दिल्ली उच्च न्यायालय ने 27 मार्च 2017 को कहा की साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोग साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उन्हें काफी सोच विचार के बाद यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है.
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी एवं न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने कहा कि अकादमी के कार्यकारी मंडल ने वर्ष 2015 में कहा था कि एक बार दे दिया गया पुरस्कार वापस नहीं लिया जा सकता इसलिए, पुरस्कार या सम्मान वापस देने के विरुद्ध दिशानिर्देश बनाने की कोई जरूरत नहीं है.
पृष्ठभूमि:
वर्ष 2015 में बहुत से लेखकों, कवियों तथा कलाकारों ने एम एम कुलबर्गी की हत्या पर अकादमी की चुप्पी और दादरी में एक व्यक्ति की हत्या किए जाने की पृष्ठभूमि में देश में असहिष्णुता और सांप्रदायिकता के माहौल के विरुद्ध अपने पुरस्कार लौटा दिए थे.
सम्मान या पुरस्कार लौटाए जाने के विरोध में दाखिल की गई एक जनहित याचिका में उच्च न्यायालय से मांग की गई थी कि वह अवार्ड लौटाने की स्थिति में उसके साथ मिली पुरस्कार राशि भी लौटाने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करे.
एक धार्मिक संगठन एवं एक अधिवक्ता द्वारा दाखिल की गई इस याचिका में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों की तरह ही साहित्य अकादमी पुरस्कार की गरिमा बनाए रखने के नियम भी तय करने की मांग की गई थी. इसमें ऐसे सम्मान लौटाने वालों के विरुद्ध कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करने की भी मांग की गई थी.
उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी के संविधान में एक बार दिया सम्मान वापस लौटाने का प्रावधान ही नहीं है इसलिए इस याचिका पर आगे विचार की कोई गुंजाइश नहीं है.
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