बाहर पढ़ने के नाम पर क्यों जाएं इधर-उधर!

May 13, 2014, 14:11 IST

इन दिनों आपको अपने आस-पास ऐसे हजारों युवा मिल जाएंगे, जिनके पास टेक्निकल या प्रोफेशनल डिग्री होने के बावजूद कोई नौकरी नहीं.

इन दिनों आपको अपने आस-पास ऐसे हजारों युवा मिल जाएंगे, जिनके पास टेक्निकल या प्रोफेशनल डिग्री होने के बावजूद कोई नौकरी नहीं। हालांकि उन्होंने अपनी समझ से हाई-फाई समझे जाने वाले संस्थानों से लाखों की फीस चुकाकर कोर्स किया है, फिर भी कोई कंपनी उन्हें नौकरी देने को तैयार नहीं। अगर कहीं कोई काम मिलता भी है, तो हाथ में आते हैं अधिक से अधिक आठ-दस हजार रुपये। ऐसे में उनके साथ-साथ मां-बाप के सपने तो टूटेंगे ही। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जब आइआइटी, आइआइआइटी, एनआइटी, डीयू, जेएनयू या इनके समकक्ष संस्थानों में एडमिशन नहीं मिल पाता, तो भी हम क्यों उसी शहर या उसके आस-पास के किसी भी ऐरे-गैरे संस्थान में दाखिला लेकर अपना करियर बर्बाद करने पर उतारू हो जाते हैं? माना कि दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में पढ़ाई और समुचित माहौल के साथ कई अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन क्या मेरठ, अलीगढ़, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे शहरों और वहां स्थित अधिकतर संस्थानों के बारे में भी यही कहा जा सकता है? इन शहरों के गिनती के कुछ कॉलेजों-संस्थानों को छोड़ दें, तो इनमें से तमाम एजुकेशन के नाम पर शिक्षा का कारोबार करते नहीं नजर आ रहे? एडमिशन के समय बड़े-बड़े लुभावने दावे करने वाले अधिकतर संस्थान आखिर क्यों अपने छात्रों को महज कागज की डिग्रियां पकड़ाकर अपने क‌र्त्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं? क्या उन्होंने कभी सोचा है कि इन युवाओं के करियर के साथ वे कितना बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं?

यह मां-बाप के लिए भी एक बड़ा और विचारणीय प्रश्न है कि जब अपने बच्चे को अपने पास रखकर कम खर्च में आस-पास ही पढ़ाया जा सकता है, तो दूसरों की देखा-देखी उन्हें क्यों बाहर भेजा जाए? हमारा तो यही मानना है कि ऊंची लकदक इमारतों और कॉलेजों के दावों की फेहरिस्त से प्रभावित होकर अपने बच्चे को उनके हवाले कर देने की बजाय चेक-लिस्ट से ठोंक-बजाकर उनकी जांच करें। जौनपुर के बच्चे को अगर आइआइटी या डीयू में प्रवेश नहीं मिलता, तो विकल्प के रूप में मेरठ, आगरा या अलीगढ़ पढ़ाने की बजाय अपने बच्चे को बनारस, इलाहाबाद के किसी बेहतर संस्थान में भी कम खर्च में पढ़ा सकते हैं। इससे बच्चा तो आपके सामने रहेगा ही, आपके बीच रहकर उसका मनोबल-आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और यहां से भी बेहतर रास्ता निकल सकता है।

Jagran Josh
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Education Desk

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