स्टूडेंट्स अपने स्कूल के दिनों में कॉलेज लाइफ को लेकर काफी एक्साइटेड होते हैं. लेकिन यह भी सच है कि स्टूडेंट्स की स्कूल लाइफ से कॉलेज लाइफ काफी अलग होती है और स्टूडेंट्स एक बिलकुल नए एजुकेशनल माहौल में एंटर करते हैं. अगर स्टूडेंट्स को अपनी स्कूल और कॉलेज लाइफ के प्रमुख अंतरों के बारे में सटीक जानकारी मिल जाए तो वे अपने स्कूल और कॉलेज की लाइफ में एक बैलेंस्ड एप्रोच अपना सकते हैं. वास्तव में आप मानें या न मानें, हाई स्कूल के एक स्टूडेंट के तौर पर हमारी जिंदगी किसी कॉलेज स्टूडेंट के जीवन से कहीं ज्यादा अनुशासित होती है. स्कूल में, हम प्रोटोकॉल्स और अनुशासन के नियमों से बंधे होते हैं. इन्हें हम तोड़ना तो चाहते हैं पर हमेशा डरते हैं कि कहीं पकड़े न जायें और सज़ा न मिले. इसके ठीक विपरीत, कॉलेज लाइफ भी यद्यपि नियमों से बंधी होती है, लेकिन इसका शायद ही कोई फर्क पड़ता है क्योंकि कॉलेज में स्टूडेंट्स को जो वे चाहते हैं, वह सब करने की पूरी आजादी मिली होती है. फिर भी, इन दोनों का अपना ही महत्व है और इनसे हमारी ढेरों यादें जुड़ी होती हैं. अब हम उन पॉइंट्स का जिक्र करते हैं जो हमारे स्कूल लाइफ के अनुभवों को कॉलेज के अनुभवों से अलग करते हैं:
स्कूल और कॉलेज के बीच ये हैं प्रमुख अंतर
अध्ययन परिवेश होता है काफी अलग
दोनों एजुकेशनल सिस्टम्स में अध्ययन परिवेश अर्थात लर्निंग एनवायरमेंट या सीखने का माहौल एक-दूसरे से बहुत अलग होता है. कॉलेज में, अब आप एक पैसिव लर्नर नहीं होते हैं. क्लास रुम की चर्चाओं में आपके एक्टिव पार्टिसिपेशन को प्रोत्साहित किया जाता है. कॉलेज में, आपको स्वयं सीखने की कोशिश करनी पड़ती है और इसके ठीक विपरीत, हाई स्कूल में आपके टीचर आप पर पूरा ध्यान देते हैं और आपको अच्छे ग्रेड्स लाने के लिए अच्छी तरह पढ़ाई करने के लिए लगातार प्रेरित करते रहते हैं. कॉलेज में जहां एक ओर लेक्चर्स में आपके एक्टिव पार्टिसिपेशन को प्रोत्साहित किया जाता है, आपके प्रोफेसर आपको अपने लेक्चर में ध्यान देने के लिए 2 – 3 बार कहने के बाद आपकी ओर ध्यान भी नहीं देते हैं.
स्कूल में ड्रेस और कॉलेज में मनचाहा पहनावा
हमारे देश के अधिकांश स्कूलों में छात्रों को यूनिफार्म पहननी होती है अर्थात स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा निर्धारित कपड़े या ड्रेस सभी स्टूडेंट्स को पहननी होती है. आप स्कूल के नियमों और ड्रेस कोड से बंधे होते हैं और आपको प्रत्येक दिन स्कूल में एक साफ़-सुथरी यूनिफार्म पहन कर जाना पड़ता है. हालांकि, कॉलेज में स्टूडेंट्स किसी भी ड्रेस कोड से बंधे नहीं होते हैं और वे जो चाहें वह पहन कर कॉलेज जा सकते हैं.
