किशोरावस्था में होने वाली प्रेम समस्या और उसका समाधान

किशोरावस्था में विपरीत लिंग के प्रति दोस्ती बढ़ाना या किसी के लिए मन में क्रश जैसी भावनाओं का विकसित होना सवभाविक है|लेकिन कभी-कभी ये दोस्ती अज्ञानता वश बच्चों के लिए परेशानी का कारण भी बन जाती है जिसके कारण उनकी पढाई और रिजल्ट दोनों प्रभावित होते है| आज इस आर्टिकल में हम आपको कुछ ऐसे ही टिप्स बताने जा रहें हैं जिनकी मदद से आप आसानी से इस तरह की परिस्तिथि को अपने स्कूल के दिनों में संतुलित कर पाएंगे|

Apr 2, 2019, 17:05 IST
Tips to deal with relationship problem in school days
Tips to deal with relationship problem in school days

स्कूल के दिनों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण किशोरावस्था में बच्चों के साथ होने वाली एक सवभाविक प्रवृति है| किशोरावस्था के देहलीज़ पर अक्सर बच्चों में इस प्रकार के बदलाव को देखा गया है जहाँ बच्चों में विपरीत लिंग के प्रति दोस्ती बढ़ाना या किसी के लिए मन में क्रश जैसी भावनाओं का विकसित होना| दरअसल किशोरावस्था में विपरीत लिंग से मित्रता करना गलत नहीं बल्कि बच्चों में मानसिक और सामाजिक विकास के लिए यह ज़रूरी भी है लेकिन कभी-कभी ये दोस्ती अज्ञानता वश बच्चों के लिए परेशानी का कारण भी बन जाती है जिसके कारण उनकी पढाई और रिजल्ट दोनों प्रभावित होते है| आज इस आर्टिकल में हम आपको कुछ ऐसे ही टिप्स बताने जा रहें हैं जिनकी मदद से आप आसानी से इस तरह की परिस्तिथि को अपने स्कूल के दिनों में संतुलित कर पाएंगे :

अभिभावकों तथा शिक्षक का सहयोग है ज़रूरी :

  • स्कूल के दिनों में जब छात्रों के बिच हुई मित्रता धीरे-धीरे रोमांस के रूप में बदलने लगती है तो ऐसी परिस्तिथि उनके हित में बिलकुल सही नहीं होती है| ऐसे समय में अभिभावक और शिक्षक दोनों को ही बड़े सकारात्मक तरीके से इस परिस्तिथि को समझना चाहिए| चलिए एक उदाहरण के ज़रिये इसे समझें :

शिक्षक का सहयोग :

  • कमल और मेघा कक्षा 11वी के स्टूडेंट थे जब उनके बिच अच्छी दोस्ती हुई, दोनों ही काफी अच्छे और होनहार स्टूडेंट्स थे| शिक्षक हमेशा उनकी प्रशंसा करते थे| कुछ समय बाद मेघा और कमल को यह एहसास हुवा की दोनों एक दुसरे को पसंद करने लगे हैं और धीरे-धीरे उनका ध्यान अपने पढाई की जगह एक दुसरे के साथ समय बिताने में जाने लगा जिस कारण दिन प्रति दिन उनके मार्क्स पर भी उसका प्रभाव पड़ने लगा| उनके शिक्षक को भी इस बात की हैरानी होने लगी कि दोनों ही इतने अच्छे स्टूडेंट्स हैं अचानक ये बदलाव क्यों?.... फिर उनके शिक्षक ने जब उनके दिनचर्या पर ध्यान दिया तो उन्हें पता चला की उनके पढाई के प्रति लापरवाही का कारण क्या है..... यह बात जान कर उन्होंने सबसे पहले दोनों ही बच्चों के पेरेंट्स को इस बात की जानकारी दी और समझाया| इस परिस्तिथि में यदि शिक्षक ने पेरेंट्स को समझाया नहीं होता तो शायद बात ख़राब भी हो सकती थी| शिक्षक ने बच्चों के सभी चीजों को ध्यान में रखते हुवे पेरेंट्स में उनके बच्चों के प्रति विश्वास जगाया|

  अभिभावकों का सहयोग :

  • दूसरी ओर दोनों ही बच्चों के पेरेंट्स ने भी इस बात को समझते हुवे सहमति के साथ बच्चों को परोत्साहित किया की वह अभी अपने लक्ष्य पर ध्यान दें तथा लक्ष्य प्राप्ति के बाद आपके जीवन के सही समय पर आप दोनों इस बारे में सोच कर अपनी ज़िन्दगी आगे बढ़ा सकते हैं| मेघा और कमल को उनके समझाने पर अपने लक्ष्य के प्रति काफी सही मार्गदर्शन मिला और वह अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचे| परन्तु यदि उनके पेरेंट्स और शिक्षक का सहयोग इसके विपरीत होता तो शायद दोनों बच्चे भी अपनी जिम्मेदारियों को सही समय पर समझ नहीं पाते| दूसरी ओर यहाँ बच्चों ने भी शिक्षक और पेरेंट्स की बातों को गंभीरता से लिया और आगे बढ़े|
  •  दरअसल ऐसे समय में अक्सर अभिभावक भी अपने बच्चों को ठीक तरह से समझ नहीं पाते हैं जो आगे चल कर बच्चों के लिए एक बड़ी परेशानी भी बन सकती है| इस दौरान बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यक्ता होती है क्योंकि इस अवस्था में बच्चे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर पूरी तरह से सहज नहीं होते हैं| ऐसे समय में बच्चों से खुल कर बात करें और उन्हें यह समझाएं की वह अभी इस तरह के विचारों को  समझने के लिए ठीक तरह से परिपूर्ण नहीं है| उन्हें बताएं कि आगे चल कर जब वह सम्बन्धों की गहराईयों को ठीक तरीके से समझना सिख जायेंगे तब उन्हें खुद इन बातों की अच्छी समझ होगी और तब तक आप एक बहुत अच्छे दोस्त के दोस्ती के एहसास के साथ अपने लक्ष्य पर फोकस करें|
  • जबकि इसकी जगह अक्सर पेरेंट्स इस तरह की बातों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं या बच्चों के साथ सख्ती से पेश आते हैं जो की बच्चों के मानसिकता पर बुरा प्रभाव डालता है जबकि अभिभावकों को बच्चों से इस विषय में बात कर उन्हें सही मार्गदर्शन दिखाना चाहिए|

किशोरावस्था में होने वाले मानसिक बदलाव को कैसे संतुलित रखें:

किशोरावस्था में होने वाले मानसिक बदलाव में पेरेंट्स के साथ-साथ छात्रों को भी इन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए की उन्हें अपनी मित्रता किस प्रकार बनाए रखना है| किसी के प्रति अपने सवभाव पर संतुलन बनाये रखना बहुत ज़रूरी है यदि आपका कोई अच्छा मित्र है जिसके प्रति आप आकर्षित हैं तो आपको ऐसी परिस्तिथि में उस मित्र के साथ रोमांस या अन्य बातों की जगह एक अच्छी मित्रता रखनी चाहिए|

आपको अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुवे अपना समय पूरी तरह लक्ष्य कि प्राप्ति की दिशा में देना चाहिए और साथ ही साथ अपने मित्र को भी इसमें सहयोग करना चाहिए| आप चाहें तो साथ बैठ कर अपना स्टडी गोल तैयार कर सकते हैं और उसी क्रम में खुद को आगे के लिए तैयार कर सकते हैं|

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किशोरावस्था में ऐसा भी कई बार होता है कि कभी-कभी तनाव से मुक्त होने और थोड़ी देर की शांति के लिए बहुत सारे छात्र टाईमपास दोस्ती करते हैं, लेकिन इसका वांछित परिणाम हानिकारक होता है| यहाँ तक कि कई बार क्लास में कुछ छात्रों द्वारा ऐसी टिप्पणी की जाती है कि अगर तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है तो तुम स्मार्ट या मॉडर्न नहीं हो और ऐसी स्थिति में छात्र बस यह साबित करने के लिए दोस्ती या प्रेम करते हैं और यही बात लड़कियों पर भी लागू होती है| दूसरी तरफ किसी के साथ डेटिंग करने के कारण इस दौरान लड़के और लड़कियों की गलत छवि भी बनती है जो करियर के लिहाज से बिलकुल सही नहीं है|

स्कूल में होने वाले इस तरह के गतिविधियों से खुद को दूर रखने के लिए खुद में इनके सभी पढ़ाव को सही तरीके से भापने की ज़रूरत है| हालाकि विपरीत लिंग से दोस्ती करना सामजिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से गलत नहीं बस ज़रूरत है तो इसे एक अच्छी दोस्ती कि तरह ही आगे ले कर चलना और अपने करियर के प्रति हमेशा सचेत रहना|

निष्कर्ष : वस्तुतः स्कूल का समय जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है| इसी दौरान छात्रों के भविष्य की नींव रखी जाती है| माता-पिता और शिक्षकों को इस अवधि में बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए| एक गलत कदम किशोर मन को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है| बच्चों के हर बात को खुले मन से स्वीकार करते हुए उस पर विचार कर अपनी बात और व्यवहार से बच्चे को पूरी तरह संतुष्ट करना चाहिए|

शुभकामनायें !!

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Jagran Josh
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Education Desk

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