UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 18th जीवन की प्रक्रियाएँ (activities of life or processes) के 9th पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. मृतजीवी तथा परजीवी पोषण में अन्तर
2. अग्नाशय के कार्य
3. यकृत के कार्य
4. रसायन संश्लेषी जीवाणु
5. जन्तुओं में भोजन अंतर्ग्रहण
6. वसा में घुलनशील विटामिन्स एवं कार्य
7. श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अन्तर
8. फेफड़ों में गैस विनिमय
9. पोषण
पोषण (nutrition):
सभी जीवों को विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त शरीर में दूट - फूट को मरम्मत्त तथा कोशाद्रव्य संश्लेषण के लिए आवश्यक पोषक तत्व भोजन से प्राप्त होते है, अत: भोजन ग्रहण करना, इसका पाचन, अवशोषण तथा स्वागीकरण पोषण कहलाता है। हरे पौधे अपने भोज्य पदार्थों का संश्लेषण सरल अकार्बनिक पदार्था से स्वय कर लेते है, अत स्वपोषी (autotrophic) कहलाते है । इसके विपरीत, जन्तु अपने गोवा के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हरे पौधों पर निर्भर होते है, इन्हें परपोषी (heterotrophic) कहते हैं।
1 कार्बोहाइड्रेट का पाचन करने वाले एन्जाइम्स निमालिखित हैं :
(i) टायलिन (Ptylin) लार में पाया जाता है।
(ii) एमाइलाप्सिन (amylopsin) अग्न्याशय रस तथा आन्त्रिय रस में मिलता है।
2 वसा का पाचन करने वाला मुख्य एत्जाइम लाइपेज (lipase) है। यह प्रमुखतया अग्न्याशय रस तथा आन्त्रिय रस में मिलता है।
3 प्रोटीन पर क्रिया करने वाले एन्जाइम्स निम्नलिखित है-
(i) पेप्सिन (pepsin), जठर रस में होता है।
(ii) ट्रिप्सिन (trypsin) तथा काइमोट्रिप्सिन (chymotrypsin) अग्न्याशय रस में होते हैं।
मृतजीवी तथा परजीवी पोषण में अन्तर (Differences between Saprozoic and Parasitic Nutrition) :
क्र.सं. | मृतजीवी पोषण (Saprozoic nutrition) | परजीवी पोषण (Parasitic nutrition) |
1.
2. | मृत्तजीवी सडी - गली वस्तुओं (मृत कार्बनिक पदार्थों) से अपना भोजन प्राप्त करते हैं| 2. ये जटिल पदार्थों का पाचन करके पचे भोज्य पदार्थों, को अपनी सतह से अवशोषित कर लेते हैं| | परजीवी अपना भोजन जीवित पोषद (host) से प्राप्त करते हैं| परजीवी पौधों में भोजन प्राप्त करने के लिए चूषकांग (haustoria) होते हैं। इनकी सहायता से परजीवी पोषद के शरीर से सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं| |
पित्त रस भोजन के माध्यम को क्षारीय बनाता है। आमाशय से आई लुगदी (chyme) को पतला करता है। पित्त लवण वसा का इमल्सीकरण (emulsification) करते है, जिससे वसा का पाचन सुगमता से हो जाता है।
मनुष्य की आहार नाल से सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियाँ : (क) अग्नाशय तथा (ख) यकृत
(क) अग्नाशय के कार्य (functions of Pancreas) :
अग्नाशय के प्रमुख कार्य निग्नलिखित है :
1. अग्न्याश्यी रस का स्त्रावण (Secretion of Panrceatic juice) : अग्नाशय के पिण्डकों की कोशिकाएँ अग्न्याशय रस में ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमाइलेज तथा लाइपेज नामक एन्जाइम होते हैं| ये एन्जाइम क्रमश: प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा के पाचन में सहायक होते हैं|
2. हार्मोन्स का स्त्रावण (Secretion of hormones) : अग्नाशय की लैंगरहैन्स की लैंगरहैन्स की लौटा कोशिकाओं से इन्सुलिन (insulin) तथा ऐल्फा कोशिकाओं से ग्लुकैगान (glucagon) हॉमोंन्स स्त्रावित होते हैं। ये हॉमोंन्स काबॉंहाइड्रेट उपापचय का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं।
(ख) यकृत के कार्य (Functions of Liver) :
यकृत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. पित्त रस का स्त्रावण : यह भोजन के माध्यम को क्षारीय बनाता है। भोजन के सड़ने से रोकता है। जीवाणुओं को नष्ट करता है। वसा का इमल्सीकरण करता है जिससे वसा का पाचन सुगमता से हो जाता हैं।
2. आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदलकर संचित करता है। आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन को पुन: ग्लूकोस में बदल देता है।
3. यकृत आवश्यकता पड़ने पर ऐमीनो अम्लों तथा वसा से ग्लूकोस का संश्लेषण करता है।
