की प्रमुख जनजाति इल्बरी से सम्बंधित था. शुरू में वह घरेलु सेवक के रूप में दिल्ली सल्तनत में शामिल हुआ. कालांतर में वह रजिया सुल्तान का शिकारगाह बना और तत्पश्चात जब हांसी के गवर्नर बहराम शाह को हटाया गया तो वह वहाँ का गवर्नर बना.
वह सुल्तान नासिर उद दीन महमूद के दाहिने हाथ के रूप में 20 साल तक कार्य करता रहा और इस दौरान उसने अपने सभी विरोधियो को जोकि साम्राज्य के अन्दर और बाहर एक प्रमुख ताकत के रूप में चर्चित थे समाप्त कर दिया. अपने शासक की मृत्यु के बाद, बलबन दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठा.
बलबन ने अपने शासन काल के दौरान लौह नीति का प्रतिपादन किया और अपनी ताकत के माध्यम से मेवातियो को कुचल डाला. साथ ही उसने अपने अधिकारियों को अनुशासित भी किया. उसने अपनी सेना को भी पुनर्गठित किया और चहलगानी शक्ति को समाप्त कर दिया जोकि पूर्व काल से ही प्रमुख ताकत बने हुए थे.
इसके अलावा उसने बंगाल में हुए तुगारिल खान के विद्रोह को भी समाप्त किया और बंगाल के शासक के रूप में अपने दुसरे पुत्र बुगरा खान को बंगाल का शासन प्रदान किया..
उसने अपने शासनिक और प्रशासनिक कार्यों में या सेना में किसी भी हिन्दू को कोई स्थान नहीं दिया. या सेना में हिंदुओं के लिए कोई अधिकार नहीं दिया.
बलबन का प्रारंभिक जीवन और उन्नति:
-
गुलाम से शासक तक का सफर:
- बलबन, सुल्तान इल्तुतमिश का एक गुलाम था और तुर्कों की प्रमुख जनजाति इल्बरी से संबंध रखता था।
- प्रारंभ में घरेलू सेवक के रूप में दिल्ली सल्तनत में शामिल हुआ और समय के साथ रजिया सुल्तान और अन्य शासकों के अधीन उच्च पद प्राप्त किया।
-
राजनीतिक उन्नति:
- सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में बलबन उसका प्रधानमंत्री (दाहिना हाथ) बना और 20 वर्षों तक सल्तनत के प्रशासन को संभालता रहा।
- 1266 ई. में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद, बलबन ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया।
बलबन की विरासत:
बलबन का शासन दिल्ली सल्तनत के लिए अनुशासन और सशक्तिकरण का युग था। उसकी नीतियाँ मंगोल आक्रमणों और विद्रोहों के खिलाफ सल्तनत को सुदृढ़ बनाने में सहायक रहीं। उसका प्रभाव और प्रशासनिक सुधार आने वाले शासकों के लिए प्रेरणा बने।
बलबन के शासनकाल की निम्नलिखित प्रमुख उपलब्धियों हैं:
• उसने अपने शासन काल में जमी पैबोस और सजदा प्रथा की शुरुआत की जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति सुल्तान के सामने आने पर घुटनों के बल झुककर अपने सर से जमी को चूमता था और सुल्तान का सम्मान करता था.
• उसने अपने शासन काल में ईरानी प्रथा(देवत्व का अधिकार) को प्रचारित प्रसारित किया की वह पृथ्वी पर इश्वर का प्रतिनिधि है.
• उसने चालीस के दल (चहलगानी) के प्रभाव को समाप्त कर दिया.
• उसने उलेमाओं को राज्य के किसी भी राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी.
• उसने अपने शासन काल में किसी भी संस्था चाहे वह सेना हो शासनिक कार्य हों या प्रशासनिक कार्य हिंदुओं की प्रविष्टियों को अनुमति नहीं दी.
• उसने मंगोलों के खतरों का मुकाबला करने के लिए दिल्ली सल्तनत की सेना का बृहद स्तर पर संगठन एवं समायोजन किया. इस कार्य के लिए उसने एक सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज का गठन किया और उसका प्रमुख आरिज़-ए-मुमालिक को बनाया.
• बलबन का उत्तराधिकारी उसका पोता कैकुबाद बना जोकि पूरी तरह शासन के कार्यों में अक्षम था और साम्राज्य को बरकरार बनाए रखने के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं था.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation