आज हम आपको UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 17; मानव शरीर की संरचना (structure of human body) के 4thपार्ट का स्टडी नोट्स उपलब्ध करा रहें हैं| यहाँ शोर्ट नोट्स उपलब्ध करने का एक मात्र उद्देश्य छात्रों को पूर्ण रूप से चैप्टर के सभी बिन्दुओं को आसान तरीके से समझाना है| इसलिए इस नोट्स में सभी टॉपिक को बड़े ही सरल तरीके से समझाया गया है और साथ ही साथ सभी टॉपिक के मुख्य बिन्दुओं पर समान रूप से प्रकाश डाला गया है| यहां दिए गए नोट्स यूपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं विज्ञान बोर्ड की परीक्षा 2018 और आंतरिक परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे। इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. मानव का उत्सर्जी तन्त्र
2. मनुष्य के वृक्क
3. वृवक्त की आन्तरिक संरचना
4. वृक्क नलिका या नेक्रॉन
5. मूत्र नलिका की क्रियाविधि
6. मूत्र
मानव का उत्सर्जी तन्त्र(Excretory System of Man):
शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना उत्सर्जन (excretion) कहलाता है। इस क्रिया में सहायक अंग उत्सर्जी अंग कहलाते हैं। उत्सर्जी अंग परस्पर मिलकर उत्सर्जी तन्त्र बनाते है। मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क (kidney) होते है। यकृत (liver) उत्सर्जन क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अमोनिया को यूरिया में बदलता है।
मनुष्य के वृक्क (Kidneys of Man) :
एक जोड़ी वृक्क (kidney) उदरगुहा में कशेरुक दण्ड के पार्श्व है स्थित होते हैं। ये भूरे रंग तथा सेम के बीज के आकार की - संरचनाएँ है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौडा तथा 2-5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएँ की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता हैं। सामान्यत: एक वयस्क पुरुष के वृक्क का भार 125-170 ग्राम किन्तु स्त्री के वृक्क का भार 115-155 ग्राम होता है। वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है, किन्तु भीतरी किनारा अन्दर की ओर धंसा हुआ होता है जिसमें से मूत्र नलिका (ureter) निकलती है। इस धंसे हुए स्थान को हाइलम (hilum) कहते है। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय (urinary bladder) में खुलती है। मूत्र नली की लम्बाई 30.35 सेमी होती है|
वृवक्त की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Kidney):
वृक्क की अनुल्म्ब काट में इसकी आन्तरिक संरचना स्पष्ट होती है| इसका मध्य भाग लगभग खोखला तथा कीप के आकार का होता है। यहीं भागृ क्रमश: संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है| इस भाग को शीर्षगुहा, श्रोणि या पेल्विस (pelvis) कहते है| वृक्क का शेष भाग ठोस तथा दो भागों में बँटा होता है - बाहरी, हल्का बैगनी रंग का भाग वल्कुट या कार्टेक्स (cortex) तथा भीतरी, गहरे रंग का भाग मेडयुला (medulla) कहलाता है|
वृक्क में असंख्य कुण्डलित तथा लम्बी सूक्ष्म नलिकाएँ होती हैं। इन्हें नेफ्रान (nephrons) या वृक्क नलिकाएँ (uriniferous tubules) कहते है। प्रत्येक नलिका के दो प्रमुख भाग होते हैं – एक प्याले के आकार का ग्रिन्थल भाग मैलपीघियन सम्पुट (Malpighian capsule) तथा दूसरा अत्यन्त कुण्डलित नलिकाकार (tubular) स्त्रावी भाग स्त्रावी नलिका का प्रारम्भिक तथा अन्तिम भाग कुण्डलित तथा मध्य भाग U के आकार का होता है। वृक्क नलिका का अन्तिम भाग एक बड़ी संग्रह नलिका (collecting tubule) में खुलता है।
प्रत्येक संग्रह नलिका पिरामिड (pyramid) में खुलती है। वृक्क में ऐसे 10-12 पिरामिड दिखाई देते है जो अपने सँकरे माग से शीर्ष गुहा या पेल्विस (pelvis) में खुलते हैं|
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वृक्क नलिका या नेक्रॉन (Uriniferous tubule or Nephrons) :
वृक्क नलिकाएँ वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती हैं। वृक्क नलिका के दो प्रमुख भाग-
(1) मैल्पीघियन सम्पुट तथा
(2) स्त्रावी नलिका।
1. मैल्पीघियन सम्पुट (Malpighian capsule) - इसके दो भाग होते हैं-
(i) एक प्याले के आकार का बोमैन सम्पुट (bowman's capsule) तथा
(ii) केशिकागुच्छ या ग्लोमेरूलस (glomerulus), यह बोमैन सन्मुट की गुहा में स्थित रुधिर केशिकाओं का जाल होता है।
2. स्वाती नलिका (Secretory tubule) - इसके तीन भाग होते है-
(i) समीपस्थ कुण्डलित भाग
(ii) मध्य हेनले लूप तथा
(iii) दूरस्थ कुण्डलित भाग|
मूत्र नलिका की क्रियाविधि (Mechanism of Uriniferous tubule):
केशिकागुच्छ में धमनी की जो शाखा आती है वह इससे निकलने वाली शाखा से अधिक चौडी होती है। इस प्रकार केशिकागुच्छ में अधिक रुधिर आता है, किन्तु निकल कम पाता है, अत: इसका प्लाज्मा केशिकाओं की पतली भित्ति से छन जाता है और सम्पुट में होकर नलिका में आ जाता है। यह क्रिया परानिस्यन्दन, अपोहन या डायलिसिस (ultrafiltration or dialysis) कहलाती है। छने हुए निस्यन्द में लगभग सभी कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिक; जैसे-, यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोज, ऐमीनो अम्ल आदि होते है अर्थात् रुधिर कणिकाओं तथा प्लाज्मा की प्रोटीन को छोड़कर लगभग अभी घटक उपस्थित होते है। इनकी मात्रा भी प्लाज्मा के बराबर होती है।
कोशिकागुच्छ से निकलने वाली अपवाही धमनिका 'U' के आकार की स्त्रावी नलिका के चारों ओर बार-बार विभाजित होकर केशिकाओं का जाल-सा बना लेती है। नली के अन्दर आए हुए नेक्रिक फिल्ट्रेट (तरल पदार्थ) से भोजन आदि स्त्रावी नलिका व केशिकाओं की भित्ति से होकर वापस रुधिर में आ जाता है। कुछ जल भी इस प्रकार वापस रुधिर में आता है। इस क्रिया को वरणात्मक अवशोषण कहते हैं। इस प्रकार अनावश्यक जल तथा व्यर्थ या हानिकारक पदार्थ रुधिर से नलिका के तरल में ही रह जाते है। यहीं मूत्र (urine) है जो मूत्र संग्रह नलिका से होता हुआ मूत्राशय में एकत्र होता रहता है। मूत्राशय से मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
मूत्र (Urine) - यह हल्के पोले रंग का हल्का अम्लीय तरल है। इसमें लगभग 96% जल, 2% यूरिया, सूक्ष्म मात्रा में लवण, यूरोक्रोम, अमोनिया आदि पाए जाते हैं।
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