4. यकृत अकार्बनिक पदार्थों को भी संचित करता है।
प्रकाश संश्लेषी जीवाणु (Photosynthetic bacteria) : ये प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके CO2 तथा H2S से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इनमे प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाया जाता।
उदाहरण – क्लोरोबियन, क्रोमोटियम, क्लोरोबैक्टीरियम आदि|
रसायन संश्लेषी जीवाणु (Chemosynthetic bacteria): ये जीवाणु भोजन निर्माण के लिए रासायनिक उर्जा का उपयोग करते हैं जो उन्हें अकार्बनिक या कार्बनिक यौगिक के आक्सीकरण से प्राप्त होती है| ये CO2 तथा H2S से रासायनिक उर्जा का उपयोग करके कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं|
उदाहरण – गन्धक जीवाणु (थायोबैसीलस), आयरन जीवाणु (लैपटोथ्रिक्स), नाइट्रोजन जीवाणु (नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोबैक्टर), मेथेन जीवाणु (मेथेनोकोकस) आदि|
जन्तुओं में भोजन अंतर्ग्रहण (Ingestion of food in Animals) :
जन्तुओं में भोजन तरल ठोस रूप में ग्रहण किया जाता है; इस विधि को प्राणिसम (या जन्तुसम) कहते हैं|
जन्तु भोजन को अपने बाह्य वातावरण से ग्रहण करते हैं| विभिन्न जन्तुओं में अंतर्ग्रहण क्रिया अलग – अलग प्रकार से होती हैं| सरलतम जीव अमीबा (Amoeba) में कोशिका की सतह से भोजन ग्रहण किया जाता है| भोजन सीधे ही कोशिकाद्र्व्य में खाद्य रिक्तिका (food vacuole) में आ जाता है| अन्य जन्तुओं में भोजन ग्रहण करने के लिए मुख होता है| मुख की सहायता के लिए कुछ अंग भी होते है|
पैरामिशियम (Paramecium) में भोजन ग्रहण करने के लिए कोशिका मुख (cytosome) होता है| सिलिया (cilia) भोजन को कोशिका मुख तक पहुँचाने में सहायक होते हैं| हाइड्रा (hydra) में स्पर्शक, भोजन को मुख में पहुँचाने का
कार्य करते हैं| कीटों में भोजन को कुतरने, पिसने या चूसने के लिए विशिष्ट प्रकार के मुखांग (mouth parts) होते है| अनेक प्राणी बिना किसी अन्य अंग की सहायता से मुख द्वारा भोजन ग्रहण करते हैं| जैसे मछलियों (fishes) जलधारा के साथ आए भोजन को ग्रहण करती हैं| मेढ़क द्विशाखित लसलसी जीभ द्वारा कीटों का भक्षण करता है| छिपकली भी जीभ की सहायता से भोजन को ग्रहण करती है| पक्षी अपनी चोंच (beak) द्वारा और मनुष्य अपने हाथों की सहायता से भोजन अन्तग्रहण करता है|
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VI
वसा में घुलनशील विटामिन्स एवं कार्य :
(1) मुखगुहा में स्थित जीभ भोजन में लार मिलाने तथा भोजन को निगलने में सहायता करती है|
(2) जीभ पर स्थित स्वाद कलिकाएँ भोजन के स्वाद का ज्ञान कराती हैं|
(3) जीभ मुखगुहा की सफाई करने में सहायक होती है|
श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अन्तर (Differences between Respiration and Breathing) :
क्र.सं. | श्वसन | श्वासोच्छ्वास |
1.
2. | यह एक अपचयी (catabolic) क्रिया है जिसमें भोज्य पदार्थों का आक्सीकरण होता है| कार्बन डाइआक्साइड, जल वाष्प आदि अपशिष्ट पदार्थ के रूप में बनते है; साथ ही उर्जा ATP तथा ऊष्मा के रूप में प्राप्त होती है| | यह ऐसी क्रिया है जिसमें वातावरण से वायु श्वसनांगो (respiratory organs) तक पहुँचाई जाती है| श्वसन के बाद शेष वायु तथा क्रिया में उत्पादित अन्य गैसीय पदार्थ; जैसे – कार्बन डाइआक्साइड, जलवाष्प आदि वातावरण में वापस चली जाती हैं| |
फेफड़ों में गैस विनिमय (Gaseous Exchange in Lungs) :
अन्त: श्वसन द्वारा शुद्ध वायु फेफड़ों की कुपिकाओं (alveoli) में भर जाती है| इन कुपिकाओं की सतह पर रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है| कुपिकाओं और रक्त केशिकाओं की भित्तियाँ एक – दुसरे के सम्पर्क में रहती हैं| ये पतली भिति वाली होती हैं| अत: क्रिया सामान्य विसरण द्वारा होती है| इस क्रिया के लिए लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन, आक्सीजन के साथ मिलकर आक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) का निर्माण करता है (चित्र- देखें)| आक्सीजन इसी रूप में रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न उतकों तक पहुँचती है|
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