केंद्र सरकार ने हाल ही में दिनेश कुमार खारा को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का चेयरमैन नियुक्त किया है. उन्होंने रजनीश कुमार की जगह ली. रजनीश कुमार ने 06 अक्टूबर 2020 को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया. वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार दिनेश कुमार खारा का कार्यकाल तीन साल का होगा.
वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने एसबीआई के चेयरमैन के रूप में दिनेश कुमार खारा (Dinesh Kumar Khara) को नियुक्त किया है. दिनेश कुमार खारा का कार्यकाल पदभार संभालने के दिन से तीन साल या अगले आदेश तक के लिए होगा.
चेयरमैन पद के दावेदार
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के वरिष्ठतम प्रबंध निदेशक दिनेश कुमार खारा के नाम की सिफारिश बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) ने की थी. दिलचस्प बात यह है कि दिनेश कुमार खारा साल 2017 में भी चेयरमैन पद के दावेदारों में शामिल थे. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के शीर्ष अधिकारियों का चयन करने वाले बैंक बोर्ड ब्यूरो के सदस्यों ने एसबीआई के चार प्रबंध निदेशकों का इंटरव्यू लिया था. परंपरा के मुताबिक एसबीआई के चेयरमैन की नियुक्ति बैंक में सेवारत प्रबंध निदेशकों के समूह से की जाती है.
दिनेश कुमार खारा के बारे में
• दिनेश कुमार खारा को अगस्त 2016 में तीन साल के लिए एसबीआई के प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्हें बाद में प्रदर्शन की समीक्षा के बाद साल 2019 में दो साल का सेवा विस्तार मिला.
• खारा दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से पढ़े हैं और अब तक एसबीआई के वैश्विक बैंकिंग प्रभाग के प्रमुख थे. वे एसबीआई की गैर-बैंकिंग सहायक कंपनियों के कारोबार का निरीक्षण भी करते थे.
• वे प्रबंध निदेशक नियुक्त किए जाने से पहले एसबीआई फंड्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड (एसबीआईएमएफ) के एमडी और सीईओ थे. दिनेश कुमार खारा 1984 में परिवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में एसबीआई में शामिल हुए थे.
• उन्होंने अप्रैल 2017 में एसबीआई के पांच सहायक बैंकों और भारतीय महिला बैंक के एसबीआई में विलय में अहम भूमिका निभाई थी. उनके पास बोर्ड स्तर का पद है और वे एसबीआई की गैर-बैंकिंग सहायक कंपनियों के कारोबार का निरीक्षण भी करते थे.
खारा के सामने बड़ी चुनौती
नए एसबीआई चेयरमैन दिनेश कुमार खारा के सामने एक चुनौतीपूर्ण कार्यकाल होगा, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण बैंकिंग क्षेत्र एक बड़े संकट से गुजर रहा है. इसके अलावा एनपीए का बोझ भी बैंकों पर बढ़ा है. यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वे इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation