आईएएस परीक्षा 2012 का परिणाम

May 16, 2013, 15:13 IST

मेरा शुरू से सपना था कि मैं आईएएस अधिकारी बनूं और समाज की भलाई के लिए काम करूं. मैंने केरल में मछुआरों के कष्टदायक जीवन को देखा है...

मेरा शुरू से सपना था कि मैं आईएएस अधिकारी बनूं और समाज की भलाई के लिए काम करूं। मैंने केरल में मछुआरों के कष्टदायक जीवन को देखा है। पांच वर्ष पूर्व ही मैंने तैयारी शुरू कर दी थी। यह मेरा चौथा अवसर था। वर्ष 2009 में पहली बार मैं इंटरव्यू में रह गई। दूसरे व तीसरे वर्ष मेरी रैंक काफी नीचे रहे। लगातार असफलताओं के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और हर वर्ष मैंने आत्मावलोकन और अपने विषयों को फिर से देख कर विश्लेषण किया कि मेरी कमी कहां रह गई। आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई और अब मैं टॉपर के रूप में सबके सामने हूं। सबक यही है कि असफलता के बावजूद लक्ष्य पाने की ओर बढते कदम रुकने नहीं चाहिए। एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी।

बनाएं हर दिन का टारगेट

कोई खास पद्धति नहीं थी, हर दिन का टारगेट तय करती थी, पाठ्यक्रम करती थी और उसे फिर पूरा करने बैठ जाती थी, चाहे पूरा दिन क्यों न निकल जाए। तब बे्रक नहीं लेती थी। मैंने अपने पाठयक्रम के हिसाब से छोटे-छोटे टारगेट बनाए। सामान्य ज्ञान के लिए एनसीईआरटी की किताबें पढी, मैंने चूंकि बीए संस्कृत से की है और यही मेरा वैकल्पिक विषय भी था, इसलिए उसी दौरान की संस्कृत की किताबों से खुद नोट्स बनाए।

कोचिंग और सेल्फ स्टडी अहम

कोचिंग और सेल्फ स्टडी दोनों ने सफलता में बडी भूमिका निभाई। कोचिंग से जहां मुझे क्या पढाना है, कैसे पढाना है,परीक्षा रणनीति के बाबत जानकारी मिली। तो सेल्फ स्टडी से मैने इन सभी चीजों को खुद में उतारा। मेरा पढाई का कोई?तय शिड्यूल नहीं था। 24 घंटों में मैं कभी भी पढाई कर लेता था। सुबह हो या देर रात मेरा यही शिड्यूल रहता था।

सीसैट है आसान

राजनीति विज्ञान व हिंदी साहित्य में मुख्य परीक्षा देने वाले राघवेंद्र परीक्षा के बदले पैटर्न पर कहते हैं कि सी सैट आ जाने से परीक्षा में मेहनत कम हुई है, जहां पहले वैकल्पिक विषयों को पढने में उम्मीदवारों की ज्यादातर ऊर्जा यहीं व्यय हो जाती थी, पर अब कम प्रयास में ही वे आईएएस मेन्स में दाखिल हो रहे हैं । अगर आप सकारात्मक सोच रखकर तैयारी करते हैं तो सफलता मिल सकती है।

मकसद असमर्थो की सेवा

महज 21 साल की देबास्वेता का इतनी कम उम्र में आईएएस में 14वीं रैंक लाना अभूतपूर्व है। डीपीएस नोएडा से इंटरमीडिएट और 2011 में मिरांडा कॉलेज से स्नातक करने वाली देबास्वेता का आईएएस बनने के पीछे मकसद गरीब, असमर्थो की सेवा है। वे बताती हैं कि मेरे सामने आईएएस के साथ विदेश सेवा जैसे विक ल्प भी हैं लेकिन मैं आईएएस के जरिए देश में रहकर वंचितों की सेवा करूं गी.

Jagran Josh
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Education Desk

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