संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा-2013 (आईएएस 2013) के अंतिम परिणाम घोषित किये. इस परीक्षा में प्रथम स्थान पर चयनित गौरव अग्रवाल ने निस्संदेह अत्यंत सम्मानजनक उपलब्धि अर्जित की, जिसके लिए वह शत-शत बार हार्दिक बधाई के पात्र हैं.
सिविल सर्विसेज एग्जाम में पिछले तीन साल से लड़कियां टॉप कर रही थीं। लेकिन २०१३ के एग्जाम में जयपुर के गौरव अग्रवाल ने इस सिलसिले को तोड़ा। ऐसा नहीं है कि गौरव के पास गॉडगिफ्टेड परफेक्शन था, पर उन्होंने अपनी कमजोरियों को दूर कर खुद को सिविल सर्विस के लिए परफेक्ट बनाया। यही कारण है कि पहले आइआइटी, फिर आइआइएम और अब आइएएस में गौरव ने नंबर वन पोजीशन हासिल की।
सिविल सर्विसेज एग्जाम-2013 में ओवरऑल नंबर-1 पोजीशन हासिल करने वाले जयपुर के गौरव अग्रवाल से जानें उनकी कामयाबी की कहानी...
टॉप करूंगा, सोचा न था
मुझे यह जरूर लगता था कि मैं अंडर हंड्रेड में आ सकता हूं, लेकिन टॉप करूंगा, ऐसा सोचा भी नहीं था। इससे पहले मैं अपने पहले अटेम्ट में 2012 के एग्जाम के जरिए आइपीएस चुना गया था और इन दिनों हैदराबाद में आइपीएस की ट्रेनिंग कर रहा हूं। कुछ दोस्तों ने मुझे खबर दी कि मैंने सिविल सर्विस एग्जाम में टॉप किया है। विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए ठीक से रिजल्ट देखने को कहा, ताकि कोई कंफ्यूजन न रहे, लेकिन जब हर तरफ से फोन आने लगे, तो लगा कि इतने लोगों को कंफ्यूजन नहीं हो सकता है। जो सुन रहा हूं, वह सही है।
मीनिंगफुल करने की थी चाहत
सिविल सेवा की तैयारी करने से पहले मैं हांगकांग स्थित सिटी बैंक में बतौर इन्वेस्टमेंट बैंकर काम कर रहा था। सैलरी अच्छी थी, लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं होता है। मुझे कुछ बिग चाहिए था, कुछ मीनिंगफुल, जिससे कि मुझे संतुष्टि मिले। सिविल सर्वेंट बनना अपने आप में एक यूनीक एक्सपीरियंस है। एक डिफरेंट टाइप की फील्ड जॉब है यह। लोगों के बीच जाने और उनकी समस्याओं को करीब से सुनने-समझने का मौका मिलता है इसमें। बतौर आइएएस आप पॉलिसी मेकिंग और उसे रेगुलेट करने की प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं।
आइएएस थी फर्स्ट च्वाइस
पापा, मां और बहन ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए एनकरेज किया। आइआइएम लखनऊ के कैंपस प्लेसमेंट से मुझे सिटी बैंक में जॉब ऑफर हुई और मैं हांगकांग चला गया था। वहां लगभग चार साल नौकरी करने के बाद मैं सिविल सर्विस की तैयारी के लिए तीन-चार महीने की लीव लेकर इंडिया आ गया, क्योंकि नौकरी करते हुए तैयारी नहीं कर सकता था। यहां प्रतिदिन 8 से 10 घंटे पढ़ाई करता। मुझे पहले ही प्रयास में २०१२ के सिविल सर्विस एग्जाम में 244वीं रैंक हासिल हुई थी। आइपीएस मिला था। इसकी ट्रेनिंग भी शुरू कर दी, लेकिन आइएएस मेरी फर्स्ट च्वांइस थी, इसलिए फिर से तैयारी की और आज टॉप रैंक हासिल करने में कामयाब रहा। यह सब परिवार के सपोर्ट के बिना हासिल करना मुश्किल था। दोस्तों से भी मुझे काफी मदद मिली।
इंटरनेट बेस्ड स्टडी पर फोकस
प्रिलिम्से की तैयारी नहीं करनी पड़ी था। मेन्स में जीएस की तैयारी के लिए बेसिक किताबों पर फोकस किया, क्योंकि अगर वह बेसिक नॉलेज क्लीयर होगी तो आपको ज्यांदा परेशानी नहीं होगी। इंटरनेट बेस्ड स्टडी किया, जिससे कि इश्यूज को समझ सकूं। इंटरव्यू की तैयारी के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिला, क्योंकि मैं आइपीएस की ट्रेनिंग कर रहा था। फिर भी खुद को अपडेट रखने के लिए पूरी कोशिश करता था। पिछले इंटरव्यू का अनुभव भी काम आया।
सिलेबस में बदलाव का असर नहीं
सिविल सर्विस के सिलेबस में बदलाव सबके लिए हुए थे। मेरी तैयारी पर इसका कुछ खास असर नहीं हुआ, क्योंकि जब आपकी तैयारी का लेवल बेस्ट रहेगा, तो चेंजेज से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। बदलाव भी कोई ज्यारदा नहीं हुए हैं। अगर कुछेक प्वाइंट्स को छोड़ दें या कुछेक टॉपिक्स आपको एक्ट्रा ही पढ़ने पड़ें, तो उससे तैयारी प्रभावित नहीं होती है।
सिविल सर्वेंट्स में ऑनेस्टी जरूरी
सिविल सर्वेंट्स को ऑनेस्टी और करेजियस होना चाहिए। समस्याओं को पेशंस के साथ टैकल करना आना चाहिए। साथ ही डिसीजन मेकिंग कैपेसिटी स्ट्रॉन्ग होनी चाहिए। शॉर्ट टर्म को छोड़, लॉन्ग टर्म की ओर देखना चाहिए, क्योंकि शॉर्ट टर्म के फायदे के चक्कर में पड़ने से करियर खराब हो सकता है। फंड और मनचाही पोस्टिंग की लालच भी नहीं होनी चाहिए।
संक्षिप्त परिचय |
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- एडमंड्स स्कूल, जयपुर से स्कूली पढ़ाई - आइआइटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक - आइआइटी एंट्रेंस एग्जायम में पूरे भारत में 45वीं रैंक - आइआइएम लखनऊ से पीजीडीएम - एमबीए में मिला गोल्ड मेडल - पिता जयपुर डेयरी केंद्र में मैनेजर और मां गृहिणी - बड़ी बहन अमेरिका में रहती हैं - बहनोई माइक्रोसॉफ्ट में जॉब करते हैं - 4 जून, 2014 को शादी हुई, पत्नी डॉक्टर |
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