जुलाई 2016 में झारखंड सरकार ने कल्याण विभाग में आदिम जनजातीय समूहों (पीटीजी) के लिए अलग सेल बनाने का फैसला किया. इसका उद्देश्य विभिन्न योजनाओं के तहत समूहों को दिए जाने वाले लाभों की निगरानी करना है.
इस सेल में एक सलाहकार और एक सहायक रखे जाएंगे.
राज्यों की योजनाओं के अलावा केंद्र सरकार पीटीजी के कल्याण के लिए धन प्रदान करती है.
राज्य में करीब 3 लाख लोग हैं जो पीटीजी से संबंधित हैं.
आदिम जनजाती समूह (पीटीजी):
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) ( पहले इसे आदिम जनजातीय समूह कहा जाता था) भारत सरकार द्वारा किया गया वर्गीकरण है जिसका उद्देश्य विशेष न्यून विकास सूचकांकों वाले कुछ खास समुदायों की स्थितियों में सुधार करना.
वर्ष 2006 में भारत सरकार ने "आदिम जनजाती समूह" का नाम "विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह" करने का प्रस्ताव दिया था. तब से भारत सरकार द्वारा पीटीजी का नाम बदल कर विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह रख दिया गया.
इसकी पहचान कैसे हुई और यह कब हुआ?
धेबर आयोग (1960-1961) ने कहा था कि अनुसूचित जनजातियों के बीच विकास दर में असमानता है. चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक उप–श्रेणी बनाई गई ताकि उन समूहों की पहचान की जा सके जो विकास के सबसे निम्न स्तर पर हैं.
इसका गठन धेबर आयोग की रिपोर्ट और अन्य अध्ययनों के आधार पर किया गया था. इस उप–श्रेणी को " आदिम जनजाती समूह" नाम दिया गया था.
इस प्रकार के समूह की विशेषताओं में – जीवन के लिए कृषि– पूर्व प्रणाली यानि शिकार और सभी की प्रथा, शून्य या नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि, अन्य जनजाती समूहों की तुलना में बेहद कम साक्षरता स्तर, शामिल है.
फिलहाल भारत में आदिम जनजाती समूहके 75 समुदाय हैं. झारखंड (बिहार समेत) में पाए जाने वाले पीटीजी हैं– असुरस, बिरहोर, बिरजिया, हिल खारिया, कोरवास, माल पहारिया, पारहियास, सौरिया पहारिया और सेवर.
इससे पहले जून 2016 में राज्य सरकार ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आदिम जनजाती समूहों (पीटीजी) को दो फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था.
ऐसा करने का उद्देश्य इन समूहों को अब तक नहीं उपलब्ध हो सके सकारात्मक कार्रवाईयों को संस्थागत रूप देना था.
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