मल्लिका दत्त ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट के तौर पर बीते तीन दशक से भी ज्यादा समय से इंडिया ही नहीं, यूएस, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, वियतनाम, ब्राजील और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में काम कर रही हैं। साल 2000 में उन्होंने ब्रेकथ्रू ट्रस्ट बनाया, जो पॉप कल्चर, मीडिया और आर्ट की मदद से वूमन इश्यूज के प्रति सोसायटी को सेंसिटाइज करने का काम कर रहा है।
इनोवेटिव तरीके से सोशल ट्रांसफॉर्मेशन करने की इस मुहिम के कारण ही इनका सेलेक्शन गूगल ग्लोबल इंपैक्ट चैलेंज के टॉप 10 फाइनलिस्ट में हुआ। इसके अलावा ब्रेकथ्रूट्रस्ट ने ज्यूबिलिएंट भरतिया फाउंडेशन के टॉप 4 फाइनलिस्ट्स में भी अपनी जगह बनाई है।
सॉन्ग से शुरुआत
आपको शायद याद हो, मशहूर सिंगर शुभा मुद्गल का गाया एक खूबसूरत गीत..मन के मंजीरे आज खनकने लगे, भूले थे चलना, कदम थिरकने लगे। इस म्यूजिक वीडियो एल्बम ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मुद्दे को लेकर नेशनल लेवल पर अवेयरनेस क्रिएट करने में अहम भूमिका निभाई थी, साथ ही इस पर बहस भी छेडी थी। दरअसल, यह एल्बम एक एक्सपेरिमेंट का हिस्सा था, जो मल्लिका दत्त ने शुरू किया था। मल्लिका चाहती थींकि महिलाओं के मानवाधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी पूरी सोसायटी की हो। इसके लिए सबसे जरूरी था, लोगों को सेंसिटिव बनाना। इसी सोच के साथ उन्होंने एक प्रयोग किया और सामने आया ग्लोबल ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन, ब्रेकथ्रूट्रस्ट।
वर्क स्ट्रैटेजी
मल्लिका ने बताया कि ब्रेकथ्रूपांच स्ट्रैटेजी के तहत काम करता है। पहला म्यूजिक वीडियो, वीडियो गेम्स, सोशल मीडिया जैसे मीडियम के अलावा टेक्नोलॉजी और आर्ट के जरिए लोगों को अवेयर और सेंसिटाइज किया जाता है। इसके बाद स्कूल, कॉलेज और सिविल सोसायटी ग्रुप्स में नए लीडर्स तैयार किए जाते हैं। उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे अपने आसपास के माहौल में पॉजिटिव चेंज ला सकें। ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचने और वहां इंपैक्ट डालने के लिए कम्युनिटी बेस्ड ऑर्गेनाइजेशंस, गवर्नमेंट और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की मदद ली जाती है। वहीं, समय-समय पर काम का आकलन भी किया जाता है, जिसमें क्रिएटिविटी का भी खासा ध्यान रखा जाता है।
बेल बजाओ कैंपेन रहा हिट
ब्रेकथ्रू लोगों की मानसिकता में चेंज लाने के लिए बाकायदा कैंपेन्स चलाता है। इसमें आई एम हीयर, रिंग द बेल..वन मिलियन मेन, वन मिलियन प्रॉमिस, बेल बजाओ और नेशन अगेन्स्ट अर्ली मैरेज जैसे कैंपन चलाए जा रहे हैं। वैसे, ट्रस्ट की मैनेजिंग डायरेक्टर मल्लिका दत्त कहती हैं, बेल बजाओ ऐसा पहला कैंपेन था, जो एक गेम चेंजर साबित हुआ क्योंकि इसमें पुरुषों को हिंसा के लिए जवाबदेह ठहराने के साथ ही, उन्हें इस ग्लोबल प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालने के प्रॉसेस का हिस्सा भी बनाया गया। इस तरह कैंपेन ने इंडिया के करीब 130 मिलियन लोगों तक पहुंचकर, उन्हें जागरूक किया। इतना ही नहीं, विदेशों में भी इस मॉडल को एडॉप्ट कर वहां के लोगों को अपनी आवाज उठाने के लिए इंस्पायर किया गया।
सोशल ट्रांसफॉर्मेशन
ब्रेकथ्रू का एक ही विजन है, ऐसी सोसायटी का निर्माण करना, जहां इंसान की डिगनिटी, इक्वेलिटी और जस्टिस का सम्मान हो। ज्यूबिलिएंट भरतिया फाउंडेशन के फाउंडर डायरेक्टर श्याम भरतिया का कहना है कि सोसायटी में पॉजिटिव चेंज लाने के लिए ऐसे इनिशिएटिव्स की काफी जरूरत है। इस समय ट्रस्ट चाइल्ड मैरेज, जेंडर बेस्ड वॉयलेंस, सेक्सुअल हरासमेंट जैसे मुद्दों पर काम कर रहा है। कम्युनिटी लेवल पर बिहार, झारखंड, दिल्ली, यूपी, हरियाणा और कर्नाटक में इन्हें काफी अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला है।
प्रेरक सफलता: मल्लिका दत्त
मल्लिका दत्त ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट के तौर पर बीते तीन दशक से भी ज्यादा समय से इंडिया ही नहीं, यूएस, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, वियतनाम, ब्राजील और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में काम कर रही हैं.
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