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स्कूल और कॉलेज में अटेंडेंस होती है अलग
यह कॉलेज और स्कूल के स्टूडेंट्स के जीवन में बहुत बड़ा अंतर पैदा करती है. स्कूल में, अटेंडेंस अनिवार्य थी, अगर आप एक दिन भी छुट्टी लेते थे तो आपको अगले दिन अपने पेरेंट्स में से किसी एक के सिग्नेचर करवा कर छुट्टी/ बुखार की एप्लीकेशन लेकर अपने स्कूल जाना पड़ता था. जबकि, इसके ठीक विपरीत; कॉलेज में स्टूडेंट्स अपनी अटेंडेंस की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. किसी पूरे सेमेस्टर में किसी भी स्टूडेंट के बिलकुल उपस्थित न होने की स्थिति से बचने के लिए अधिकांश कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन्स ने स्टूडेंट्स के लिए एग्जाम्स में बैठने की एक शर्त के तौर पर न्यूनतम अटेंडेंस परसेंटेज शुरू की है. मास बंक और प्रॉक्सी अटेंडेंस जैसे शब्द तो स्कूल में हमने सुने भी नहीं होते हैं लेकिन कॉलेज में, स्टूडेंट्स के दिमाग में सिर्फ यही सब घूमता रहता है.
सांस्कृतिक विविधता
हाई स्कूल में अधिकांश फ्रेंड्स आपकी लोकल कम्युनिटी से थे. स्कूल में केवल कुछ ही स्टूडेंट थे जो किसी दूसरे शहर में रहते थे और स्कूल में दूर से पढ़ने आते थे. आपके आस-पास के लोग आपके कल्चर और ट्रेडिशन्स के ही होते थे. आपके बीच शायद ही कोई सांस्कृतिक विभिन्नतायें मौजूद हों. लेकिन कॉलेज में, परिस्थितियां बिलकुल अलग होती हैं. कॉलेज में न केवल हमारे देश के विभिन्न कल्चर्स से ही लोग होते हैं बल्कि इंटरनेशनल स्टूडेंट्स से भी आपका वास्ता पड़ता है. कॉलेज आपको विभिन्न कल्चरल बैकग्राउंड वाले लोगों को स्वीकार करना और उनके साथ मिलजुल कर जीना सिखाता है.
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स्कूल के दोस्त और कॉलेज हॉस्टल के रूममेट्स
हाई स्कूल में चाहे आप कितने ही झगड़ालू किशोर रहे हों, हर मुसीबत की घड़ी में आप सबसे पहले दौड़ कर अपने पेरेंट्स के पास जाते थे. हाई स्कूल की दोस्ती काफी अच्छी होती है और आप निश्चित रूप से अपने दोस्तों के साथ काफी सीक्रेट्स साझा करते हैं. लेकिन फिर भी, बहुत सी बातों के लिए आप अपने पेरेंट्स पर भी भरोसा करते हैं और उन पर पूरी तरह निर्भर करते हैं. आपका कोई ऐसा निश्चित निजी कोना भी होता है जिस तक आपके हाई स्कूल के दोस्त कभी नहीं पहुंच पाते हैं. लेकिन कॉलेज में, प्राइवेसी जैसी कोई चीज शायद ही होती है क्योंकि जब आप किसी डॉरमेट्री या हॉस्टल रूम में रहते हैं तो आप अक्सर ट्विन शेयरिंग बेसिस या दो लोगों के ग्रुप में किसी रूम में रहते हैं. इसके अलावा, कॉलेज में जब आप कोई खुशी मनाना चाहते हैं या अपने दुःख बांटने के लिए कोई कंधा तलाशते हैं तो केवल दोस्त ही आपके सबसे करीब होते हैं.
कॉलेज लाइफ कई बार हमें काफी सख्त अनुभव प्रदान करती है लेकिन आने वाले समय में यह आपके जीवन का सबसे पसंदीदा फेज बन जाती है. इसके ठीक विपरीत, हाई स्कूल का अपना ही महत्व होता है. लोग कहते हैं कि कोई व्यक्ति अपने स्कूल और कॉलेज के दिन भूल सकता है और यह काफी हद तक सच भी है. बाद के जीवन में, अगर आपसे पुछा जाए कि आप अपने जीवन का कौन सा हिस्सा दुबारा जीना चाहेंगे तो आपमें से अधिकांश अपने कॉलेज या स्कूल के दिनों को फिर से जीना पसंद करेंगे. यद्यपि जिंदगी के इन दोनों फेजिस में काफी अंतर होता है, ये दोनों ही फेजिस हमारी पर्सनैलिटी को आकार देते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि हम आने वाले समय में किस किस्म में वयस्क बनेंगे.
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